युगपुरूष डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर विश्व मानवीय मूल्यों उद्धघोषक Ashok Bondade Friday, May 17, 2019, 10:54 PM युगपुरूष डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर विश्व मानवीय मूल्यों उद्धघोषक युगपुरुष डाॅ. बाबासाहाब आंबेडकर की 125वीं जयंती 156 देशों के प्रतिनिधियों के उपस्थिति में संलग्न हो रही है, आंबेडकर जयंती यह कोई मनोरंजक विषय या धार्मिक त्यौहार नहीं है, वह एक सामाजिक प्रबंधनात्मक कार्यक्रम है, न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में डाॅ. बाबासाहब अंबेडकर की जयंती हो यह केवल भारतीयो के लिये ही नही, दुनिया के लिए भी गर्व की बात है, अमेरिका के न्यूयार्क शहर के घोठंसरा विद्यापीठ में 1893 को डाॅ. बाबासाहब आंबेडकर ने उच्च शिक्षा लेने हेतु प्रवेश लिया था, कोलंबिया विद्यापीठ से उन्होंने एम.ए., पी.एच.डी. की उपाधी प्राप्त की। 1969 को बाबासाहब आंबेडकर के जयंती को 100 साल पूरे हुये उसी प्रकार कोलंबिया विद्यापीठ के स्थापना को 300 साल हुये इस विद्यापीठ के 100 विद्वान विद्यार्थियों की सूची तैयार की गई, उन विद्यार्थियों में विद्यवत्ता में डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर का नाम प्रथम स्थान पर आया। उन विद्यार्थियो में अब्राहिम लिंकन का भी नहीं है, टाॅपटेन कोलंबियन में भी बाबासाहब का नाम है, कोलंबिया विद्यापीठ के परिसर में डाॅ. बाबा साहब आंबेडकर का प्रबल बिठाया गया। इस ‘‘सिम्बाल आफ नाॅलेज’’ लिखा गया, 14 अप्रैल 1991 को विद्यापीठ के पुस्तकालय के हमने पुस्तिका उद्घाटन समारोह संपन्न हुआ, इसी प्रकार 20 जुलाई 2008 को कोलंबिया विद्यापीठ में बाबासाहब के प्रवेश को 100 साल पूरे होने पर बाबासाहब का Statui of Knowledge Wisdom ऐसा उपहार बाबासाहेब को वंदना दी गई, अमेरिका जैसे प्रगत एवं शक्तिशाली राष्ट्र को सबसे हुनर विद्यार्थी बाबासाहब को क्यों चुना ? डाॅ. बाबासाहब आंबेडकर का स्टेच्यू लगाकर उस पर सिम्बौल आफ नाॅलेज लिखना ऐसा अमेरिका को क्यों लगा ? अमेरिका के 88वें राष्ट्रीयध्यक्ष बराक ओबामा ने 1983 को कोलंबिया विद्यापीठ से राज्यशास्त्र की पदवी ली। राष्ट्रध्यक्ष पद का चुनाव एडणे वालरा यह प्रथम ब्लैक उम्मीदवार है, अमेरिका में वर्णभेद है। काला गोरा ऐसा भेद होने के बावजूद उसे नकारकर अमेरिका ने श्यामवर्णीय बराक ओबामा को राष्ट्रध्यक्ष बनाया, अमेरिका में 68 प्रतिशत गोरा मतदाता है फिर भी समाज के ओबामा को राष्ट्राध्यक्ष कर चुना गया, अमेरिका में बराक ओबामा का उदय यह क्रांति का ही पहलू है, लेकिन भारत में ऐसी क्रांति का उदय नही हो रहा है, दुनिया में कई जगह शोषितों की शोषण व्यवस्था स्थापित हो रही है, लेकिन भारत में अभी भी शोषण व्यवस्था कायम है, पीएचडी का छात्र रोहित वेमूला को आत्महत्या के लिए मजबूर किया जाता है। खैरलांजी जबखेड़ा जैसी शोषितों पर अत्याचार एवं बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं। डाॅ. बाबासाहब आंबेडकर की श्रेष्ठता सी.एन.आय, सी.एन.के. सर्वश्रेष्ठ थे। इस कार्यक्रम द्वारा सिद्ध हुई कि डाॅ. बाबासाहब का आज भी वैचारिक दबदबा है, अमेरिका जैसे महाशक्ति डाॅ. बाबासाहब का सम्मान करते हुए श्रेष्ठतम महापुरुष करके सम्मानित किया। यह उनके अनुयायिओं के लिए गर्व की बात है। डाॅ. बाबासाहब ने जब वाशिंगटन के जैसे राजकीय योग्यता थी, अब्राहम लिंकन जैसी दास्यता एवं शोषण के खिलाफ संघर्ष की क्षमता थी। गौतम बुद्ध की तरह धार्मिक क्रांति का दृढ़निश्चय था, बाबा साहब का कार्य भी मार्टिन लूथर विंग के समान महान था, संकीर्ण भारत में शोषितों के मसीहा एवं भारतीय घटनाओ के शिल्पकार तक ही उनकी पहचान सीमित रखी गई, उनका विश्व के महान अर्थतज्ञ बाबासाहब का व्यक्तित्व दुनिया के मार्गदर्शक के रूप में सामने लाना निहायत जरूरी है। अमेरिका के न्यूयार्क शहर के कोलंबिया विद्यापीठ मे 1995 में लिखा गया प्रवेश डाॅ. बाबासाहेब के जीवन का टर्निंग प्वाइंट है, इस विद्यापीठ के उच्च शिक्षा से उनके प्रगस्थ दिमाग को धार मिली। डाॅ. सेढिग्मण, जाॅन डयूई जैसे प्रध्यापकों ने उनके दिमागी विकास को प्रेरणा दी। बाबासाहब की गुप्त प्रवृत्ति संशोधन की थी, जिस प्रकार बुद्ध ने कठोर साधना करके दुनिया में मानव कल्याण मार्ग प्रशस्त किया उसी प्रकार बाबासाहब ने भी कठिन ज्ञान साधना करके करोड़ो शोषितों अस्पृश्यो को मुक्ति का मार्ग दिया। बाबासाहेब ने भारत के अस्पृश्यता के जख्म सहे लेकिन कोलंबिया विद्यापीठ मे उनका स्पर्श सभी को आदरमय था। प्रोफेसर अडविन सेलिंग ने कहा था, भीमराव अंबेडकर केवल भारतीय विद्यार्थियों मे ही नहीं वो दुनिया में आये सभी विद्यार्थियो में श्रेष्ठ विद्यार्थी है। कोलंबिया विद्यापीठ के होस्टल में ढाई साल में बाबासाहब ने एम.ए. एवं पी.एच.डी. का पढ़ाई पुरी की। डीएससी के नोट्स भी तैयार किये, विद्यापीठ ने बाबासाहब को 4 जून 1942 को एल.एल.डी. की पदवी दी। बाबासाहब सिर्फ चार घंटे विश्रांती और सोते थे, 18 घंटे लायब्रेरी में या रूम में एकाग्रता से पढ़ाई करते थे, कोलंबिया विद्यापीठ के ग्रंथास्य के दैनंदिन विजिटर्स रजिस्टर के मुताबिक भीमराव आंबेडकर याने प्रतिदिन लायब्रेरी में सबसे पहले जाने वाले विद्यार्थी थे तथा अंत में लायब्रेरी से बाहर निकलने वाले विद्यार्थी थे, कोलंबिया विद्यापीठ के जिस ऐहमण लायब्रेरी बाबासाहब अध्ययन के लिए आते थे। कोलंबिया विद्यापीठ के त्रिशतम महोत्सव में बाबासाहब को डाॅक्टर आफ इस उपाधि से गौरवान्वित किया गया। कोलंबिया विद्यापीठ के मुख्य प्रवेश द्वार के पास बाबासाहब के पुतले का अनावरण करते वक्त राष्ट्राध्यक्ष बराक ओबामा ने कहा कि ‘‘डाॅ. बाबासाहब के जैसा महापुरुष हमारे देश में पैदा हुआ होता तो हम उन्हें सूर्य संबोधित करते।’’ कोलंबिया विद्यापीठ के बाद एमएससी, डीएलसी एव सार एटलाॅ की पढ़ाई पूरी करने हेतु डाॅ. बाबासाहब लंदन गये, उन्होंने लंडन आफ इकोनाॅमिक्स में प्रवेश लिया। वहाॅ उन्होंने डाॅक्टर आफ साइयन्स और 1933 में बैरिस्टर की पदवी प्राप्त की, बाबासाहब ने भारत के अस्पृश्यों की दयनीय स्थिति का सेक्रेटरी माॅटींग के आगे प्रस्तुत किया। भारत मे डाॅ. बाबासाहब अंबेडकर के द्वारा ही शोषित पीढित शोषित अपेक्षित अश्पृश्य एवं अल्पसंख्यक समुदाय उसी प्रकार स्त्रियों के मुक्ति का मार्ग मिला। उसी प्रकार अमेरिका के प्रख्यात निग्रो नेता बुकर टी वाशिंगटन अब्राहम लिंकन मार्टिन लूथर किंग इनके नेतृत्व के कारण ही आज निग्रो समाज में नव चैतना का निर्माण हुआ है। अमेरिका में जाॅर्ज वाशिंगटन ने 1969 को वहां के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया, स्वतंत्रता मिलने के बाद दो बार वे राष्ट्राध्यक्ष हुए, तीसरी बार भी उनके राष्ट्राध्यक्ष बनने के 100 प्रतिशत चान्स होने के बावजूद उन्होंने स्वयं नकार दिया। अपने परिवार के किसी को भी आगे नहीं लाया। भारत में तो मनुवाद को छोड़ते नहीं। मरने के बाद भी उनके परिवार के सदस्य सत्ता में आगे आते हैं। अमेरिका में लोकशाही यह घराणेसाही नहीं बनी। इस तरह की जागृत जनता द्वारा राष्ट्र ही प्रगत होता है। थाॅमस जेफरनसन ने अमेरिकन स्वतंत्रता जाहीरनामा एव आगे चलकर अमेरिकी की राज्यघटना सीखी। सभी मानव एक समान हैं ऐसा जैसा रसन ने राहीनामा में नमूद लिया अमेरिकन लोगों ने उसकी प्रसंसा की। साथ ही अमेरिका तीसरा राष्ट्राध्यक्ष बनाया। आज भी अमेरिकन जनता उसे कृतज्ञता से याद करते हैं। भारत में डाॅ. बाबासाहेब ने समता स्वतंत्र बंधुता एव न्याय इन मुख्य आधारो पर आधारित दुनिया का सबसे बड़़ा भारत को संविधान के अच्छे से शिल्पकार होते हुये भी उन्हें अपमानित किया जाता रहा। उनके पुतलों को खण्डित किया जाता है। अब्राहिम लिंकन यह 1861 में अमेरिका के 16वें राष्ट्राध्यक्ष हुूये, उन्होंने जनता की, जनता के द्वारा और जनता के लिए बनाया गया राज्य यह लोकशाही की व्याख्या की। डाॅ. बाबासाहब घटना समिति के आगे कहते हैं, ‘‘संपूर्ण जीवन में दिवा स्वप्न किये जो हानिकारक बदलाव राज्यव्यवस्था लेती है उसे लोकशाही कहते हैं। अब्राहम लिंकन का 14 अप्रैल 1865 को खून हुआ और 14 अप्रैल 1891 को डाॅ. बाबासाहेब अंबेडकर का जन्म हुआ एवं शहीदों के एक महान प्रणेता दुनिया से विदा लिया है। वो दूसरे का जन्म होता है यह एक महान संयोग ही है। गुलाम प्रथा के संदर्भ में बाबासाहेब कहते हैं ‘‘गुलाम को गुलामी का एहसास कर दिया तो वह अपने आप गुलामी के खिलाफ होगा। अश्पृश्यता गुलामी से भी बदतर है, जिस समाज में मेरा जन्म हुआ उस समाज की गुलामी समाप्त न कर सका तो खुद को गोली मार लूंगा। ऐसी बाबासाहेब प्रतिज्ञा करते हैं। किंग मार्टिन लूथर (जूनियर 1928-1968) यह निग्रो नेता का नागरिकों को अधिकार दिलाने हेतु बढते हुए कहता है ‘‘एक दिन गुलामों के बच्चे गुलामों के मालिक के बच्चों के साथ बैठेंगे’’ इन्सान की इज्जत घमंडी है रंग से न होकर उसके कर्तव्य से होगी। 4 अप्रैल 1968 को मार्टिन लूथर किंग का भी खून हुआ। आज बराक ओबामा का राष्ट्राध्यक्ष होने से मार्टिन लूथर किंग का स्वप्न सत्य हुआ। डाॅ. बाबासाहब आंबेडकर अमेरिका में अर्थशहाय लेने बड़ोदा नरेश सयाजीराव गायकवाड बाबासाहब के दशा पूंछते हैं कि आप विदेश में जाकर कौन सा विषय लेंगे ? बाबासाहेब उत्तर देते हैं कि मुझे विदेश में मानववंश शाखा एवं अर्थशास्त्र में पढ़ाई करनी है, क्योंकि हजारों साल सामाजिक आर्थिक गुलामी को जी रहे मेरे समाज को अज्ञानता है गुलामी से बाहर निकालने का मार्ग मिलेगा। अमेरिका के संविधान में प्रथम महिलाए गुलाम एव मूलनिवासी उन्हें चुनाव का अधिकार नहीं था, दुनिया में सबसे पुरानी सत्य घटना होते हुए भी अमेरिका के सत्य घटना में वहाॅ की महिलाओं को और गुलामों को कई सालों बाद अधिकार मिले। अमेरिका में 1919 को महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला। डाॅ. बाबासाहब आंबेडकर ने घटना बनाते वक्त ही महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला। डाॅ. बाबासाहब अंबेडकर ने घटना के वक्त ही महिलाओ को पुरुषों के समान ही अधिकार दिया। दुनिया मे सबसे पहले बुद्ध ने भिक्षुओ संघ की निर्मित करके महिलाओं को स्वतंत्र एवं अधिकार दिये। डाॅ. बाबासाहेब ने मनुस्मृति दहन कर एव हिंदू कोड जिसके माध्यम से महिलाये पुरुषों के अत्याचारों से स्वतंत्र हुई। बाबासाहेब ने हिंदु कोड बिल के लिये 27 दिसंबर 1949 को कानून मंत्री पद से इस्तिफा दिया। संविधान में महिलाओं ने स्वतंत्रता के लिये आंदोलन किया, जिससे 8 मार्च जागतीक महिला दिन मनाया जाता है। लेकिन भारत में महिलाओं के स्वतंत्रता एव उद्धार के लिये बाबासाहब ने हिंदू कोड सीख लिया उसके खिलाफ महिलाओं ने मोर्चे निकाले। महिला संघ की शांति चिटनीस ने घोषणा किया। एकमेव बाबासाहब महिलाओं के स्वतंत्रता एवं उद्धार के लिए बढ़ रहे थे। स्त्रियों के अधिकार के लिये इतना बढ़ा मंत्रीपद का त्याग करने वाले वे एकमेव थे। फ्रंकलीन रूसवेल्ट यह अमेरिका के 32वें राष्ट्राध्यक्ष थे उन्होंने 1933 स 1945 के दरम्यान अमेरिका का भरपूर विकास किया। वे कहते हैं ‘डर से कमजोरी जगति है। रूझवेस्ट ने 1942 में अमेरिका के स्वतंत्रता के चार आधार बताये- 1) भाषण एव मतो का स्वातंत्रय 2) धार्मिक स्वतंत्र 3) गरीबी से मुकाबला एवं 4) भयमुक्ति। भारत में बाबासाहेब ने राज्यघटना मे सभी प्रकार की स्वतंत्रता अतर्भूत थी। भारत के संविधान ने सभी नागरिकों को स्वातंत्र, समता, बंधुता एवं न्याय यह मूल्य दिये कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य दिया, सभी को समान अधिकार एव दर्जा दिया। भारतीय संविधान के प्रमुख अंग 1) संसदिय लोकशाही 2) मूलभूत अधिकार 3) दयायिक यंत्रणा 4) मार्गदर्शक तत्व 5) केन्द्र एवं राज्य संबंध 6) घटनादुरुस्ती। जाॅन एफ. केनेडी यह अमेरिका के 35वें राष्ट्राध्यक्ष कहते हैं ‘‘राष्ट्र ने आपके लिये तख्त दिया यह मत पूछो, आपने अपने ऐश के लिए क्या किया यह स्वयं से पूछो,’’ डाॅ. बाबासाहब कहते है, मगर हम अपने पद पंथ धर्म और भाषाओं के अपने राष्ट्र से एवं देश ही नये ज्यादा महत्व दिया तो भारत की स्वतंत्रता द्वारा खतरे में आयेगी। इसलिए अपने शरीर के खून की आखरी बूंद तक अपने स्वतंत्रता की रक्षा हेतु तैयार रहें बाबासाहब कहते हैं ‘‘मै प्रथम भारतीय हूं और अंत में भी भारतीय ही हूं। सब तरह की राष्ट्रीयता बताई। अमेरिका मे संवीधान के अनुसार राज्यावस्था में धर्म को स्थान नहीं है। हरेक को अपने घर या चर्च में धर्म का आचरण करने की स्वतंत्रता है, उसी प्रकार भारतीय संविधान में भी धर्म स्वतंत्रता का अधिकार दिया है। लेकिन भारत के कुछ राज्यों ने धर्मान्तर कानून पास किया है। लिंडन पाॅण्सन यह अमेरिका का 36वां राष्ट्राध्यक्ष उपोदता का हितैषी था। वे कहते हैं ‘जो भूखा है, अपने बच्चो को पढ़ा नहीं सकता, कंगाल है। ऐसा व्यक्ति पूर्णतः स्वतंत्र नहीं है। गरीबी से मुक्ति का शिक्षा यही एकमेव मार्ग है। जाॅन्सन ने नगरी हाब विधेयक समंत किया। डाॅ. बाबासाहब आंबेडकर ने पढो, संगठित हो और संघर्ष करो यह मंत्र दिया। बाबासाहब कहते हैं जो व्यक्ति जागरूकता से अपने को सचेत है उसे ही स्वातंत्रय कहते हैं। सामाजिक एवं शैक्षणिक ज्ञान के लिए ही बाबासाहब ने पीपल्स एज्यूकेशन सोसायटी निर्णय महाविद्यालय, सिद्धार्थ काॅलेज जैसे शैक्षणिक संस्थाओं का निर्माण किया। थामस वेन इस विद्वान ने 1976 को अपने काॅमनसेन्स इस किताब मे ‘‘अमेरिका ने बिरटने से संबंध विच्छेद करनेे का सुझाव दिया। वे कहते हैं ‘स्वतंत्रता की संख्या पाणी के देव्हल समान हो उन्होंने फ्रान्स के लोगों को नये समाज निर्मिती की दिशा दी। इसलिए वहां के लोगों को उनके लिए अब राजप्रसाद का निर्माण किया। भारत में डाॅ. बाबासाहब अंबेडकर ने मनुस्मृति दहन, यवदार तालाब का सत्याग्रह लालाराम मन्दिर प्रवेश, 1956 की धम्मवादी जैसे एकता, समता, मानवता, लोकशाही का प्रारूप दिशा सभी उनके द्वारा मिला। उन्हें रहने को जगह न मिलने के कारणवश बड़ोदा के सयाजी पार्क मे रोते हुए आंसू बहाना पड़ा पुना पैक्ट द्वारा महात्मा ने बाबासाहेब द्वारा दिया हुआ स्वतंत्र मतदान संघ का शोषितो का अधिकार होगा । जाॅन दिवे यह कोलंबिया विद्यापीठ मे शिक्षण वश ये उन्होने मेरे जीवन का ही मैं ही शिष्टाचार हूं सदा प्रार्गातक सिद्धांत दिया वे कहते हैं ‘‘जितना के तरह देवाका दृष्टिकोण निराशावादी न हो, इंसान अपने जीवन को अपने मर्जी से आकार दे सकता है। बाबासाहेब ने तथागत बुद्ध का अत्त दिपो भवः स्वीकार कर दुनिया को बुद्ध के मानवता का संदेश दिया। दुनिया के हर इन्सान का दूसरे इन्सान के प्रति का नाता यही बुद्ध के दर्शन का केन्द्र बिन्दु है। यही बुद्धवाणी को बाबासाहेब ने स्वीकार कर लाखो करोड़ो को दीक्षा दी। एक समय भी भारत बुद्ध भूमि ही थी, वहां की बुद्धमूर्तियो को ध्वस्त करने वाले तालिबानी हाथो को अमेरिका ने कत्ल किया। डाॅ. बाबासाहेब आबेडकर का मानव अधिकारों के लिये किया गया संघर्ष, प्रबुद्ध मानवतावादी लिा के पुर्नजीवित दिया गया तत्वज्ञान के वजह से बाबा साहेब आधुनिक विश्व के आधुनिक बुद्ध है। बाबासाहब ने बौद्ध अनुयायिओं के लिये बुद्ध आफ हीज धम्म यह महान ग्रंथ दिया। उसके लिये उन्होंने रात दिन परिश्रम किया। अपने जिन्दा रहने के अंतिम एक वर्ष में उन्होंने इस ग्रंथ की निर्माती दी। बाबासाहेब का बुद्ध एंड हीज धम्म यह ग्रंथ दुनिया के लिये मानवतावाद मार्गदर्शक एव प्रमाण ग्रंथ बने इसलिए हमे प्रयासरथ होना चाहिए। मानव को सम्मानपूर्वक जीने के लिये और धम्म कहीं वर्तमान मे एक मात्र पर्याय है। यह बाबासाहेब ने दुनिया को दिया। आज हमें भारत में ही नहीं दुनिया के आतंकवाद अल्गांववाद हिंसा शोषण के विरूद्ध बुद्ध की स्वतत्र बंधुता एव न्याय इन मानविय तत्वों की आवश्यकता है। इन मूल्यों का संक्रमण एवं संवर्धन करके प्रज्ञाशील करूणा का मानवी दृष्टिकोण स्वीकार कर बाबासाहेब को अभिप्रेत प्रबृद्ध विश्व निर्माण हेतु सभी मिलकर संघर्ष करना होगा। - अशोक बोंदाडे Tags : world Nations program festival representatives presence anniversary