गाँधी, नेहरू और अम्बेड़कर Tejratan Boudh Friday, May 10, 2019, 08:21 AM गाँधी, नेहरू और अम्बेड़कर विश्व इतिहास में, इतने कम समय में, इतनी सारी जिम्मेदारीयाँ एवं विपरित परिस्थितीयों को मद्देनजर किसी और संविधान निर्माता ने विश्व का संविधान नहीं बना पाया। ऐसी शख्सियत सिर्फ बोधिसत्व ड़ाॅ. बाबा साहेब अम्बेडकर ही थे। जिससे अथक परिश्रम से भारत का सर्वोत्तम संविधान बन पाया। इसलिए आज भारत, संघ राष्ट्र के रूप में विश्व में प्रगति के मार्ग पर दौड लगा रहा है। लेकिन भारत की मनुवादी व्यवस्था अब भी भारत की उन्नती में उसफल टाँग अड़ा रही है। भारत के संविधान की विशेषताएँ बाबा साहेब की देन है। क्योंकि संविधान निर्माण का सारा भार बाबा साहेब के कंधों पर ही रहा था। इसलिए हम भारतीय गैर हिन्दुओं को उनका ऋणी होना चाहिए। संविधान निर्माण के तुरंत बाद बाबा साहेब की प्रशंसा में डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था की ‘‘बाबा साहेब की खराब स्वास्था के बावजूद भी दिन-रात मेहनत कर सविधांन बनाने का कार्य पूर्ण किया। शायद कोई और नहीं कर सकता था। भारतीय संविधान निर्माण के लिए और मानव अधिकारों के स्थापना के लिए 6 जून 1992 को कोलम्बिया विश्वविद्यालय ने बाबा साहेब को एल. एल. डी. की डिग्री प्रदान की, जिसे विश्व मान्यता मिली। आज विश्व के सभी मानवों के हितैसी, महानतम मानवतावादी, क्रांतिवीर फिलोस्फर सब से बड़ै बुद्धिजीवी बाबा साहेब ही थे, जो एक मिशाल है। इसका भारत वासियों को गर्व होना चाहिए। यहाँ भी मनुवादी एवं गाँधीवादीयों की टाँग अडी हुई दिखाई दे रही है। जिसको भारत का गैर हिन्दू समाज महसूस कर रहा है। अब गाँधीवादीयों और मनुवावादीयों को समझ लेना चाहिए की भारत को विश्व में सिरमोरे बनाने के लिए भारत को निचले स्तर से डठाकर सबसे आगे ले जाना चाहिए। अगर गाँधीवाद और मनुवाद इस बात को नहीं मानता तो एक दिन मनुवाद को भारत का, भारत में, भारतीयों के लिए गुलाम बनना पडेगा। यह एक चेतावनी है। क्योंकि बाबा साहेब द्वारा मनुवादी सभ्यता को बदल डालना मनुवादीयों के लिए करारा झटका है। अब गैर हिन्दूओं में से बुद्धिजीवी उभर कर आ रहे हैं। भारत में जब तक गाँधी, नेहरू प्लान चलेगा, तब तक भारत तरक्की की रफ्तार में पीछे रहेगा। क्योंकि गाँधीवादीयों की मानसिकता अच्छी नहीं है। बतौर उदाहरण जवाहरलाल नेहरू ने अंगे्रजों से कहा था कि भारत को आजादी दे रहें हो तो एक एक ऐसे आदमी को भी दो, जो भारतीय संविधान का निर्माण भी कर सके। जवाब में अंग्रेजों ने कहा की भारतीयों को हिरा की पहचान नहीं है, जातिवाद में अन्धे हो रहें है। भारत में ड़ाॅ. बाबा साहेब जैसा विद्वान, जो भारत का ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के राष्ट्रो का संविधान लिख सकते हैं। ड़ाॅ. के सिद्धान्तों पर विश्व को पूरा-पूरा भरोसा है। वहाँ नेहरू का मनुवादी चेहरा हारे ज्वारे जैसा दिखाई दे रहा था। गाँधी बहुत चालाक बिल्ली जैसा व्यक्ति था। गाँधी से कोई प्रश्न पुछता अगर गाँधी के पास उस प्रश्न का उŸार नहीं होता, तो मौन धारण कर लेता था। ऐसी गाँधी की काबिलियत थी मानों अंधों में काना राजा। अब सन्तों की भी आवश्यकता नहीं है। सन्त भी फेल हो चुके है। सन्तांे ने पूर्व में अच्छे काम किये थे, पर क्रांति नहीं ला सके थे। उनकी बात नहीं मानी गई। एक क्रांति तथागत बुद्ध के समय आई और दूसरी क्रांति बोधिसत्व ड़ाॅ. बाबा साहेब अम्बेड़कर द्वारा लाई गई। जो आदिनांक तक चली आ रही। इस क्रांति को भारतीय बौद्ध महासभा, श्री विजय मानकर की ऐम्बस राष्ट्रीय बौद्ध महासभा तथा समता सैनिक दल का भरकस योगदान मिल रहा है। मेरे विचार से सभी संघठनों को आलस्य त्यागना होगा। तथागत बुद्ध के बाद विश्व का सबसे महानतम विद्वान ड़ाॅ. बाबा साहेब ही हुए है। इनके अलावा और कोई दूसरा नहीं हुआ। जिनके पास दूनिया चलाने का जज्बा था। एक यही कारण है कि ड़ाॅ. भीमराव आम्बेड़कर पर रिसर्च शुरू हो गया। तथागत बुद्ध और बाबा साहेब ने एक मूल मंत्र दिया की गरीबों पर दया करना छोडकर मौलिक अधिकारों के तहत ऐसा कानून बनाये जाए की गरीबी समूल नष्ट हो सके। ताकि भारत में एक भी गरीब न रहें। इसके लिए एक ऐसा सिंलिंग कानून लाया जावे की पूंजीपतियों के धन का राष्ट्रीयकरण हो सके। तथा एक सिमित दायरे मे प्रति व्यक्ति धन संपत्ति का मालिक बने। इससे दो बहुत बडे़ लाभ होंगे। प्रथम भारत में कोई भी गरीब नहीं होगा। द्वितीय भ्रष्टाचार जड़ से समाप्त हो जायेगा। फिर किसी अन्ना हजारे को झुठा नाटक नहीं करना पडेगा। एक विशेष बात यह भी है कि भारत देश के मंदिरों में जितना धन जमा है, उसका राष्ट्रीयकरण कर सरकार को अपने कब्जे में लेना होगा। फलस्वरूप देश का कर्ज भी चुक जावेगा। बाबा साहेब की प्रतिमा अमेरिका में कोलम्बिया विश्वविद्यालय के कानून विभाग के सामने स्थापित है। एक भारतीय ब्राम्हण ब्राम्हण कोलम्बियों के पदाधिकारी से पूछा की यह प्रतिमा किसकी है ? तो उसने उस ब्राम्हण को जवाबुल जवाब में पूछा की आप किस देश के नागरिक है ? भारतीय ने जवाब दिया की मैं भारत का नागरिक हूं। तब उस पदाधिकारी ने कहा की आप भारत के निवासी नहीं है या फिर बेवकुफ है। यह प्रतिमा उस महान विद्वान की है, जो भारत का नागरिक है। इसका नाम है ड़ाॅ. भीमराव आम्बेड़कर। मनुवादीयों और गाँधपवादीयों को सर्म आनी चाहिए, जो विदेशीयों के सामने बेदज्जत होते है। दुनिया में दुःख मुक्ति की कोई विचार धारा नहीं है। ऐसी विचार धारा तथागत गौतम बुद्ध और बाबा साहेब ड़ाॅ. भीमराव अम्बेड़कर की है। क्योंकि इन दोनों शक्ष्सियतों की विचार धारा में आत्मा-परमात्मा की खोच नहीं है। बल्कि संसार में दुःखों का अन्त करना है। इस विचार धारा को सम्पूर्ण विश्व मान रहा है। सिर्फ भारत में मनुवादी और गाँधीवादी नहीं मान रहें है। यह मनुवादी व्यवस्था नहीं चाहती की भारत में समता, स्वतंत्रा, बन्धुता और मैत्री पूर्ण समाज बने। जिसमें भाईचारा व न्याय का बोलबाला हो। गरीबी एवं दुःख का अन्त हो। ‘‘युगपुरूष अम्बेड़कर, चमक उठा मानु। इंकलाब के गीत गा, छीन रहा सम्मान।। छीन रहा सम्मान, हगदय में क्रांति आई। फुले राष्ट्रपिता के दर्शन की, ज्योति जगाई।। कनि सत्यार्थी कहें, सचिव की पदवी त्यागी। अधिकारों को हासिल करने की, धुन लागी।। तेजरतन बौद्ध उपाध्यक्ष (राजस्थान प्रदेश) भारतीय बौद्ध महासभा Tags : India hard work Baba Saheb person Constitution circumstances responsibilities view time history