बहुत दुःख होता है Sudarsan Shende Friday, May 10, 2019, 08:31 AM बहुत दुःख होता है बहुत दुःख होता है जब आज भी कोई बहुजन व्यक्ति अत्यन्त दयनीय स्थिती में दिखाई देता ! बहुत दुःख होता है जब आज भी बहुजन समाज का व्यक्ति मानसिक रूपेन गुलाम दिखाई देता है ! विद्वानों के विद्वान ड़ाॅ. भीमराव अम्बेड़कर के इस समाज को पतित हुआ देख एक बार फिर से सिन में दर्द सा उठन लगता है। जिस महाविद्वान ड़ाॅ. भीमराव अम्बेड़कर ने इस बहुजन अम्बेड़कर समाज को उन्नती के शिखर पर पहूंचाना चाहा, विकास की डोरी से बांधना चाहा पर वही समाज आज पिछड़ते जा रहा है क्योंकि जिस बाबा साहेब ने हमें शील और सदाचार की शिक्षा दी आज हम उन्हीं से खिलाफत कर बैठे है ! आज हम पूरी तरह से बेईमान हो चुके है ! क्योंकि आज हम फिर से अंधविश्वास, रीति, नीति व्यर्थ आडम्बरों के चक्कर में आ चूके है। ना हम शील का पालन करते है न हममें प्रज्ञा है। तो फिर कैसे किस तरह हिन्दू धर्म की ये बेकार कि परम्परायें और हिन्दू रीति रिवाज हमारा पीछा छोड़ेंगे ? बाबा साहेब हमें सबसे बड़ा उपहार और अधिकार शिक्षा हासिल करने का दे गये है ! पहले हमारी जिन्दगी पशुओं से भी बदत्तर थी शिक्षा प्राप्त करने का भी अधिकार नहीं था उस वक्त हम पशुओं की तरह जीवन जीते थे या ये की हम पूर्ण रूप से कोमा में थे मगर ड़ाॅ. बाबा साहेब भीमराव अम्बेड़कर ने हमें कोमा से बाहर निकाला है। और इंसान को इंसान का दर्जा दिलाया उन विषम परिस्थितीयों में सत्य को परखने की शैली का निर्माण हमारे मन-मानस में किया फिर भी हम असत्य की देहलीज पर खड़े है, उन पांखड़ों में लिप्त है, जिससे हमें सदैव दूर रहने की हिदायत दी गयी थी तो फिर कैसे हमारा विकास होगा, किस तरह हम दूनिया पर अपने रूतबे को कायम करेंगे ? नहीं भूलना चाहिए की दृविड़ संस्कृति के नागवंशी लोग है जो कभी राजाओं से कम नहीं थे मगर धोके के कारण आज भी अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहें है। कहने का तात्पर्य यही है कि यदि आज भी हमने इन पाखंड यरूपी हिन्दू धर्म से रिस्ता न तोड़ा और बुद्ध और बाबा साहेब के विचारों का पालन नहीं किया तो एक दिन ऐसा आयेगा कि हमारी जिन्दगी तबाह हो जायेगी हमारा अस्तित्व मिट जायेंगा। जिसमें हम पूणः हिन्दू (हारे हुए लोगों का धर्म) धर्म के ना सिर्फ गुलाम बाकी दास बनकर रह जायेंगे। तर्क वितर्क कर संघर्ष करों, इसलिए शिक्षित बनो, संघठित रहो, और संघर्ष करों। सुदर्शन शेन्ड़े Tags : society Scholars morally person condition miserable appears