हिन्दू जाति है या धर्म, हाई कार्ट ने पूछा TPSG Monday, April 29, 2019, 10:09 PM हिन्दू जाति है या धर्म, हाई कार्ट ने पूछा अल्पसंख्यकों को स्काॅलरशिप पर कोर्ट में जंग क्या कहता है अनुच्छेद 15 (1) धर्म,जाति, मूलवंश, लिंग या जन्मस्थान पर विभेद का प्रतिषेध - राज्य, किसी नागरिक के विरूद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा। अहमदाबाद: अल्पसंख्यक छात्रों को वजीफा देने की केंद्र सरकार की योजना पर गुजरात हाई कोर्ट में जंग छिड़ी है। अदालत ने मोदी सरकार से पूछा है कि हिंदू जाति है या धर्म ? अगर हिंदू धर्म तो कोर्ट को बताये कि यह अल्पसंख्यक है या बहुसंख्यक ? दरअसल, यह विवाद सच्चर कमेटी के आधार पर केंद्र की ओर से अल्पसंख्यक समुदाय के प्री मैट्रिक छात्रोें को स्काॅलरशिप देने की योजना को लेकर शुरू हुआ है। गुजरात सरकार ने धर्म के आधार पर वजीफा देने से इन्कार करते हुए केन्द्र की इस योजना को ही खारिज कर दिया है। गुजरात हाई कोर्ट के पांच जजों की पीठ राज्य में अल्पसंख्यक छात्रों को वजीफा नहीं मिलने के इसी मामले की सुनवाई कर रही है। पीठ की अगुआई कर रहे जस्टिस वीएम सहाय ने गुजरात के महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी से सीधा सवाल किया कि हिन्दू धर्म है या जाति ? इस पर त्रिवेदी ने कहा कि हिंदू एक धर्म है। न्यायाधीश ने जब पूछा कि मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं तो हिंदू क्या हैं ? इस पर त्रिवेदी ने हिंदुओं को बहुसंख्यक बताया। जिदनी इल्मा चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रो जेएस बंदूकवाला की ओर से अधिवक्ता दुष्यंत दवे की दलील है कि गुजरात के 18 लाख मुस्लिमों के 52 हजारा छात्रों को वजीफा देने से क्यों बच रही है। यह योजना महज अल्पसंख्यकों के लिए नहीं है, बल्कि सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े समुदाय के बच्चों के लिए है। अदालत इस योजना को संविधान के अनुच्छेद 15 (1) के तहत देख रही है कि इससे संविधान की मूल भावना का हनन तो नहीं हो रहा। दवे ने सुप्रदीप कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि पिछड़े वर्गो के विकास के लिए सामाजिक व आर्थिक आधार पर ऐसी ही कई योजनाओं को शीर्घ अदालत स्वीकृत दे चुकी है। इस मामले में मुख्य याचिकाकर्ता राजेश गोलानी की मांग है कि स्काॅलशिप योजना अल्पसंख्यक ही नहीं बल्कि अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए भी लागू करनी चाहिए अन्यथा केन्द्र की इस योजना को खारिज कर देना चाहिए। जबकि केन्द्र सरकार की ओर अतिरिक्त महाधिवक्ता पारस कुहाड़ का कहना है कि यह योजना संवैधानिक व नीतिगत रूप से तैयार की गई है जिसे किसी धार्मिक या अल्पसंख्यक समाज से जोड़कर ना देखा जाए, यह शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक् रूप से पिछड़े समाज के लिए है जो सुविधाहीन है। नोट: (07 फरवरी 2013, जागरण दैनिक अखबार): साभार - टीपीएसजी Tags : citizen gender lineage race religion discrimination Prohibition