विकृत बलीप्रथा Pratap Chatse Thursday, April 13, 2023, 08:39 AM बौद्ध धर्म के त्याग को बाद में विकृत बलीप्रथा में तब्दील किया गया| जातक कथाओं में बुद्ध अलग अलग प्राणियों के रूप में त्याग करता है| उच्च धार्मिक जीवन के लिए त्याग करना कितना महत्वपूर्ण होता है, यह इन बौद्ध जातक कथाओं में बताया गया था| आगे चलकर लोगों ने इन कथाओं का शब्दश: अर्थ लिया और धम्म के लिए जीवन का त्याग करने की बजाए उन जातक कथाओं के प्राणियों की बलि चढाने लगे| अपने बच्चों को बौद्ध भिक्खु बनाने की बजाए लोग उन बच्चों की जगह पर प्राणियों की बली चढाने लगे| (Hiltebeitel, when the Goddess was s woman, vol. 2, 2011, p. 417) इस तरह बौद्ध धर्म के उच्चतम तत्वों का गलत अर्थ निकालने की वजह से विकृत बलीप्रथा का उगम हुआ और अपने जीवन का धम्म के प्रसार के लिए त्याग ( बलिदान) करने की बजाए लोग मासूम जानवरों की बली चढाने लगे और अपनी धम्मप्रचार की जिम्मेदारी से दुर भागने लगे| लोगों ने इन विकृत बलीप्रथा परंपरा को छोड़कर महान बौद्ध धर्म की त्याग परंपरा को अपनाना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा अपने बच्चों को बौद्ध भिक्खु बनाना चाहिए| हर बच्चे को उम्र के 5 से 12 साल के दरमियान कम से तीन दिनों के लिए बौद्ध भिक्खु जरूर बनाना चाहिए, जिससे बचपन में उसके मनमस्तिष्क पर धम्म के संस्कार होंगे और धम्म भारत में स्थापित होगा| -डॉ. प्रताप चाटसे, बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क Tags : sacrifice system elements of Buddhism misinterpretation