एक और भी ‘भारत’ है TPSG Wednesday, August 14, 2019, 07:55 AM एक और भी ‘भारत’ है अभी आजादी की सालगिरह हमनें 15 अगस्त 2011 को मनाई है। ज्यादा दिन नहीं हुए उस घटना को, देश के कोने कोने में आजादी की सालगिरह मनाई गयी। ‘मेरा भारत महान’ के नारे लगाते हुए हमनें देश की आजादी का गौरव किया। देश का गौरव भी करना चाहिए, मगर हमारी आंखे खुली भी होनी चाहिये ताकि देश में रहने वाले गरीबों का वास्तव हमें दिखायी दें, हमारे कान भी खुले होने चाहिये ताकि जो लोग गरीबी, अस्पृश्ता, सामाजिक विषमता एवं नाइंसाफी के शिकार हो गये है, उनकी आवाज भी हमें सुनाई देनी चाहिये, मगर हम ऐसा नहीं करते। इदेश का जब हम गुनगान करते है तब हमारे आंखों के सामने कान्वेन्ट के वह बालक रहते है जो वातानुकूलित कार में बैठकर स्कूल में आते है। भारत को इंडिया कहते है, माता-पिता को मम्मी डैडी कहते है। हमारी नजरों के सामने वह लोग हरते है जो गले में सोने की चेन पहनकर एवं बदनपर 1500 रूपये मीटर का वस्त्र पहनकर देशसेवक कहलाते है। क्या हम इन लोगों को देखकर ही ‘मरा भारत महान’ कहते है! क्या इन लोगों को देखकर ही भारत को सुखी, समृद्ध और खुशहाल देश कहा जा सकता है। वह भारत इस भारत से बहुत भिन्न है। दुसरा भारत झुग्गी झोपड़ियों में बसा है। नाली के किनारे पर बसा है। यहां झोपड़पट्टी के बच्चे और नाली में तैरने वाले कीड़े-मकौड़ों के बीच कोई अंतर नहीं है। यहां कोई सपना नहीं होता, यहां कोई अतित या भविष्य नहीं होता, यहां सिर्फ ‘‘वर्तमान’’ होता है, काला वर्तमान, घनाकाला वर्तमान, सुबह खाना खा लिया तो खा लिया, रात के खाने की गारंटी नहीं, हाॅं, पानी भरपूर मिलेगा, भरपूर पानी पी लो और भूखे पेट सो लो। यहां पैदा होने वाला बच्चा पैदा होते ही सीधा बुढ़ापे में कदम रखता है। यहां बचपन, मौजमस्ती या खुशियाॅ जैसी कोई चीज नहीं है। यहां कदम दर कदम सिर्फ सवाल ही सवाल नजर आते है। रोटी का सवाल! कपड़ों का सवाल! रहने का सवाल! रोजगार का सवाल! इज्जत का सवाल! इंसाफ का सवाल! उनके जीवन का अंत है, मगर सवालों का कभी अंत नहीं है, इन सवालों में इनकी जिंदगी इसकदर उलझ गयी है कि सुलझाते सुलझाते जीवन की आखरी सांस चलने लगती है। यह दूसरा भारत है, यहां गरीबी का अभिशाप जीवन के अंत तक पीछा नहीं छोड़ता। जीवन साथ छोड़ता है, मगर गरीबी साथ नहीं छोड़ती। हम इक्कीसवीं सदी में प्रवेश करने का गौरव महसूस करते है। इक्कीसवीं सदी में हमने कदम रखा है तो कौन सा तीर मारा है। कठपुतली की तरह चलते रहे और इक्कीसवीं सदी में पहुंच गये। दसवीं सदी और इक्कीसवीं सदी में फर्क ही क्या है! चांद पर जाकर आये हम आसमान को छू लेते है, अरे..... जमीन पर रहने वाले आदमी को रोटी का टूकड़ा खाने को नसीब नहीं होता तो चांद का टूकड़ा हाथ में लेकर क्या करोगें! यहां पहत्तर फीसदी गरीबों की आंखों में आंसू तैर रहे है तो फाइव्ह स्टार होटर के स्वीमिंग पूल में तैरने का क्या मजा है! जहां बेरोजगारों का दिल दिन रात चिंता से जागता है वहां घी के चिराग जलाने से क्या फायदा! मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुत क्षेत्र में आदिवासियों को आज भी दो वक्त का खाना नसीब नहीं होता। वे आज भी झाड़ की छाल और पत्तियाॅं खाकर जीवन बितातें है। कभी-कभी खजूर के पेड़ का गुदा खाकर जीवित रहने का प्रयास करते है। आज भी वे एक लंगोटी पर और उनके बच्चे नंगधडंग रहते है। यह है दुसरे भारत का रूप! कलकत्ता के सोनागाठी, मुंबई के फोटासरोड और पूना के बुधवारपेठ में छोटी-छोटी बच्चियों के जिस्म का सौदा होता है, यह है दुसरे भारत का रूप! जमींदार से मुंहजोरी करने पर जानकीदेवी नामक एक दलित महिला पर अत्याचार, यह है दुसरे भारत का रूप! जमीन का हक मांगने पर बिहार के देहातों में एक रात में पचास-पचास दलितों को उनके बीबी-बच्चों सहित मौत के घाट उतारा जाता है, यह है दुसरे भारत का रूप! यहां के बच्चे बचपन से ही गुमराह जिंदगी बिताते है, स्कूल में जाकर पढ़ाई करने के बजाय हाथ में चक्कू-छूरी ले लेते है। बड़े होकर इंसान बनने के बजाय अपराधी कहलाते है। दूसरे भारत के लोगों को हमेशा तीसरी आॅख से देखा जाता है, नाक भौं सिकुडकर वे कहते है, ‘‘वो तो पिछड़ी जाति का है, निचले समाज का है, ‘‘अगर निचले समाज का आदमी अच्छी पोजिशन में दिखा तो कहते है, ‘‘साला......सरकार का दामाद है, इसलिये दिमाग घूम गया।’’ दूसरे भारत के लोगों का अपना अलग मुकद्दर है। उन्हें अपनी ही दुनिया में रहने की इजाजत है, वे अगर ऊंचा उठना भी चाहे तो उनकी जाति पर उंगली रखी जाती है। डाॅ. बाबासाहब आंबेडकर ने कहा था कि इस देश की व्यवस्था विषमतावादी है। इस व्यवस्था के तहत एक मजदूर अपने बेटे को मजदूर ही बनाना चाहता है और एक कलेक्टर अपने बेटे को कलेक्टर बनाना चाहते ह। बाबासाहब इस देश में समतामूलक व्यवस्था लाना चाहते थे। ऐसी व्यवस्था जिसमें एक मजदूर भी अपने बेटे को कलेक्टर बनने का सपना देख सके, सपना ही नहीं बल्कि उसकी गुणवत्ता के आधारपर उसे कलेक्टर बना सके। मगर आज ऐसे नहीं होने दिया जा रहा है। आज की शिक्षाप्रणाली भी ऐसी बनायी गयी है कि मजदूर का बेटा नगर परिषद् की बेकार स्कूल में पढ़े और रईस का बेटा फाइव स्टार कल्च्र की स्कूलों में पढ़े जहां घुडसवारी और तैराकी से उसके कलेक्टर बनने की तैयारी की जाती है। दुसरे भारत के लोगों को गुलामों की हैसियत से देखा जाता है, और अगर वे बेहतर गुलामी करें तो उन्हंे सराहा जाता है। इस भारत के लोग अगर अपने कौम से गद्दारी करें तो उन्हें सत्ता की गद्दी पर बिठाया जाता है। बंगारू लक्ष्मण, शाहनवाज हुसैन, दादासाहेब रूपवते, तपासे, आर.डी. भंडारे, भाऊराव बोरकर यह इतिहास के कुछ गद्दारों के नाम है जो दुसरे भारत में पैदा तो हुए मगर अपनी ही कौम से गद्दारी करके सत्ता की गद्दी पर बैठ गये। कल तक दुसरे भारत के लोग गुलामी की जिंदगी बसर कर रहे थे। मगर तथागत गौतम बुद्ध, महात्मा फुले, छत्रपति शाहू महाराज और डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर जैसे महापुरूषों ने उन्हें गुलामों की श्रृंखला से मुक्त कराया। आज दुसरे भारत के लोग सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ बगावत करने पर आमादा हो गये है। आज जागृती की हवा उनके बीच बहने लगी है। प्रस्थापित लोग उनके उत्थान को रोकना चाहते है। जातिवाद कागज पर खत्म किया गया है मगर वास्तव में और जोर से पनप रहा है। आरक्षण के माध्यम से उनकी तरक्की हो रही है, इसलिये देश के कोने कोने में प्रस्थापितों द्वारा आरक्षण का विरोध किया जा रहा है। भारतीय संविधान में उनको समता का अधिकार दिया है, इसलिये मनुवादी तत्व भारतीय संविधान की समीक्षा कर रहे है। वे लोग दुसरे भारत को बरकरार रखना चाहते है, दो भारत के बीच की दूरियां मिटाना नहीं चाहते। मनु की वर्णव्यवस्था को यथाभूत रखना चाहते है। धर्म के नाम पर आदमी-आदमी के बीच दरारें बनाकर रखना चाहते है, इसीलिये कभी आडवाणी की रथ यात्रा चलती है तो कभी नरेन्द्र मोदी की गौरवयात्रा चलती है। आज सम्राट अशोक के भारत का निर्माण करने की जरूरत है। यह निर्माण दुसरे भारत के लोग ही कर सकते है, क्योंकि वे फूले, शाहू, आंबेडकर की विचारधारा पर चलने वाले लोग है, वे समता, स्वतंत्रता एवं भाईचारे के पूजारी है। वे इंसान और इंसानियत पर श्रद्धा रखते है, और आज संघर्ष करने के लिये वे तत्पर और तैयार है। उनकी कौम देशभक्तों की कौम है और देश के खातिर वे मरमिटने को तैयार है। यहीं लोग एक दिन इस देश का चरित्र बदल देंगे। यहीं लोग एक दिन सामाजिक विषमता को जड से उखाड देंगे। यहीं लोग एक दिन नवभारत का निर्माण करेंगे, वह भारत खंडित नहीं होगा। वह भारत बुलंद और मजबूर होगा। तथागत की प्रज्ञाशील करूणा की सुगंध दूर-दूर तक फैलेगी। हवा के झोंकों के साथ भाईचारे का गीत दूर-दूर तक गूंजेगा। तब कहीं हम सही मायने में ‘‘मेरा भारत महान’’ गर्व से कहेंगे। - विजय तायडे Tags : sewers swimming children drain India Another