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मध्यप्रदेश की जानकारी एवं शासन कार्यप्रणाली

Siddharth Bagde
tpsg2011@gmail.com
Saturday, June 22, 2019, 11:34 PM
Govt of India

मध्यप्रदेश के जिलो की जानकारी
1.    मुरैना 
2.    भिंड
3.    ग्वालियर
4.    श्योपुर
5.    दतिया
6.    शिवपुरी 
7.    टीकमगढ़
8.    नीमच 
9.    गुना 
10.    छतरपुर
11.    रीवा
12.    मंदसौर
13.    अशोक नगर
14.    पन्ना
15.    सतना
16.    सीधी सिंगरौली
17.    राजगढ़
18.    विदिशा
19.    सागर
20.    दमोह
21.    सीधी 
22.    सिंगरौली
23.    कटनी
24.    भोपाल
25.    उमरिया
26.    रायसेन
27.    जबलपुर
28.    अनुपपुर
29.    झाबुआ
30.    इंदौर
31.    सिहोर
32.    नरसिंहपुर
33.    धार
34.    देवास  
35.    होशंगाबाद
36.    मंडला
37.    डिंडोरी
38.    अलीराजपुर
39.    खरगौन (पश्चिम निमार)
40.    हरदा
41.    सिवनी
42.    बड़वानी
43.    खंडवा (पूर्व निमार)
44.    बैतूल
45.    छिन्दवाडा 
46.    बालाघाट
47.    बुरहानपुर

मध्यप्रदेश की संक्षिप्त परिचय
1.    स्थापना            ः 1 नवम्बर, 1956
2.    स्थिति             ः 21‘6 उत्तरी आक्षांश से 26‘30’ उत्तरी अक्षांश तथा 74‘9’ पूर्वी देशांतर से 81‘48’ पूर्वी देशांतर
3.    क्षेत्रफल         ः 3,08000 वर्ग किमी
4.    भाषा            ः हिन्दी
5.    राजधानी        ः भोपाल, जिला 50
6.    संभाग 10, तहसील     ः 373
7.    जनसंख्या         ः 6,03,85,118
पुरूष     ः 3,14,56,873
महिला    ः 2,89,28,245

मध्यप्रदेश के अभी तक के राज्यपाल

1    डॉ॰ पट्टाभी सीतारमय्या    1 नवम्बर 1956    13 जून 1957
2    हरिविनायक पटस्कर    14 जून 1957    10 फ़रवरी 1965
3    के. सी. रेड्डी    11 फ़रवरी 1965    2 फ़रवरी 1966
4    पी. वी. दीक्षित (कार्यवाहक)    2 फ़रवरी 1966    9 फ़रवरी 1966
5    के. सी. रेड्डी    10 फ़रवरी 1966    7 मार्च 1971
6    ऍस. ऍन. सिन्हा    8 मार्च 1971    13 अक्टूबर 1977
7    ऍन.ऍन. वांचू    14 अक्टूबर 1977    16 अगस्त 1978
8    सी. ऍम. पुनाचा    17 अगस्त 1978    29 अप्रैल 1980
9    बी. डी. शर्मा    30 अप्रैल 1980    25 मई 1981
10    जी. पी. सिंह (कार्यवाहक)    26 मई 1981    9 जुलाई 1981
11    भगवत दयाल शर्मा    10 जुलाई 1981    20 सितम्बर 1983
12    जी. पी. सिंह (कार्यवाहक)    21 सितम्बर 1983    7 अक्टूबर 1983
13    भगवत दयाल शर्मा    8 अक्टूबर 1983    14 मई 1984
14    के एम चांडी    15 मई 1984    30 नवम्बर 1987
15    ऍन. डी. ओझा (कार्यवाहक)    1 दिसम्बर 1987    29 दिसम्बर 1987
16    के एम चांडी    30 दिसम्बर 1987    30 मार्च 1989
17    सरला ग्रेवाल    31 मार्च 1989    5 फ़रवरी 1990
18    एम ए खान    6 फ़रवरी 1990    23 जून 1993
19    मोहम्मद कुरैशी    24 जून 1993    21 अप्रैल 1998
20    Dr. भाई महावीर    22 अप्रैल 1998    6 मई 2003
21    राम प्रकाश गुप्ता    7 मई 2003    1 मई 2004
22    कृष्ण मोहन सेठ (कार्यवाहक)    2 मई 2004    29 जून 2004
23    बलराम जाखड़    30 जून 2004    29 जून 2009
24    रामेश्वर ठाकुर    30 जून 2009    7 सितम्बर 2011
25    राम नरेश यादव    8 सितम्बर 2011[1]    7 सितम्बर 2016
26    ओम प्रकाश कोहली (अतिरिक्त चार्ज )    8 सितम्बर 2016    जनवरी 2018
27    आनंदीबेन पटेल    जनवरी 2018    आज तक

मध्यप्रदेश के अभी तक के मुख्यमंत्री

1    रविशंकर शुक्ल    1 नवम्बर 1956    31 दिसम्बर 1956    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
2    भगवंतराव मंडलोई    1 जनवरी 1957    30 जनवरी 1957    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
3    कैलाश नाथ काटजू    31 जनवरी 1957    14 मार्च 1957    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
4    कैलाश नाथ काटजू (2)    14 मार्च 1957    11 मार्च 1962    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
5    भगवंतराव मंडलोई (2)    12 मार्च 1962    29 सितंबर 1963    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
6    द्वारका प्रसाद मिश्रा    30 सितंबर 1963    8 मार्च 1967    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
7    द्वारका प्रसाद मिश्रा (2)    9 मार्च 1967    29 जुलाई 1967    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
8    गोविंद नारायण सिंह    30 जुलाई 1967    12 मार्च 1969    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
9    नरेशचंद्र सिंह    13 मार्च 1969    25 मार्च 1969    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
10    श्यामा चरण शुक्ल    26 मार्च 1969    28 जनवरी 1972    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
11    प्रकाश चंद्र सेठी    29 जनवरी 1972    22 मार्च 1972    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
12    प्रकाश चंद्र सेठी (2)    23 मार्च 1972    22 दिसम्बर 1975    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
13    श्यामा चरण शुक्ल (2)    23 दिसम्बर 1975    29 अप्रैल 1977    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
राष्ट्रपति शासन    29 अप्रैल 1977    25 जून 1977    
14    कैलाश चंद्र जोशी    26 जून 1977    17 जनवरी 1978    जनता पार्टी
15    विरेंद्र कुमार सकलेचा    18 जनवरी 1978    19 जनवरी 1980    जनता पार्टी
16    सुंदरलाल पटवा    20 जनवरी 1980    17 फ़रवरी 1980    जनता पार्टी
राष्ट्रपति शासन    18 फ़रवरी 1980    8 जून 1980    
17    अर्जुन सिंह    8 जून 1980    10 मार्च 1985    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
18    अर्जुन सिंह (2)    11 मार्च 1985    12 मार्च 1985    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
19    मोतीलाल वोरा    13 मार्च 1985    13 फ़रवरी 1988    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
20    अर्जुन सिंह (3)    14 फ़रवरी 1988    25 जनवरी 1989    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
21    मोतीलाल वोरा (2)    25 जनवरी 1989    8 दिसम्बर 1989    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
22    श्यामा चरण शुक्ल (3)    9 दिसम्बर 1989    4 मार्च 1990    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
23    सुंदरलाल पटवा (2)    5 मार्च 1990    15 दिसम्बर 1992    भारतीय जनता पार्टी
राष्ट्रपति शासन    16 दिसम्बर 1992    6 दिसम्बर 1993    
24    दिग्विजय सिंह    7 दिसम्बर 1993    1 दिसम्बर 1998    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
25    दिग्विजय सिंह (2)    1 दिसम्बर 1998    8 दिसम्बर 2003    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
26    उमा भारती    8 दिसम्बर 2003    23 अगस्त 2004    भारतीय जनता पार्टी
27    बाबूलाल गौर    23 अगस्त 2004    29 नवम्बर 2005    भारतीय जनता पार्टी
28    शिवराज सिंह चौहान    29 नवम्बर 2005    12 दिसम्बर 2008    भारतीय जनता पार्टी
29    शिवराज सिंह चौहान (2)    12 दिसम्बर 2008    दिसम्बर 2013    भारतीय जनता पार्टी
30    शिवराज सिंह चौहान (3)    दिसम्बर 2013    16 दिसंबर 2018    भारतीय जनता पार्टी
31    कमल नाथ    17 दिसम्बर 2018    पदासीन    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

भारतीय संविधान में संघीय कार्यपालिका का स्वरूप
शासन - व्यवस्था का केन्द्रीकृत ढाॅचा ...
    भारत के संविधान के भाग-अ के अध्याय- 1 में संघ की कार्यपालिका का प्रावधान किया गया है। कार्यपालिका राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मन्त्रीपरिषद व महान्यायवादी से मिलकर बनती है। भारत की संसदीय व्यवस्था में दो प्रकार की कार्यपालिका होती है। पहली नाम मात्र की कार्यपालिका, जिसके प्रमुख राष्ट्रपति होते है। दूसरी वास्तविक कार्यपालिका, जो प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कार्य करती है।
राष्ट्रपति - 
भारतीय संविधान की अनुच्छेद-52 में प्रावधान किया गया है कि भारत का एक राष्ट्रपति होगा जो संघ की कार्यपालिका का प्रधान होगा तथा अनुच्छेद-53 यह प्रावधान करता है कि संघ सरकार की समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी जो स्वयं या अपने अधीनस्थों के माध्यम से इस शक्ति का उपयोग करेगा, अतः भारत के राष्ट्रपति की स्थिति ब्रिटेन के सम्राट की तरह केवल नाम मात्र की है, जो कार्यपालिका का औपचारिक प्रधान होता है। भारत में राष्ट्रपति ब्रिटेन की तरह वंशानुगत न होकर एक निर्वाचक मण्डल द्वारा चुना जाता है।
निर्वाचन -
    भारत में राष्ट्रपति का निर्वाचन मण्डल के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर एकल संक्रमणेय मत प्रणाली द्वारा किया जाता है। इसमें संसद के दोनो सदनो के निर्वाचित सदस्य, राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्य, संघ राज्य क्षेत्रों (दिल्ली, पुदुचेरी) की विधानसभा के निर्वाचित सदस्य भाग लेते है इस प्रकार राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष विधि द्वारा सम्पन्न होता है।
पद की योग्यताएँ:-
    स्ंाविधान के अनुच्छेद7 58 के अनुसार राष्ट्रपति के पद के लिए निम्न योग्यताएं धारित करने वाला व्यक्ति राष्ट्रपति के पद के लिए योग्य होगा।
- वह भारत का नागरिक हो।
- 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
- लोकसभा का सदस्य चुने जाने के योग्य हो ।
- भारत या राज्य सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर न हो।
उसके अलावा वर्ष 1997 से जारी एक अध्यादेश के बाद राष्ट्रपति पद के उम्मीद्वार के 50 सदस्य प्रस्तावक, व 50 सदस्य अनुमोदक के रूप में होने चाहिए।
ऽ    पदग्रहण करने से पहले राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष संविधान की तीसरी अनुसूची के प्रारूप के अनुसार संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण तथा परिक्षण की शपथ लेता है।
ऽ    राष्ट्रपति की पदावधि पद ग्रहण करने से पाॅच वर्ष वक की होती है तथा वह अपना त्याग पत्र उप-राष्ट्रपति को सम्बोधित कर सौंप सकता है।
ऽ    राष्ट्रपति को अपने कार्यकाल के पूर्ण होने से पहले महाभियोग प्रक्रिया द्वारा हटाया जा सकता है।
ऽ    राष्ट्रपति को रू. 150000 प्रतिमाह आयकर से मुक्त वेतन के रूप में मिलता है। इसके अतिरिक्त अन्य भत्ते व सुविधाए दी जाती है।
ऽ    राष्ट्रपति को संविधान के क्षरा निम्न प्रकार की शक्तियाँ प्रदान की गई है -
कार्यपालिका शक्तियाँ‘ -
ऽ    प्रधानमंत्री की नियुक्ति करना तथा उसके परामर्श से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति तथा उन्हें पद से हटाना।
ऽ    सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश तथ अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करना।
ऽ    कैग तथा महान्यायवादी संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य व अध्यक्ष, मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति करना।
ऽ    राज्य के राज्यपाल, संघ राज्य क्षेत्रों के उप-राज्यपाल व प्रशासकों की नियुक्ति करना।
ऽ    अन्तर्राज्यीय परिषद्, वित आयोग, भाषा आयोग आदि का गठन करना।
ऽ    राजदूतों तथा अन्य विदेशी निशानों में नियुक्तियाॅ करना।
ऽ    समान पुरस्कार तथा अलंकरणों का वितरण करना। 
सैन्य शक्ति -
    राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति होता है जो संसद के अनुमोदन से युद्ध प्रारम्भ व समापित की घोषणा करता है।
राजनयिक शक्ति -
    राष्ट्रपति राज्य के अध्यक्ष की हैसियत से भारत के राजदूतों और प्रतिनिधियों को अपना प्रत्यय-पत्र देकर बाहर के देशों में भेजता है, तथा बाहर से भारत में आए राजदूतों और प्रतिनिधियों के प्रत्यय पत्र को स्वीकार करता है। राष्ट्रपति अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में अपने देश का प्रतिनिधित्व करता है तथा किसी दूसरे देश के साथ किए गए संन्धि व समझौते राष्ट्रपति के नाम से जाने जाते है, जिनका संसद द्वारा अनुमोदन किया जाता है।
राष्ट्रपति पर महाभियोग प्रकिया
       राष्ट्रपति पर ’’संविधान का उल्लंघन’’ करने पर महाभियोग चलाकर उसे पद से हटाया जा सकता है (अनुच्छेद-61)। संसद का कोई भी सदन राष्ट्रपति पर संविधान के उल्लंघन का आरोप लगाएगा, तथा दूसरा सदन उन आरोपों की जाँच कराएगा किन्तु ऐसा आरोप तब तक नही लगाया जा सकता जब तक चैदह दिन की लिखित सूचना देकर सदन की कुल सदस्य संख्या के कम-से-कम एक-चैथाई सदस्यों ने हस्ताक्षर करके प्रस्थापना अन्तर्विष्ट करने वाला संकल्प प्रस्तावित न किया हो।
ऽ    उस सदन की कुल सदस्य संख्या के दो- तिहाई बहुमत द्वारा ऐसा संकल्प पारित नही किया गया हो।
ऽ    राष्ट्रपति को ऐसे मामले मे उपस्थित होने और अपना प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार होगा। यदि ऐसी जाँच के परिणामस्वरूप राष्ट्रपति के विरूद्ध लगाया गया आरोप प्रमाणित हो जाता है तो आरोप की जाँच करने वाले सदन की कुल सदस्य संख्या के कम-से -कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा संकल्प पारित कर दिया जाता है। संकल्प पारित किए जाने की तिथि से ही राष्ट्रपति पदच्युत समझा जाएगा।
ऽ    अनुच्छेद -56 और 62 के उपबन्धों के अनुसार राष्ट्रपति को महाभियोग के अलावा किसी और ढंग से नही हटाया जा सकता है। इस प्रकार महाभियोग संसद की एक अर्द्ध- न्यायिक प्रकिया है। इस संदर्भ मे दो बाते ध्यान देने योग्य है।
(1)  संसद के दोनों सदनों के नामांकित सदस्य जिन्होने राष्ट्रपति के चुनाव में भाग नही लिया था, इस महाभियोग मे भाग ले सकते है।
(2) राज्य विधानसभाओं के नवनिर्वाचित सदस्य एवं दिल्ली तथा पुदुचेरी केन्द्र शासित राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य इस महाभियोग प्रस्ताव में भाग नही लेते हैं जिन्होने राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लिया था।
विधायी शक्तियाँ -
भारत का राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है, जिसके कारण इसको निम्न विधायी शक्तियाॅ प्राप्त है-
ऽ     यह संसद सत्र को आहूत तथा सत्रावसान करता है, और मन्त्रिमण्डल की सिफारिश पर संसद को भंग कर सकता है।
ऽ    संसद द्वारा पारित विधयेक राष्ट्रपति की स्वीकृति से ही कानून बन सकता है। राष्ट्रपति चाहे तो पारित विधेयक को (धन विधेयक को छोड़कर) एक बार पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है।
ऽ    राष्ट्रपति संसद को सम्बोधित करता है, तथा संसद का सत्र राष्ट्रपति के अभिभाषण के साथ ही प्रारम्भ होता है।
ऽ    राष्ट्रपति राज्यसभा में 12 सदस्यों को (जो साहित्य कला, विज्ञान तथा अन्य से सम्बन्ध रखते हो) को मनोनीत कर सकता है। तथ लोकसभा में एंग्लों- इण्डियन समुदाय के दो सदस्यों को मनोनीत कर सकता है।
ऽ    जब संसद का कोई भी सदन सत्र में न हो तो राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है।
ऽ    राष्ट्रपति, कैग, यूपीएससी तथा आयोगो तथ समितियों के प्रतिवेदन को संसद के पटल पर रखवाता है।
न्यायिक शक्तियाँ -
    संविधान के अनुच्छेद-72 के अनुसार राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी दण्ड को क्षमा कर दे, कम कर दे या किसी अन्य रूप में दण्ड को परिवर्तित कर दे, लेकिन इन अधिकारों का प्रयोग वह निम्न मामलों में करता है।
ऽ    उन सभी मामलों मे, जिनमें मृत्ुदण्ड न्यायालय द्वारा दिया गया हो।
ऽ    उन सभी मामलों में, जिनमें किसी व्यक्ति को कानून के अधीन अपराध के लिए दण्ड दिया गया हो।
ऽ    उन सभी मामलों में, जिनमें दण्ड सैनिक न्यायालय द्वारा दिया गया है। परन्तु ऐसी शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति अपने मंत्रिमण्डल की सलाह से ही कर सकता है।
क्षमादान से संबधित शब्दावली
लघुकरण ( Commute ) एक दण्ड के बदले दूसरा दण्ड देना (प्रकृति बदलना) जैसे-बडे दण्ड को कम करना या कठोर कारावास को साधारण कारावास में बदलना।
परिहार (Remission) दण्ड की मात्रा को उसकी प्रकृति में परिवर्तन किए बिना कम करना, जैसे- दो वर्ष के कठोर कारावास को एक वर्ष के कठोर कारावास में बदलना।
विराम (Respite) किन्ही विशेष कारणों से दण्ड को कम करना या प्रकृति बदलना, जैसे - गर्भवती महिला को मृत्युदण्ड के स्थान पर आजीवन कारावास देना।
विलम्ब  (Reprieve) दण्ड की तिथि को आगे बढ़ाना, जैसे - कारावास देना।    
                
        आपातकालीन शक्तियाँ
      भारत के राष्ट्रपति को संविधान के भाग-18 में अनुच्छेद-352 से 360 तक                                                                                                                                                          आपातकालीन शक्तियां दी गई है, जो निम्न प्रकार की है।
     युद्ध, विदेशी आक्रमण तथा सशस्त्र विद्रोह से उत्पन्न संकट यदि राष्ट्रपति को यह समाधान हो जाए कि युद्ध या विदेशी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा खतरे मे है तो वह अनुच्छेद-352 के अनुसार भारत के किसी क्षेत्र या सम्पूर्ण भारत में आपातकाल की घोषणा कर सकता है। लेकिन यह घोषणा मंत्रीमण्डल के लिखित परामर्श के आधार पर की जाएगी, अब तक इस प्रकार की घोषणा चार बार (1962,1965,1971, 1975) की जा चुकी है।
राज्य में सवैधानिक तन्त्र के विफल होने पर
  जब राष्ट्रपति को सम्बन्धित राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट पर या किसी अन्य स्त्रोत से यह विश्वास हो जाए कि राज्य का शासन संविधान के प्रावधान के अनुरूप नही चल रहा है तो वह अनुच्छेद-356 के अनुसार राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समीक्षा की जा सकती है।
आर्थिक संकट के समय
  यदि राष्ट्रपति को यह समाधान हो जाए कि भारत या उसके राज्य क्षेत्र का कोई भाग वित्तीय संकट में है, तो वह अनुच्छेद-360 के अनुसार वित्तीय आपात की घोषणा कर सकता है। भारत में अभी तक इस प्रकार की घोषणा नही की गई है।
                    वित्तीय शक्तियाँ
 भारत के राष्ट्रपति को वित्तीय क्षेत्र से सम्बन्धित निम्न शक्तियाँ प्रदान की गई है-
- कोई भी धन विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति से ही संसद में पेश किया जाएगाां अन्यथा नही।
- राष्ट्रपति की ओर से संसद में बजट वित्त मंत्री प्रस्तुत करता है।
- भारत की आकस्मिक निधि पर राष्ट्रपति का नियन्त्रन है।
- राष्ट्रपति के अनुमोदन से ही पूरक अनुदार मांगे तथा अतिरिक्त अनुदान मांगे संसद में पेश की जाती है।
- राष्ट्रपति को राज्यों की वित्तीय स्थिति निर्धारित करने के लिए प्रत्येक पाॅच वर्ष पर वित्त आयोग का गठन करने का अधिकार प्राप्त है।

वीटो शक्तियाॅ
संसद द्वारा पारित कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति से ही अधिनियम बन सकता है अन्यथा नही। जब संसद द्वारा पारित विधेयक स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति के पास जाता है तब राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद-111 के अनुसार निम्न विकल्प होते है। 
- वह विधेयक पर अपनी अनुमति दे सकता है। नही दे सकता है।
-  विधेयक पर अपनी अनुमति सुरक्षित रख सकता है।
- यदि वह धन विधेयक नही है तो संसद के पास पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है। संसद के द्वारा पारित विधेयक पर राष्ट्रपति को तीन प्रकार की वीटो शक्तियाँ प्राप्त होती है आत्यान्तिक वीटो जब राष्ट्रपति किसी विधेयक को अनुमति न दे तो वह विधेयक समाप्त हो जाता है। इस प्रकार के वीटो का प्रयोग सामान्यतः गैर- सरकारी विधेयको के लिए किया जाता है। निलम्बनकारी वीटो जब राष्ट्रपति किसी विधेयक पर अपनी अनुमति देने से पहले उस विधेयक को पुनर्विचार के लिए वापस भेजता है तो वह अपनी निलम्बनकारी वीटो शक्ति का प्रयोग करता है। जेबी वीटो जब राष्ट्रपति किसी विधेयक पर न तो अनुमति देता है, ना ही अनुमति को रोकता है, ना ही विधेयक को पुनर्विचार के लिए वापस भेजता है इस स्थिति में विधेयक राष्ट्रपति के पास ही पड़ा रहता है। इस शक्ति का प्रयोग पहली बार वर्ष 1986 में डाक संशोधन विधेयक पर किया गया था।
उपराष्ट्रपति
 भारत के संविधान के अनुसार उप-राष्ट्रपति देश का दूसरा सर्वोच्च पद है।
ऽ    भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 63 के अनुसार भारत के लिए एक उप- राष्ट्रपति का प्रावधान करता है जिसे राज्यसभा के पदेन सभापति के रूप में मान्यता दी गई है।
ऽ    उप- राष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचक मण्डल द्वारा किया जाता है, जिसमें संसद के दोनों सदनो के सदस्य ( निर्वाचित तथा मनोनीत) भाग लेते है।
ऽ    उप - राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर एकल सक्र्रमणीय मत प्रणाली द्वारा गुप्त रूप से होता है।
ऽ    उप-राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए निम्न योग्यताएँ होना आवश्यक है।
ऽ     वह भारत का नागरिक हो।
ऽ     35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका है।
ऽ    राज्यसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो।
ऽ    वह किसी लाभ के पद पर न हो।
ऽ    इसके अलावा चुनाव में नामांकन के लिए 20 प्रस्तावक व 20 अनुमोदक का होना आवश्यक है। उप- राष्ट्रपति को राष्ट्रपति द्वारा शपथ दिलाई जाती  है जो संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा व निष्ठा बनाए रखने तथा अपने कर्तव्य व पालन की शपथ लेता है।
ऽ    उप-राष्ट्रपति का कार्यकाल पाॅच वर्ष होता है, तथा उसे समय से पूर्व महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा हटाया जा सकता है, वह स्वयं ही राष्ट्रपति को सम्बोधित कर अपना पद त्याग सकता है।
ऽ    उप- राष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता हे, जो राज्यसभा के अधिवेशनों की अध्यक्षता करता है। जब राष्ट्रपति अपने पद के कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ होता है, तब उप-राष्ट्रपति उसके पद के कर्तव्य का निर्वहन करता है।
प्रधानमंत्री
   भारतीय संविधान के अनुच्छेद-74 में प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद होगी, जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होगा।
ऽ    राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता में से प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है, तथा प्रधानमंत्री की सलाह पर अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है।
ऽ    संविधान में प्रधानमंत्री के लिए योग्यताओं का निर्धारण नही किया गया है। इसकी योग्यता वही होती है जो संसद सदस्यों के लिए है।
ऽ    सामान्यतः प्रधानमंत्री का कार्यकाल पांच वर्ष होता है। परन्तु उसका कार्यकाल लोकसभा में बहुमत के समर्थन पर निर्भर करता है। अतः बहुमत खो देने पर प्रधानमन्त्री को त्याग- पत्र  देना पड़ता है।
कार्य
ऽ    राष्ट्रपति को सरकार के सभी निर्णयों से अवगत कराना।
ऽ    किसी मंत्री द्वारा लिए गए निर्णय को मंत्रीमण्डल के सम्मुख रखवाना
ऽ    राष्ट्रपति द्वारा मांगी गई सूचना उपलब्ध कराना।
ऽ    मंत्रियों के बीच विभागों का बॅटवारा करना।
ऽ    सभी प्रमुख नीतियों का क्रियान्वयन कराना।
ऽ    मंत्रीमण्डल की बैठकों की अध्यक्षता करना।
ऽ    संसद सत्र को आहूत करने तथा सन्नावसान करने के लिए राष्ट्रपति को सलाह देना।
ऽ    राष्ट्रपति से लोकसभा भंग करने की सिफारिश करना।
ऽ    संसद में सरकार की नीतियों की घोषणा करना।
ऽ    योजना आयोग, राष्ट्रीय विकास परिषद अन्तर्राष्ट्रीय परिषदों आदि की अध्यक्षता करना।
मन्त्रिपरिषद्
 संविधान में मंत्रिपरिषद का उल्लेख किया गया है, जो देया की वास्तविक कार्यपालिका होती है।
गठन
संघ की मन्त्रिपरिषद का गठन प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। मूल संविधान में कैबिनेट शब्द का उल्लेख नही किया गया है, परन्तु 44 वे संविधान संशोधन के द्वारा अनुच्छेद-352 के तहत कैबिनेट शब्द का उल्लेख किया गया है, और मन्त्रिमंडल का गठन कैबिनेट स्तर के मंत्रियों से होता है।  मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करते है।
मंत्रिपरिषद में निम्न स्तर होते है
ऽ    कैबिनेटस्तर के मंत्री
ऽ    राज्य स्तर के मंत्री
ऽ    उप-मंत्री
ऽ    संसदीय सचिव
कैबिनेट स्तर का मंत्री  अपने विभाग का प्रमुख होता है, जिसकी सहायता के लिए राज्य मंत्री व उप मंत्री होते है।
मंत्रियों की संख्या
  प्रधानमंत्री अपने विवेकाधिकार से मंत्रियों की संख्या को निर्धारित करता है। परन्तु 91 वें संविधान संषोधन के अन्तर्गत वर्ष 2004 से यह निर्धारित किया गया है कि मंत्रीपरिषद की संख्या प्रधानमंत्री सहित लोक सभा की कुल सदसय संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नही होगी।
कार्य
ऽ    मंत्रीपरिषद राष्ट्रीय नीतियों का निर्माण करना।
ऽ    पूरे देश के शासन संचालन का कार्य करना।
ऽ    पूरे राष्ट्र के धन का निमियमन करना।
ऽ    कानून को लागू करना व व्यवस्था को बनाए रखना।
        मन्त्रिपरिषद अनेक विधायन सम्बन्धी कार्य भी करती है।    
ऽ    विधेयक तैयार करना व संसद में प्रस्तुत करना।
ऽ    संसद सदस्यों के प्रश्नों के उत्तर देना।
ऽ    राष्ट्रपति के नाम से अध्यादेश जारी करना।
ऽ    देष के उचच शासनाधिकारियों की नियुक्ति करना।
ऽ    विदेश नीति-निर्माण व क्रियान्वयन का कार्य करना।
राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपात की घोषणा 44 वे संशोधन अधिनियम के बाद मंत्रिमण्डल के लिखित परामर्श के बाद ही करता है।
महान्यायवादी
 भारत के महान्यायवादी के पद की व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद-76 के अन्तर्गत की गई है। यह देश का सर्वोच्च कानून अधिकारी होता है।
  महान्यायवादी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। जो राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करता है।
            कार्य
ऽ    विधिक रूप से ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करें जो राष्ट्रपति द्वारा सौंपे गये है।
ऽ    भारत सरकार को विधि सम्बन्धी ऐसे विषयों पर सलाह दें जो राष्ट्रपति द्वारा सौंपे गये है।
ऽ    संविधान या किसी अन्य विधि द्वारा प्रदान किए गए कृत्यों का निर्वहन करना।

राष्ट्रपति, महान्यायवादी को निम्न कार्य सौंपता है
ऽ    संविधान के अनुच्छेद-143 के तहत, राष्ट्रपति के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व
ऽ    भारत सरकार से सम्बन्धित मामलों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में भारत सरकार की ओर से पेश होना ।
ऽ    सरकार से सम्बन्धित किसी मामले मे उच्च न्यायालय में सुनवाई का अधिकार

संग्रहलेख - सिद्धार्थ बागड़े





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