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हमारा शिक्षक दिवस 3 जनवरी

TPSG

Tuesday, September 10, 2019, 07:14 PM
Savitri Bai Fule

आज मै ब्राह्मण जात का ''सर्वपल्ली राधाकृष्णन'' और मूलनिवासी बहुजन ''राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले'' दोनो के ''एजुकेशन'' के लिए किये गए कार्यो को बताउंगा, फिर फैसला आप लोग ही करना की किसका जन्मदिन ''राष्ट्र गुरु'' / टीचर दिवस के रूप में मनाना चाहिए। 

1) ब्राह्मण जात सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पैदा होने के 40 साल पहले से ही ''राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले'' ने आधुनिक भारत में एजुकेशन के फिल्ड में क्रांति सुरु कर दी थी (सबूत = ''राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले'' का जन्म 11 अप्रैल 1827 में हुआ और उन्होंने क्रांति की सुरुवात 1848 को कर ही दिया जबकि विदेशी ब्राह्मण जात ''सर्वपल्ली राधाकृष्णन'' का जन्म 5 sep 1888 को हुआ मतलब फुले की क्रांति के 40 साल बाद ) 

2) ''राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले'' ने 1848 से शुरू कर 4 साल के अन्दर ही करीब 20 स्कूल खोल डाले ,जब की ब्राह्मण सर्वपल्ली ने एक भी स्कूल नहीं खोला।

3) ''राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले ने पिछड़ी जात के लोगो को बिना पैसे लिए एजुकेशन दिया ,जब की ब्राह्मण जात सर्वपल्ली ने जिंदगी भर पैसे की लालच में लोगो को पढ़ाया !

4) राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले'' ने खुद की जेब से पैसे खर्च कर लोगो को education दी ,जबकि ब्राह्मण जात सर्वपल्ली ने एजुकेशन देने के नाम पर खूब पैसा कमाया।

5) गाव देहातो में ''राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले'' ने 20 स्कूल खोले ,जब की ब्राह्मण जात सर्वपल्ली गावो में स्कूल खोलने गया ही नहीं।

6) सबको बैज्ञानिक सोच वाली एजुकेशन ''राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले ने दिया ,जब की ब्राह्मण सर्वपल्ली ने ''ब्राह्मण धर्म'' (हिन्दू धर्म) की गैर बराबरी और अंधविश्वास वाली एजुकेशन का कट्टर समर्थक था। 7) ''बालविवाह'' का विरोध और ''विधवा विवाह'' को बढ़ावा दिया "'राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले ने जबकि ब्राह्मण जात सर्वपल्ली बाल विवाह का समर्थक था, और विधवा विवाह का विरोधी।

8) महिलाओं के लिए पहला स्कूल अगस्त 1848 को ''राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले ने खोला जब की ब्राह्मण जात सर्वपल्ली स्त्री एजुकेशन का विरोधी था।

9) ''राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले ने अपनी पत्नी को सबसे पकले एजुकेशन दी, ब्राह्मण जात सर्वपल्ली ने अपनी औरत को ही अनपढ़ बनाए रखा।

10) ''राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले'' ने अपना गुरु ''छत्रपति शिवाजी महाराज'' को माना, ब्राह्मण सर्वपल्ली ने अपना गुरु ब्राह्मण भगौड़ा ''सावरकर'' को माना।

11) ''राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले ने ''गुलामगिरी'' नमक ग्रन्थ लिख पिछड़ी जातियों को गुलामी का एहसास कराया, जब की ब्राह्मण सर्वपल्ली ने ब्राह्मण धर्म का कट्टर समर्थन कर बहुजनो के दिमाग की नसबंदी कर उनके दिमाग को बांझ बनाया।

12) किसानो को जगाने के लिए ''राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले'' ने किताबे लिखी जैसे ''किसान का कोड़ा'', आज से 150 साल पहले 'कृषि विद्यालय' की बात की, जब की ब्राह्मण सर्वपल्ली ने जीतनी भी किताबे लिखी सब की सब ब्राह्मण धर्म को महिमामंडित करने को लिखी।

13) सभी को एजुकेशन मुफ्त और सख्ती से दिया जाय इसके लिए ''हंटर कमिसन'' (उस समय का भारतीय एजुकेशन आयोग) के आगे अपनी मांग ''राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले'' ने रखी,जब की ब्राह्मण सर्वपल्ली बहुजनो को एजुकेशन देने का विरोधी था।

14) लोगो ने ''राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले'' को ''राष्ट्रपिता'' की उपाधि दी, ब्राह्मण सरकार ने ब्राह्मण सर्वपल्ली की चोरी की थीसिस पर उन्हें डॉ की उपाधि दी।

15) ''राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले'' ने ब्राह्मणों को विदेशी कहा ब्राह्मण सर्वपल्ली ने भी खुद को विदेशी आर्य ब्राह्मण कहा (बस केवल एक जगह दोनों सामान थे )

राधाकृष्णन के नाम पर शिक्षक दिवस मनाने का तर्क और औचित्य क्या है?* *(शिक्षक दिवस- 5 सितंबर)* *मनुस्मृति को आदर्श ग्रंथ, वर्ण-जाति व्यवस्थ को आदर्श व्यवस्था, महिलाओं को दोयम दर्जे का मानने वाले और शोध-प्रबंध की चोरी करने वाले राधाकृष्णन के नाम पर शिक्षक दिवस मनाना का औचित्य और तर्क क्या है?* *इस संदर्भ में कंवल भारती लिखते हैं कि सवाल हैरान करने वाला है कि डॉ. राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में क्यों मान्यता दी गई? उनकी किस विशेषता के आधार पर उनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस घोषित किया गया? क्या सोचकर उस समय की कांग्रेस सरकार ने राधाकृष्णन का महिमा-मंडन एक शिक्षक के रूप में किया, जबकि वह कूप-मंडूक विचारों के घोर जातिवादी ब्राह्मण थे।* *महिलाओं को पुरूषों से दोयम दर्जे का मानते हुए राधाकृष्णन लिखते हैं कि ‘अत: स्त्री शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि वह सुमाता और सुगृहिणी बन सकें।’ (भारतीय शिक्षा का इतिहास, डा. सीताराम जायसवाल, 1981, प्रकाशन केंद्र, सीतापुर रोड, लखनऊ, पृष्ठ 259)* *मनुस्मृति, वर्ण-व्यवस्था, ब्राह्मणों की श्रेष्ठता की घोषणा करते हुए और शूद्रों को सेवक के रूप में प्रस्तुत करते हुए राधाकृष्णन लिखते हैं कि ‘मनुस्मृति मूल रूप में एक धर्मशास्त्र है, नैतिक नियमों का एक विधान है। इसने रिवाजों एवं परम्पराओं को, ऐसे समय में जबकि उनका मूलोच्छेदन हो रहा था, गौरव प्रदान किया। परम्परागत सिद्धांत को शिथिल कर देने से रूढ़ि और प्रामाण्य का बल भी हल्का पड़ गया। वह वैदिक यज्ञों को मान्यता देता है और वर्ण (जन्मपरक जाति) को ईश्वर का आदेश मानता है। अत: एकाग्रमन होकर अध्ययन करना ही ब्राह्मण का तप है, क्षत्रिय के लिए तप है निर्बलों की रक्षा करना, व्यापार, वाणिज्य तथा कृषि वैश्य के लिए तप है और शूद्र के लिए अन्यों की सेवा करना ही तप है।” ( भारतीय दर्शन, खंड 1, 2004, राजपाल एंड संज, दिल्ली, पृष्ठ 422)* *सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन ने अपनी पुस्तक ‘हिन्दू व्यू ऑफ़ लाइफ’ में वही डींगें मारी हैं, जो आरएसएस मारता है कि ‘हिन्दूसभ्यता कोई अर्वाचीन सभ्यता नहीं है। उसके ऐतिहासिक साक्ष्य चार हजार वर्ष से ज्यादा पुराने हैं। वह उस समय से आज तक निरंतर गतिमान है और दुनिया की सबसे महान सभ्यता है।* *डॉ. राधाकृष्णन के बारे में यह भ्रम फैलाया जाता है कि वह महान दार्शनिक थे, जबकि सच यह है कि यह केवल दुष्प्रचार है। इस जोरदार खंड़न राहुल सांकृृत्यायन और डॉ. आंबेडकर ने किया है। राहुल सांकृत्यायन ने लिखा है कि राधाकृष्णन एक ऐसे ब्राह्मण लेखक थे, जिन्होंने हिंदुत्व को भारतीय दर्शन में, और ख़ास तौर से बौद्धदर्शन में वेद-वेदांत को घुसेड़ने का काम किया है। राहुल सांकृत्यायन ने* *‘दर्शन-दिग्दर्शन’ में एक स्थान पर उन्हें ‘हिन्दू लेखक’ की संज्ञा दी है।उन्होंने लिखा है, कि बुद्ध को ध्यान और प्रार्थना मार्गी तथा परम सत्ता को मानने वाला लिखने की गैर जिम्मवारी धृष्टता सर राधाकृष्णन जैसे हिन्दू लेखक ही कर सकते हैं। (दर्शन-दिग्दर्शन, 1998, पृष्ठ 408)* *डॉ. आंबेडकर ने भी अपने निबन्ध ‘कृष्ण एंड गीता’ में डॉ. राधाकृष्णन के इस मत का जोरदार खंडन किया है कि गीता बौद्धकाल से पहले की रचना हैI डॉ. आंबेडकर ने डॉ. राधाकृष्णन जैसे हिन्दू लेखकों को सप्रमाण बताया है कि गीता बौद्धधर्म के ‘काउंटर रेवोलुशन’ में लिखी गई रचना है। (देखिए, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर : राइटिंग एंड स्पीचेस, वाल्यूम 3, 1987, चैप्टर 13)* *राधाकृष्णन के इस कथन पर कि ‘भारत में मानव भगवान की उपज है, और भारतीय संस्कृति और सभ्यता की सफलता का रहस्य उसका अनुदारात्मक उदारवाद है’, राहुल सांकृत्यायन लिखते हैं, ‘भारतीय सभ्यता और संस्कृति ने हिन्दुओं में से एक-तिहाई को अछूत बनाने में किस तरह सफलता पाई? किस तरह जातिभेद को ब्रह्मा के मुख से निकली व्यवस्था पर आधारित कर जातीय एकता को कभी बनने नहीं दिया?…..यह सब अनुदारात्मक उदारवाद से है और इसलिए कि भारत में मानव भगवान की उपज है।…यह हम जानते हैं कि सर राधाकृष्णन जैसे भक्तों और दार्शनिकों ने शताब्दियों से भारत की ऐसी रेड़ मारी है, कि वह जिन्दा से मुर्दा ज्यादा है।’* *राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1818 में तेलुगू भाषी नियोगी ब्राह्मण परिवार में हुआ। सर्वपल्ली राधाकृष्णन को दर्शन के क्षेत्र में प्रसिद्धि 1923 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘भारतीय दर्शन’ से मिली, जिसे अपने शोध-छात्र की साहित्यिक चोरी माना जाता है।* *उस वक्त राधाकृष्णन कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे। शोध-छात्र जदुनाथ सिन्हा ने उनके ऊपर साहित्यिक चोरी का आरोप लगाया। मामला यह था कि जदुनाथ सिन्हा ने पीएचडी डिग्री के लिए ‘भारतीय दर्शन’ नामक अपने शोध को 1921 में तीन परीक्षकों क्रमशः डाॅ. राधाकृष्णन, डॉ. ब्रजेंद्रनाथ सील व डाॅ. बी. एन. सील के समक्ष प्रस्तुत किया। वे अपनी पीएचडी डिग्री की प्रतीक्षा करने लगे। जदुनाथ सिन्हा ने बारी-बारी से तीनों परीक्षकों से संपर्क कर डिग्री रिवार्ड किए जाने पर विलंब होने की वजह जाननी चाही।* *डॉ. ब्रजेंद्रनाथ सील व डाॅ. बी. एन. सील ने कहा कि धैर्य रखो राधाकृष्णन उसके परीक्षण में व्यस्त हैं। तुम्हारा शोध वृहद् है। दो भागों में तकरीबन 2000 पृष्ठों का होने की वजह से समय लग रहा है। इसी बीच डॉ. राधाकृष्णन ने आनन-फानन में लंदन से इस पीएचडी को पुस्तक के रूप में अपने नाम से प्रकाशित करा लिया और पुस्तक छपते ही जदुनाथ सिन्हा को पीएचडी की डिग्री भी उपलब्ध करा दी। पुस्तक जैसे ही बाजार में आई, जदुनाथ सिन्हा को सांप सूंघ गया और वह अपने को ठगा महसूस करने लगे। राधाकृष्णन की किताब उनकी पीएचडी की हूबहू कॉपी थी।* *जदुनाथ सिन्हा भी हार मानने वालों में नहीं थे। न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाकर राधाकृष्णन कृष्ण पर 20000 रूपए का दावा ठोक दिया। इसके बदले में राधाकृष्णन ने भी जदुनाथ पर एक लाख का मानहानि का दावा कर दिया। डाॅ. ब्रजेन्द्रनाथ सील राधाकृष्णन की ताकत और प्रभाव से परिचित थे। वे उनके खिलाफ खड़े होने का साहस नहीं जुटा पाए। परंतु जैसे ही जदुनाथ सिन्हा ने डाॅ. बी. एन. सील के यहां 1921 में प्रस्तुत की गई अपने शोध की प्राप्ति रसीद न्यायालय में प्रस्तुत किया, सच्चाई सामने आ जायेगी यह सोच कर राधाकृष्णन घबड़ा गए।* *विश्वविद्यालय के कुलपति संघ-भाजपा के आदर्श नायक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने दोनों लोगों के बीच मध्यस्थता किया और न्यायालय से बाहर समझौता कराया। राधाकृष्णन ने जदुनाथ सिन्हा को 10000 रूपए देकर समझौता किया।* *ऐसा व्यक्ति कैसे शिक्षकों का आदर्श हो सकता है, जबकि हमारे पास सावित्रीबाई फुले जैसे महान शिक्षिका की विरासत है, जिन्होंने सभी इंसानों को समान मानते हुए सबसे के लिए शिक्षा का द्वार खोला। जिन्हें भारत की प्रथम शिक्षिका होने का गौरव प्राप्त है।* *( उपर्युक्त टिप्पणी के लिए तथ्य उपलब्ध कराने के लिए मैं कंवल भारती सर का आभारी हूं। मैंने स्वयं भी इन सारे तथ्थों की जांच की है) आज कोई शिक्षक दिवस नहीं है आज राधाकृष्ण सर्वपल्‍ली का जन्मदिन है जो अपने पढाई के समय में थिसिस चोर बताया गया है। इन्होंने कभी कोई सामाजिक कार्य नहीं किया। ना कोई स्कूल खुलवाया। इनकी मात्र एक ही खासियत है वो ये कि ये ब्रह्मण हैं मैं इस शिक्षक दिवस का बहिष्कार करता हूँ।* *हमारा शिक्षक दिवस 3 जनवरी को मनाया जाना चाहिए जो कि माता सावित्री बाई फुले का जन्मदिवस है।*





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