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देवी दुर्गा ने महिषसुर का वध क्यों किया ?

Ramswroop Bouddh

Monday, May 6, 2019, 07:37 AM
Mahisasur vadh

देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध क्यों किया ?
ऐतिहासिक तथ्यों से ज्ञात होता है कि राजा महिषासुर वंग देश के राजा थे जो गंगा-यमुना के दो भाग में बसा था, उपजाऊ मैदान था। जिसे आज बंगाल बिहार, उड़ीसा और झारखण्ड के नाम से जाना जाता है। बंग प्रदेश की उपजाऊ जमीनों पर अधिकार के लिए आर्यो के राजा इन्द्र ने कई बार हमले किये परन्तु राजा महिषासुर की संगठन शक्ति से पराजित होना पड़ा था। फिर उन्होने बल नहीं, तो छलबल से महिषासुर के महल में सेवा चाकरी करने का राजा को अपने मोहजाल में फंसाने उसको हत्या कराने के उद्देश्य से भेजा। देवी दुर्गा राजा के महल में नौ दिन तक रही। उसने अपने सुरों को महल के बाहर जंगलों में छुपा के रखा था जो हथियारों से सुसज्जित और सात दिन पूरे होने पर दुर्गा ने अपने सुरों से रात्रि में हमला करने को कहा परन्तु सुरों को युद्ध में पराजत होना पड़ा था। उसके बाद दुर्गा स्वयं ने हथियारों से लैस होकर शेर की सवारी के साथ महिषासुर से 2 दिन तक युद्ध किया और उस युद्ध में धोखे से उसकी हत्या कर देती है। महिषासुर किसी पशु और स्त्री पर हथियार नहीं उठाता था। ऐसा उसका नियम था जिसका फायदा दुर्गा ने उठाया और उसकी हत्या कर दी।
    हिन्दू धर्म में दुर्गा की कथा 250 ईसवी से लेकर 500 ईसवी तक लिखे गये मार्कण्डेय पुराण में है, जिसका ‘दर्गा सप्तसती’ के रूप में ब्राम्हणों द्वारा पाठ किया जाता है। दुर्गा सप्तसती के अनुसार, दुर्गा के अलग-अलग रूप और नाम है। वह ‘जगतजननी’ है लेकिन उसकी उत्पत्ति देवताओं के तेज से हुई है और उससे ही वह शक्तिशाली बनी है। ताकि वह देवों की पराजय का बदला ले सके। दुर्गा का वाहन शेर है और वह हथियारों से लैस रहती है। ‘प्राचीन’ काल के ग्रन्थों में लिखा है कि देवताओं और असुरों में सौ वर्षों तक युद्ध होता रहा। उस समय असुरों का स्वामी महाप्रतापी राजा महिषासुर था और देवताओं का राजा इन्द्र था। उस संग्राम में देवताओं की सेना असुरों से हार गई। सभी देवताओं को जीतकर महिषासुर ‘इन्द्र’ बन गया था और युद्ध हारकर सभी देवता ब्रम्हाजी के पास गये थे। वहाॅ विष्णु और महादेव विराज रहे थे। देवताओं ने कहा कि महिषासुर ने तो सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि, पवन, यम और बरुण आदि सभी देवताओं क अधिकर छीन लिया है। उसने देवताओं के ‘स्वर्ग’ से निकाल दिया है। महिषासुर महा दुरात्मा है। देवता पृथ्वी पर मृत्यों की भाँति विचर रहे हैं आप उसके वध का कोई उपाय बताओ, तब विष्णु और महादेव ने क्रोध से भरकर ‘दुर्गा’ को उत्पन्न किया और महिषासुर का वध करने हेतु भेजा। यह युद्ध पूरे नौ दिन तक दिन रात चला और दुर्गा ने नौवी रात को उसकी हत्या कर दी। हत्या की खबर मिलते ही आर्य लोग महिषासुर के आदमियों पर टूट पड़े और उनके मुंड (मस्तिष्क) काटकर उन्होंने नई माला बनाई। यही माला उन्होंने दुर्गा के गले में डाल दी। इसी हत्या और नरसंहार के उपलक्ष्य में अश्विनी शुक्ल मास के दसवे दिन ‘दशहरा’ का त्यौहार मनाया जाने लगा। जिसमें हिन्दुओं के अलावा एस.सी., एस.टी. व ओ.बी.सी. के लोग बड़ी संख्या में भाग लेेते हैं। उन्हें यह ज्ञात नहीं है कि यह ‘जश्न’ हम अपने ही पूर्वजों तथा अपने ही राजा की हत्या का जश्न मना रहे हैं।
    दुर्गा पूजा और नवरात्रि का चलन आज भारत के अनेक हिस्सों में प्रचलित है। खासकर दुर्गा का जोरदार चलन कोलकाता व पश्चिमी बंगाल में है। वहाॅ दुर्गा प्रतिमा बनाने वाले कारीगर वेश्यालय से थोड़ी मिट्टी अवश्य लाते हैं। चूँकि वेश्यायें दुर्गा को अपना कुलदेवी मानती हैं। इसलिए दुर्गा प्रतिमा बनाते समय वेश्याओं से मिट्टी लाने का चलन है। दुर्गा अविवाहित थी उससे विवाह किसी ने नहीं किया। देवता उसे अन्य अप्सराओं की भाँति ही अपने लिए रखते थे। 
हिन्दुओं द्वारा ‘विजयदशमी’ का त्यौहार राजा महिषासुर व रावण का वध करने के उपलक्ष में और सामूहिक रूप से असुरों व राक्षसों का नरसंहार कर अनुष्ठान के रूप में मनाया जाता है। समूचा वैदिक साहित्य सुर-असुर या देव-दानवों के युद्ध वर्णनों से भरा पड़ा है। असुर, दैत्य, दानव, राक्षस कौन है? इसे दलित व पिछड़े तबके के लोग नहीं जानते। भारत के आदि काल मूलनिवासी समुदाय महान योद्धा रावण को अपना वंषज मानते हैं और पूजा करते हैं। दक्षिण भारत के अनेक लोग द्रविण समुदायों में रावण की आराधना प्रचलित है, बंगाल, उड़ीसा, बिहार, असम और झारखण्ड के ‘संथाल’ भी स्वयं को रावण के वंश का मानते हैं। अब उत्तर भारत के अनेक राज्यों में रावण को अपना मानकर सम्मान व पूजा करते हैं। और जगह-जगह ‘रावणोत्सव’ मनाया जाता है। जैसे-जैसे लोगों को जानकारी हो रही है और पड़ना-लिखना जान रहे हैं, वैसे-वैसे ही लोगों को अपने मूलनिवासी राजाओं के प्रति सम्मान बढ़ता जा रहा है। मूलनिवासी समुदाय के शिवू सौरन जो उस समय झारखण्ड के मुख्यमंत्री थे, को विजयदशमी त्यौहार पर आमंत्रित किया था और रावण के पुतले को जलाने को कहा था। शिवू सौरेन ने रावण के महान विद्वान यौद्धा और अपना कुलगुरू बताते हुए रावण को जलाने से मना कर दिया था। यह थी उनकी रावण भक्ति।
अश्विन शुक्ल ‘दशमी’ को महिषासुर व रावण की हत्या का जश्न मनाया जाने वाला ‘दशहरा’ से भारत के मूलनिवासियों की भावनाएं आहत होती हैं। जैसे भारत व विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में किसी की हत्या का जश्न मनाया जाना कहाॅ तक उचित है। हम भारत के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री और जांत-पांत में संज्ञान लेने वाले न्यायपालिका से मांग करते हैं कि ‘दशहरा’ पर्व पर रोक लगाई जाये जिससे मूलनिवासियों का सार्वजनिक अपमान व नश्लीय भेदभाव न हो सके और साथ ही एक अनुरोध यह है कि ऐसे सार्वजनिक स्थानों पर मनाया जाने वाले पर्व पर केन्द्रीय व राज्यों के बड़े नेता तथा अफसर भाग नहीं लेंगे और न ही राज्य से एवं स्थानीय निकायों से पैसा खर्चें किया जावें। इससे सरकार की करोड़ांे रूपये की बचत होगी। साथ ही लोगों में आपसी प्रेम व सद्भावना बनी रहेगी और न ही किसी की भावनाएं आहत होंगी।
लेखक - रामस्वरूप बौद्ध
बुद्ध बिहार भगवानगंज, अजमेर (राज.)

 





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