ड़ाॅ. बाबा साहेब ने हिंदू संस्कृति को नजर अंदाज नहीं किया Dr. Pandurag parate Monday, May 6, 2019, 06:56 AM ‘‘ड़ाॅ. बाबा साहेब ने हिंदू संस्कृति को नजर अंदाज नहीं किया’’ ड़ाॅ. आम्बेड़कर 3 सितंबर 1935 को येवला में घोषणा की थी कि मैं हिंदू धर्म में जन्मा हूं लेकिन हिंदू रहकर नहीं मरूंगा। यह घोषणा सारे भारत में बिजली के करन्ट के जैसी फैली। धर्मान्तर करने का बाबा साहेब का यह निर्णय क्षणिक नहीं था। हिंदू धर्म के जड़ों को मिटाने का, जातिवाद मिटाने का, हिंदू धर्म में परिवर्तन लाने के लिए उन्होंने वर्षाें तक कोशिश किया। उनका मत था कि अगर हिंदू धर्म से जातिवाद, वर्णभेद, ऊंच-नीच की भावना को निकाल दिया जाय तो हिंदू धर्म अच्छा धर्म हैं ऐसा उनका कहना था। इस घोषणा के बाद उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर की दीक्षा भूमि पर ‘‘ऊ चन्द्रमणी’’ द्वारा बौद्ध धर्म में दीक्षा ली और करीबन पांच लाख लोगों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी। 16 अक्टुबर 1956 को चन्द्रपुर में जाकर उन्होंने करीबन दो लाख लोगों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी। 21 वर्षों तक हिंदू धर्म से जातिवाद मिटाने का इन्तजार किया। इस प्रदीर्घ के कालावधी के बाद जातिवाद को मिटाना अंसभव सा लगने लगा, तब उन्होंने विचार पूर्वक निर्णय लिया की हिंदू धर्म से बाहर निकलना ही अच्छा है। उन्होंने अपने भाषण में कहा था की ‘‘मैंने हिंदू धर्म से जातिभेद को मिटाने का बहुत प्रयास किया मगर सफलता नहीं मिली’’ वे हिंदू संस्कृति कोे अच्छी तरह से समझ गए थे कि अगर जातिभेद को मिटाया जाय तो हिंदू धर्म बहुत अच्छा धर्म साबित हो सकता है। इसलिए अब मैंने हिंदू धर्म से बाहर निकलने का निर्णय ले लिया है। हमें यह सच्चाई माननी होगी कि जातिभेद से पीड़ित लोग, शोषित लोग, जातिभेद नष्ट नहीं कर सकते। जाति भेद नष्ट करने के लिए शोषक वर्ग सवर्ण वर्ग को आगे आने की जरूरत हैं। मगर दुःख इस बात है कि हमारे देश में ऐसा प्रयत्न नहीं किया गया। महात्मा गांधी ने ‘‘हरिजन पत्र’’ निकालकर अस्पृष्यता दूर करने का प्रयत्न किया, लेकिन सवर्ण लोग, उच्चवर्गीय लोग इसे मानने के लिए कदापि भी तैयार नहीं थे। गांधीजी के विचारों से उनके दिल-दिमांग पर कुछ भी असर नहीं हुआ। जिस कारण उच्चवर्गीय लोगों की मानसिकता नहीं बदल पायी। धर्मान्तर करते समय बाबासाहेब ने बहुत ही विचार पूर्वक बौद्ध धर्म का चुनाव किया। उन्होंने इस बात को ध्यान में रखा की धर्म परिवर्तन करते समय भारतीय लोग हिंदू संस्कृति से जुड़े हुए हैं। देश की एकता तथा अखण्ड़ता को कोई क्षति ना पहूंचे इसलिए पश्चिमी देशों के धर्म को स्वीकार न करने का निर्णय लिया था। भारत में जैन, सिख, ईस्लाम, ईसाइ, हिंदू, बौद्ध आदि अनेक धर्म प्रचलित हैं, और सभी धर्माे के लोगों ने उन्हें आमंत्रित किया लेकिन वे गए नहीं, यह बहुत बड़ा उपकार बाबा साहेब ने हिंदू संस्कृति पर किया है, यानि हिंदू संस्कृति को नजर-अंदाज नहीं किया । मगर सामान्य हिंदू यह मानने को तैयार नहीं है। आज तक प्रस्थापित समाज ने यह उदारता नहीं दिखायी हैं। देश हित का बहुत विचार करने के बावजुद जब धर्म परिवर्तन हुआ तब बौद्ध धम्म को समाज से बहिष्कार तथा अपमान ही सहना पड़ा। नव बौद्ध लोगों को सरकार ने कोई सहायता नहीं किया यह भी प्रश्न हमारें सामने खड़ा है। एक माह बाईस दिन 6 दिसंबर 1956 को महामानव ड़ाॅ. बाबा साहेब आम्बेड़कर का महापरिनिर्वाण हुआ। मगर बाबा साहेेब के ऊपर श्रद्धा और प्यार की वजह से लोगों ने स्वयं को बाबा साहेब द्वारा दिखाये सांचे में ढ़ालने का प्रयत्न किया। कई प्रश्न उठते है कि क्या बाबा साहेब के अपेक्षित समाज निर्माण हुआ है ? बौद्ध धर्म ने ईश्वर को नकार कर सभी धर्माें के विरोध में शिक्षा दी है। बाबा साहेब ने धर्म का चुनाव करते समय अपने ही दर्जें का धर्म चुना है। जिस समाज को आर्थिक विकास क्या यह पता नहीं था, जुल्म, अत्याचार, और अपमान सहना जिनके जीवन का एक हिस्सा बन गया था, ऐसे लोगों को बाबा साहेब ने जो बौद्ध धर्म दिया वह सदाचार वाला धम्म है। ड़ाॅ. बाबा साहेब आंबेडकर अक्सर कहा करते थे कि ‘‘मुझे पिछड़ी जाति मेें जन्म लेने का अभिमान है। अगर इन लोगों का मुझे साथ न मिला होता तो मेरे गुणों का कुछ भी उपयोग न होता।’’ ड़ाॅ. बाबा साहेब आंबेड़कर एक ऐसे नेता है जिन्होंने अपने समाज के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की है। बाबा ने ‘‘बुद्ध और उनका धम्म’’ लिखकर समाज पर बड़ा उपकार किया है। जिससे समाज में चेतना आयी है। कश्मीर प्रश्नों तक हर बात बाबा साहेब के सुझाऐं उपायों से उलटी ही कि गयी है, जिसका परिणाम हम आज तक भुगत रहें है। पिछड़े वर्गों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए दलितों के राजनीतिक पक्ष तथा नेताओं कोे जानबुझकर तोड़ने का कार्य हमारे प्रस्थापित समाज ने किया है। बार-बार टुकड़ों में बांटने के बावजुद आज भी बौद्ध धम्म अपना अस्तित्व बनाये हुए हैं। यह बाबा साहेब के प्रति लोगों के दिलो में जो प्यार और श्रद्धा है, उसी का यह परिणाम हैं। बाबा साहेब कहते थे कि मैं अपना अस्तित्व बनाएँ रखुंगा। मगर साथ में ही कहा करते थे कि मेरा जैसा दृढ़ निश्चयी बनना उनके अनुयायिओं के लिए भी शायद मुमकिन नहीं, इसलिए उन्होंने हमेशा खुद का राजनीतिक अस्तित्व प्रस्थापित करने पर जोर दिया है। बाबा साहेब धर्म परिवर्तन करते समय हिंदू संस्कृति से जुड़े रहना चाहते थे। यह उनके मन की चाह थी। वे सत्य धर्म पर विश्वास रखते थे, वे कहते है कि किसी भी हीनयान, किसी भी महायान, और किसी भी महासेतु से बढ़कर है, सर्वोपरि हैं सत्य का धर्म। ड़ाॅ. बाबा साहेब आंबेड़कर जी ने ‘‘दि बुद्ध एण्ड हिज धम्म’’ यह ग्रंथ लिखकर यह सिद्ध किया है कि हिंदू धर्म से बौद्ध धर्म श्रेष्ठ हैं। ड़ाॅ. भीमराव रामजी आंबेड़कर जी ने समाज के लोगों को शिक्षा दी, दीक्षा दी, बौद्ध धम्म का तत्वज्ञान समझाया जैसे शील, समाधी, प्रज्ञा, करूणा, मैत्री, (1.) अनित्यवाद, (2.) अनात्मवाद, (3.) अनिईश्वरवाद, (4.) अष्टागिंक मार्ग- सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्पना, सम्यक वचन, सम्यक कर्मान्त, सम्यक आजीविका, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति, सम्यक समाधी ऐसा तत्वज्ञान ‘‘दि बुद्ध एण्ड हिज धम्म’’ के ग्रंथ में स्पष्ट रूप से लिखा है। इस पर से यह स्पष्ट होता है कि बौद्ध धम्म के तत्वज्ञान हिंदू धर्म में समाए हुए है। ड़ाॅ. बाबा साहेेब ने बौद्ध धम्म स्वीकारने से पहले श्रीलंका जाकर विद्धान भिक्खुओं से चर्चा की। दिसम्बर 1950 में वल्र्ड बुद्धिष्ट कान्फ्रेन्स कोलोम्बों में डेलीगेट बने। मई 1955 में भारतीय बौद्ध महासंघ स्थापीत किया। बौद्ध धर्म स्वीकारने के पश्चात नवम्बर 1956 को काठमांडू नेपाल में वल्र्ड बुद्धिष्ट कान्फे्रन्स में नव बौद्ध के रूप में डेलीकेट बने। ड़ाॅ. बाबा साहेब आंबेड़कर जी के काम छोटे नही है, सागर के समान है, उनके कार्यों को कभी कमी के रूप में नहीं देखा जा सकता। वे एक महान व्यक्ति थे, अपनी योग्यतानुसार कार्यों के प्रति कृतज्ञ रहें, यह उनकी महानता थी। ड़ाॅ. बाबा साहेब आंबेड़कर जी ने गांधी, जवाहर लाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, जिन्ना, लोकमान्य तिलक, रविन्द्र नाथ टैगोर, आदि को पास से देखा था, परखा था। जिन्होंने हिंदू धर्म की संस्कृति को मजबुती से पकड़ा था। इसलिए उन्होंने हिंदू धर्म की संस्कृति को नजर अंदाज नहीं किया। डाॅ. पांडूरंग पराते, नागपुर Tags : country forward caste destroy discrimination people suffering accept