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विपरीत परिस्थिति को अपने पक्ष में बदलना

Sumedh Ramteke

Thursday, September 12, 2024, 03:05 PM
Kahani

एक छोटे व्यापारी, रमेश, ने अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए एक साहूकार, धीरज, से उधार लिया था। धीरज एक उम्रदराज़, बदसूरत और लालची व्यक्ति था, जो धन के बल पर लोगों को अपने वश में करने की आदत रखता था। हालांकि, उसका असली उद्देश्य सिर्फ पैसे कमाना नहीं था, बल्कि वो अपनी नजरें रमेश की जवान, सुंदर बेटी आरती पर गड़ाए बैठा था।

रमेश जब कर्ज चुकाने में असमर्थ हो गया, तो धीरज ने अपना असली मकसद जाहिर कर दिया। उसने रमेश से कहा, "अगर तुम अपनी बेटी की शादी मुझसे करा दो, तो मैं तुम्हारा पूरा कर्ज माफ कर दूंगा। ब्याज का भी जिक्र नहीं करूंगा।"

रमेश और उसकी बेटी आरती इस प्रस्ताव को सुनकर अवाक रह गए। यह एक ऐसा सौदा था, जिसे स्वीकार करना उनके लिए असंभव था। लेकिन साहूकार ने और भी चालाकी से कहा, "चलो, तुम्हारे लिए मैं एक खेल की तरह इसे पेश करता हूँ। मैं एक थैली में दो कंकड़ रखूंगा – एक सफेद और एक काला। तुम्हारी बेटी बिना देखे उस थैली से एक कंकड़ निकालेगी। अगर उसने सफेद कंकड़ निकाला, तो न उसे मुझसे शादी करनी होगी और न ही तुम्हें कर्ज चुकाना पड़ेगा। लेकिन अगर उसने काला कंकड़ निकाला, तो उसे मुझसे शादी करनी होगी, और मैं तुम्हारा कर्ज माफ कर दूंगा। अगर उसने कंकड़ निकालने से मना किया, तो मैं तुम्हें जेल भिजवा दूंगा।"

यह सुनकर रमेश और आरती और भी परेशान हो गए। उनके पास कोई विकल्प नहीं था। गांव के लोग और साहूकार, रमेश के घर के पास बने बगीचे में इकट्ठा हुए, जहाँ सफेद और काले कंकड़ से बनी बजरी बिछी थी। धीरज ने चालाकी से झुककर दो कंकड़ उठाए, लेकिन उसकी नज़रें आरती की तेज निगाहों से बच न सकीं। आरती ने देख लिया कि धीरज ने दोनों कंकड़ काले रंग के उठाए थे, और अपनी चालाकी से उन्हें थैली में डाल दिया था।

अब सवाल यह था कि आरती क्या करेगी? अगर वह चुप रहती, तो उसे धीरज से शादी करनी पड़ती, और अगर वह बेईमानी का खुलासा करती, तो धीरज अपनी ताकत का इस्तेमाल करके उनके जीवन को और कठिन बना सकता था।

आरती ने अपने दिमाग को शांत किया और धीरज की तरफ मुस्कराते हुए थैली की ओर हाथ बढ़ाया। उसने एक कंकड़ निकाला, लेकिन बिना देखे उसे नीचे फेंक दिया। कंकड़ नीचे पड़ी हुई कंकड़ों से भरी बजरी में खो गया। धीरज और बाकी लोग यह देखने के लिए इंतजार कर रहे थे कि उसने कौन सा कंकड़ निकाला।

आरती ने बड़ी मासूमियत से कहा, "ओह, मैं कितनी बेवकूफ हूँ! बिना देखे कंकड़ गिरा दिया। खैर, कोई बात नहीं। एक कंकड़ तो अभी थैली में बचा हुआ है। उसे देखकर आप पता लगा सकते हैं कि मैंने कौन सा कंकड़ निकाला था।"

धीरज अब हक्का-बक्का रह गया। वह जानता था कि थैली में काले कंकड़ के अलावा और कुछ नहीं था। अगर थैली में काला कंकड़ है, तो इसका मतलब यह होगा कि आरती ने सफेद कंकड़ निकाला था, जो असल में वहाँ था ही नहीं। लेकिन वह अपनी बेईमानी को कबूल नहीं कर सकता था।

साहूकार को आरती की चतुराई के सामने झुकना पड़ा। उसने मजबूरी में स्वीकार किया कि आरती ने सफेद कंकड़ निकाला है, और इस तरह, ना सिर्फ उसकी शादी से बचाव हो गया, बल्कि उसके पिता का कर्ज भी माफ हो गया।

साहूकार धीरज का चेहरा लटक गया, और उसे अपनी हार माननी पड़ी। आरती ने अपनी बुद्धिमानी और सूझबूझ से एक असंभव और विपरीत परिस्थिति को अपने पक्ष में बदल दिया। यह घटना पूरे गांव में चर्चा का विषय बन गई, और आरती की प्रशंसा चारों ओर होने लगी।

इस कहानी ने साबित कर दिया कि कभी-कभी सबसे कठिन परिस्थितियों में भी शांत दिमाग और चतुराई से ही जीत हासिल की जा सकती है।

- कहानी संग्रहक सुमेध रामटेके





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