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सत्ता बचाने की असफल कोशिश

Vijay boudh

Sunday, January 24, 2021, 09:11 AM
Sansad hamla

डोनाल्ड ट्रंप समर्थकों ने ,,अमेरिकी संसद,, पर जो दंगा, हिंसा, कर सत्ता बचाने की असफल कोशिश कि,,, ऐसी ही पुनरावृति कहीं भारत में नरेंद्र मोदी समर्थक तो नहीं कर देंगे ॽ ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

,,,विजय बौद्ध,, संपादक, दि बुद्धिस्ट टाइम्स, भोपाल, मध्य प्रदेश, 9424 75 61 30,,,, 

गुजरात दंगों पर रामविलास पासवान ने नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कहा था। वही रामविलास पासवान फिर मौत के सौदागर के गले मिल गया था। और अब इस दुनिया में ही नहीं है। दिल्ली बॉर्डर पर किसान आंदोलन के 50 दिन में अब तक 90 से ज्यादा किसानों की मौत हो चुकी है। नरेंद्र मोदी की सरकार कृषि बिल वापस लेने के बजाय समूचे मामले को सुप्रीम कोर्ट के कंधे पर बंदूक रखकर एक्सपर्ट कमेटी के माध्यम से किसानों की मांगों एवं उनके आंदोलन को ही रफा-दफा कर कुचलने का षड्यंत्र रच डाली है। न्यायालय ने भी ऐसे नाकारा, ,सरकार के गुलाम, लोगों की कमेटी बनाया है। जो किसानों के हित चिंतक नहीं, बल्कि सरकार के समर्थक है। तथा कृषि बिल के समर्थन में रहे हैं। इससे ऐसा प्रतीत होता है, कि न्यायालय ने सरकार के दबाव में सरकार के गुलामों की एक्सपोर्ट कमेटी बनाई है। यह पुण लिखने का मेरा मकसद यह है। कि क्या फर्क पड़ता है मौत के सौदागर को,,, 90 किसान मरे या नौ सौॽ क्योंकि ,आर एस एस, मौतों पर ही राजनीति करता है। दंगा, करना, करवाना, मारना भीडतंत्र उनका लक्ष्य है। इसी तरह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विचारधारा है। अमेरिकी संसद, जब नए निर्वाचित राष्ट्रपति, जो, बाइडेन, की जीत की पुष्टि करने वाली थी। तभी ट्रम समर्थकों ने हथियारों से लैस होकर संसद पर हमला कर दिया। हजारों समर्थक संसद में घुस गए। जो कई हथियारबंद थे। दंगाइयों को डोनाल्ड ट्रंप ने  ,,राष्ट्रभक्त,, कहा है। भारत में महात्मा गांधी के हत्यारे ,नाथूराम गोडसे, को कट्टरहिंदुत्व विचारधारा के लोग राष्ट्रभक्त कहते हैं। डोनाल्ड ट्रंप संसद पर हमले हिंसा दंगाई की दुनिया भर में निंदा की गई है। सोशल मीडिया कंपनियों ने उनका अकाउंट सस्पेंड कर दिया था। इस कृत्य पर अमेरिका शर्मिंदा है। डोनाल्ड ट्रंप ने प्रजातंत्र की नींव हिला डाली है। कई लोगों की जिंदगी बर्बाद कर दी गई है। अमेरिका में कैपिटल बिल्डिंग पर उन्मादी भीड़ द्वारा किए गए हंगामे में हम भारतीयों के लिए भी यह बहुत बड़ा सबक है। आधुनिक दुनिया के इतिहास का सबसे अजीब घटनाक्रम होगा, जहां ट्रम समर्थक, दंगाइयों ने अंजाम दिया है। यह सब दिनदहाड़े अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश में हुआ है। यही इस घटनाक्रम को अनोखा बनाता है। डरावनी बात यह है कि इससे एहसास होता है, कि यह दंगा, हिंसा, अमेरिका संसद में हो सकता है। तो भारत में क्यों नहीं, हो सकता ॽ ,,आर एस एस,, ने सत्ता पर, देश पर कब्जा करने, ईवीएम मशीन, एवं चुनाव आयोग का गलत इस्तेमाल किया। और अब सत्ता पाने के बाद ,,तानाशाह,, होकर देश के किसानों, मजदूरों, गरीबों एवं करोड़ों शिक्षित बेरोजगारों को भुखमरी के कगार पर लाकर खड़ा कर, उन्हें भीख मांगने, आत्महत्या करने मजबूर कर दिया गया है। और इन सब को, मनुवाद, पूंजीपतियों का गुलाम बनाना उनका उद्देश्य है। यदि मोदी सरकार को 2024 में सत्ता से बेदखल किया जाता है। तो यह लोग भी डोनाल्ड ट्रंप  की तरह सत्ता अपनी बरकरार रखे जाने देश में संसद में भी दंगा करा सकते हैं। और इसके लिए नागपुर के संघ कार्यालय मैं एके-47 से लेकर कई शक्तिशाली बंदूकें, गन, औजारों का जखीरा तैयार किया गया है। जिसका विजयादशमी के दिन विधिवत प्रदर्शन कर पूजा की जाती है। स्वयं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन बंदूकों औजारो, तलवारों की पूजा करते हैं। यह मनुवादी, प्रजातंत्र पर भरोसा नहीं करते। भीड़तंत्र एवं तानाशाह शासन पर विश्वास करते हैं। हिटलर, मुसोलिनी की ,विचारधारा, इनका आदर्श है। डोनाल्ड ट्रंप पहले राष्ट्रपति है जिन पर एक ही  कार्यकाल में दो बार महाभियोग प्रक्रिया चली है। उनके पार्टी के ही नेता उनके खिलाफ हो गए हैं। हिंसक प्रवृत्ति के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप,, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के परम मित्र में से माने जाते हैं। जिनके स्वागत में 200 करोड़ रूपया भारत सरकार ने खर्च किया है। और कोरोनावायरस जैसी महामारी को दावत दिया है। और लाखों लोगों को मरवाने का काम किया गया है। किसान आंदोलन को इतना मजबूत बना दो कि सरकार स्वयं भयभीत हो जाए और वे आत्महत्या करने लगे। क्योंकि यह आंदोलन किसानों के सिर्फ अधिकारों का नहीं है। यह लड़ाई किसानों की लड़ाई नहीं है। यह इस देश के सिस्टम, व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई है। मनुवादी सरकार, देश, को पूंजी पतियों का गुलाम बनाना चाहती है। इसी उद्देश्य से सरकारी संपत्तियों को बेचने का काम कर रही है। निजी करण कर रही है। बहुजनों एवं अल्पसंख्यकों को न्यायालय के माध्यम से उन्हें उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित कर रही है। उन पर जुल्म अत्याचार कर रही है। उनका बड़े पैमाने पर उत्पीड़न  किया जा रहा है। तानाशाह शासन चल रहा है। देश में गुंडाराज, जंगल राज, जिसे मनुवादी रामराज्य कहते हैं। वह राज चल रहा है। देश के एक ,,ऐतिहासिक शाहीन बाग दिल्ली,, में चल रहे आंदोलन, को सुनियोजित षड्यंत्र के तहत कुचल दिया गया है। वह आंदोलन सीएए, एनआरसी, एनपीआर के खिलाफ था। वह आंदोलन, अपनी नागरिकता बचाने के लिए, ,,आजादी की दूसरी जंग,, थी। यदि किसान आंदोलन भी खत्म हो गया तो भविष्य में इतना बड़ा आंदोलन खड़ा करने की कोई हिम्मत नहीं जुटा सकेगा। इसलिए किसान आंदोलन नहीं यह आंदोलन देश के मजदूरों, गरीबों, बेरोजगारों एवं संविधान, लोकतंत्र पर आस्था रखने वाले सभी लोगों का आंदोलन होना चाहिए। क्योंकि सरकार असंवैधानिक बिल, कानून, अध्यादेश लाकर आम जनता का तबाही का मंजर खड़ा कर रही है। इसके लिए किसान आंदोलन को समर्थन, सहयोग करना अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि यही आंदोलन, ईवीएम मशीन एवं चुनाव आयोग के खिलाफ खड़ा होगा। तभी हम लोकतंत्र एवं संविधान की रक्षा कर पाएंगे। देश भयानक मोड़ पर खड़ा है। हमें अपने देश को बचाने एकजुट होना पड़ेगा। अन्यथा यह देश फिर गुलाम बन जाएगा। यदि हम देश के सभी नागरिक जागरूक रहे तो जिस तरह से जर्मनी सहित पूरे दुनिया में हिटलर तानाशाह था। और उसने एक दिन भयभीत होकर स्वयं को गोली मारकर उसेआत्महत्या करना पड़ा था। वैसे ही अमेरिका के दंगाई, हिंसक, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एवं उनके मित्र को भी आत्महत्या करने मजबूर होना पड़ेगा। इसलिए देश की एकता अखंडता और लोकतंत्र को मजबूत रखने के लिए तमाम संगठनों के प्रमुख एवं राजनीतिक दलों विपक्षियों को किसान आंदोलन को सफल बनाने में अहम भूमिका निभानी पड़ेगी अन्यथा प्रजातंत्र खत्म और तानाशाह शासन चलेगा। फिर भारत में अपनी सत्ता बचाने अमेरिकी संसद के तरह दंगा हिंसा की पुनरावृति होगी और हम सब गुलाम हो जाएंगे। इसलिए गहरी नींद में सोए हुए मेरे समाज के लोगों एवं देश के करोड़ों शिक्षित नौजवानों बेरोजगारों, मजदूरों, किसानों, एवं महिलाओं, आंदोलन का हिस्सा बनो। जीत निश्चित हमारी होगी।। जीत, देश की एकता और अखंडता की होगी। मनुवादी, फासीवादी ताकतों को रोकने, संगठित संघर्ष की आवश्यकता है। जिनका भी मिशन लोकतंत्र और संविधान बचाना है। उन तमाम राजनीतिक दलों और संगठनों ने एक साथ संगठित संघर्ष करना चाहिए, न, की राजनीति, राजनीति।





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