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बुद्ध अवतारवादी नहीं

Siddharth Bagde
tpsg2011@gmail.com
Saturday, April 27, 2019, 02:17 PM
Buddha

बुद्ध अवतारवादी नहीं
हिंदू धर्म में अवतारवाद एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। इसके अनुसार विष्णु सज्जनों के उद्धार, पापकर्मों के विनाश व धर्म की स्थापना के लिए अवतार लेते हैं। हिंदुओं के धर्म ग्रंथ गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है, ‘‘जब-जब धर्म की हानि व अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने रूप को रचता हूं एवं साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ।’’
अवतारवाद के इस सिद्धांत का आश्रय लेकर कुछ लोग बुद्ध को विष्णु का नौवां अवतार बताते हैं। जब भारत में बौद्ध धर्म का बोलबाला था, उस समय पुराणों की रचना करने वाले बुद्ध की उपेक्षा नहीं कर सके। उस समय के धार्मिक और सामाजिक वातावरण ने पुराणों के निर्माताओं को, बुद्ध को विष्णु का नौवां अवतार मानने के लिए बाध्य कर दिया।
यहां यह बताना आवश्यक है कि कुछ ही पुराण बुद्ध को विष्णु का अवतार मानते हैं, बाकी सब दत्तात्रेय को नौवां अवतार स्वीकार करते हैं। विष्णु के नौवें अवतार की अनसुलझी मान्यता एक विरोधाभास उत्पन्न करती है।
स्वामी विवेकानंद बुद्ध के प्रति अपार श्रद्धा रखते थे, इसलिए उन्होंने बुद्ध को ईश्वर माना और उन्होंने कहां भी कि बुद्ध जैसा महामानव इस धरती पर कोई पैदा नहीं हुआ है।
महर्षि दयानंद ने ईश्वर की परिभाषा की है, ‘‘ईश्वर सच्चिदानंद स्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, अजन्मा, न्यायकारी, दयालु, अनंत, निर्विकार, अनादि, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है।’’ बुद्ध मनुष्य होने के कारण चार भौतिक तत्वों - पृथ्वी, जल, तेज व वायु से बने थे। ईश्वर के लिए बताए गए गुणों में बुद्ध पर केवल न्यायकारी, दयालु, निर्विकार, अभय व पवित्र जैसे विशेषण ही लागू होते हैं। लेकिन वे निराकार, अजन्मा, अनादि, अनंत, अजर, अमर, नित्य एवं सृष्टिकर्ता नहीं थे। इसलिये भी बुद्ध को ईश्वर कहना युक्तिसंगत नहीं होगा। बुद्ध तो महामानव थे।
भारत के पुरातात्विक एंव ऐतिहासिक प्रमाण यह सिद्ध करते हैं कि बुद्ध पौराणिक अवतार नहीं, बल्कि ऐतिहासिक पुरूष थे। बुद्ध ने स्वयं को श्रीकृष्ण की तरह न तो ईश्वर ही कहा और न विष्णु का अवतार ही बताया। उन्होंने अपने को शुद्धोधन व महामाया के प्राकृतिक-पुत्र होने के अतिरिक्त कभी और कोई दावा नहीं किया।
जिस प्रकार कृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट स्वरूप दिखाया था, वैसा कोई करिश्मा बुद्ध ने कभी भी अपने शिष्यों को नहीं दिखाया था। उन्होंने कभी खुद को ईश्वर का पैगाम लाने वाला पैगंबर या खुदा का बेटा नहीं बताया। इतना ही नहीं, बुद्ध ने अपने भिक्खुओं को भी करिश्मे व जादू-टोने दिखाकर लोगों को भ्रमित करने से मना किया था। बुद्ध के उपदेश प्रज्ञा, शील, समाधि पर निर्भर करते हैं, जिनका आधार विशुद्ध वैज्ञानिक है।
बुद्ध ने अपने ‘‘धम्म-शासन’’ में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कभी ईश्वरीय होने का दावा नहीं किया था। उनका धर्म ईश्वरीय उपदेश नहीं, बल्कि मनुष्यों के हित व सुख के लिए मनुष्य द्वारा आविष्कृत धर्म था। यह अपौरूषेय नहीं है।   जो धर्म अवतारवाद के सिद्धांत को मानते हैं, वे परा-प्रकृति (ब्रह्मा आदि) में विश्वास करते हैं। लेकिन बुद्ध अवतारवाद पर विश्वास नहीं करते थे। इसलिए उन्होंने परा-प्रकृति में विश्वास को अधर्म कहा था। उदाहरण के लिए जगत में जब कोई घटना घटती है, तो परा-प्रकृति पर विश्वास करने वाले उसे हरि-इच्छा कहते हैं, लेकिन बुद्ध के अनुसार इन घटनाओं के समुचित प्राकृतिक कारण होते हैं। ये सभी घटनाएं कारण-कार्य के नियम से घटती रहती हैं।
आज विश्व के जितने भी प्रसिद्ध वैज्ञानिक व महान दार्शनिक हैं, वे बुद्ध को विष्णु का अवतार नहीं, बल्कि महामानव मानते हैं। प्रसिद्ध वैज्ञानिक आंइस्टीन, कामरेड लेनिन, डाॅ. अंबेडकर, आदि जैसे लोग व दुनिया के सभी इतिहासकार बुद्ध को अन्य मनुष्यों की भांति मनुष्य ही मानते हैं। चूंकि वे मनुष्यों में सर्वश्रेष्ठ, पुरूषोत्तम एवं महानतम प्रज्ञावान, शीलवान, मैत्रीवान एवं करूणा के सागर थे, इसलिए उन्हें महामानव कहा जाता है।
श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया, जापान, कोरिया, विएतनाम, मंगोलिया, चीन, ताइवान, तिब्बत व भूटान आदि बौद्ध देशों के लोग बुद्ध को ईश्वर एवं विष्णु का अवतार नहीं मानते।
- सिद्धार्थ बागड़े

 





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