भारत में बौद्ध धम्म आंदोलन Narendra Shende narendra.895@rediffmail.com Sunday, August 8, 2021, 12:24 PM भारत में बौद्ध धम्म आंदोलन अब अपना अस्तित्व क्यों खो रहा है? मुलनिवासी बहुजन समाज को जोड़ने के खिलाफ कुछ कट्टरपंथी ताकतों ने अल्पसंख्यकों के बीच आपसी मतभेद और टकराव को हवा देने का काम जारी है। जन्म दिन पर बौद्धों ने केक क्यों नहीं काटना चाहिए इस मामले पर उत्तर भारत के बौद्धों में आक्रोश है। पूर्वोत्तर भारत में बौद्ध और ईसाई समुदाय में लड़ाई झगडे कराने में पोंगापंथियों के संगठन कामयाब हुए। पूर्वोत्तर भारत के भिक्खु प्रमुख भदंत नरिंदा महाथेरो के पास मुझे मियांव बुद्ध विहार में तीन बार जाने का अवसर मिला है, Bhadant Dr. Narinda Mahathero भदंत जी ने मुझे हवाई जहाज से आने जाने का पटना, दिल्ली से किराया दिया है। पारंपरिक चकमा, खामटी, श्याम (सियाम से आकर बसे हुए, अहोम समुदाय के लोग जो गोगोई परिवार के लोग सुभाष चन्द्र बोस की सेना के समर्थक, गांधी नेहरू और कांग्रेस ने सताने के भय से गांधीवादी बने लोग) पारंपरिक बौद्धों नगद नारायण के लालच देकर ईसाई बनाने का अभियान हिंदू संगठनों ने चलाया है। पूर्वोत्तर के पांच राज्यों में म्यांमार बर्मा से संबंधित सीमा है। ब्राह्मणों के संगठनों को मैंने 1997-98 में दो सप्ताह के दौरान भदंत डॉ नरिंदा महाथेरा के साथ जाने पर बौद्धों के गांव में बहलाते फुसलाकर ईसाई बनाने के लिए धन दौलत देने वाले मामले स्वयं देखें है। पूर्वोत्तर के अधिकतर भिक्खु अपने को परंपरा वादी कहते है और बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी के धम्म क्रांति से बौद्ध लोगों को जुड़ने से रोकने का काम करते है। बहुत से लोगों ने विवेकानंद फाउंडेशन इंटरनैशनल (VFI) के प्रमुख अजित डोभाल के साथ मिलकर बहुत से कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किए है। रोहिंग्या मुसलमान नरसंहार, ओरिसा के ईसाईयों पर हमले और नरसंहार, बुद्ध गया महाबोधि महाविहार में सिरियल बम ब्लास्ट धमाके मामले के तार सभी एक-दूसरे से जूडे है। नागपुर की दीक्षाभूमि पर कब्जा करने वाला मामला भी इसी में शामिल है। बुद्ध गया महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन के हमारे कुछ भंते मित्रों को बुरी संगत में लगाने वाले, उनका चरित्र हनन कर उनके जीवन को धन दौलत के बल पर बर्बाद करने वाले नागपुर में गिरोह सक्रिय है। दो साल पहले आगरा शहर के पूर्वोदय बुद्ध विहार, ग्वालियर रोड, चक्की पाट के बुद्ध विहार में किसी उपासक ने बुद्ध विहार पर केक लाकर काटने से धर्मप्रकाश बौद्ध ने केक काटना यह बौद्धों की परंपरा नहीं है, यह ईसाईयों द्वारा केक की हत्या ( काटना) और मोमबत्ती बुझाना है, बौद्ध काटते नहीं है और मोमबत्ती को जलाते है, बेवजह बुझाते नहीं है।" कहने से वहां नवयुवाओं के बीच झड़कापड़की हुई, मामला पुलिस स्टेशन में पहूंचा और दो दिन उपासक धर्मप्रकाश को पुलिस हिरासत में बंद किया था और वह जमानत पर छुटा तबसे आगरा शहर में बौद्ध और अबौद्ध जाटवों के बीच तनातनी चल रही है। कल दिनांक 05 जून 2021 को फिर यशवंत बुद्ध विहार, औलिया रोड़ आगरा में भदंत रत्नबोधि महाथेरो की मौत के बाद नये भंते सिद्धार्थ बोधि ने जन्म दिन पर बुद्ध विहार में केक काटने से कुछ उपासकों ने ईसाईयों की परंपरा बोल कर हंगामा किया, उपासक गुड्डू सागर बौद्ध ने मुझे कार्यक्रम के वीडियो भेजे है। आगरा शहर के वरिष्ठ भिक्खु और अखिल भारतीय भिक्खु महासंघ दिल्ली और अखिल भारतीय बुद्ध गया महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन समिति के उत्तर प्रदेश सचिव पुज्य भदंत ज्ञानरत्न महाथेरो जी के गुजर जाने से अब बहुत से मामले बौद्धों के लिए बोलने वाले लोगों की कमी है। जाटव समुदाय से बौद्ध बने हुए लोगों के नवयुवकों में ईसाई धर्म के मानने वाले ब्राम्हणो ने झगड़े फसाद पैदा करने का काम शुरू किया है। नवबौद्धों की हालत पर भावनात्मक बौद्धों को भारी आपत्ति है। बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी ने आगरा के रामलीला मैदान में 18 मार्च 1956 को विशाल जनसभा में सामाजिक हालात देखकर रोते हुए कहा था कि" मुझे पढ़ें लिखे लोगों ने धोखा दिया है। बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी ने लौर्ड लिनलिथगो से कहा था कि मैं पांच सौ ग्रेजुएट के बराबर हुं। आप हमारे समाज की हालत सुधारना चाहते है तो, हमारे कुछ लोगों को विदेशों में उच्च पढ़ाई के लिए सुविधाएं दिजिए। करीब 22 लोगों को विदेशों में भेजा गया था। उनमें से एक दो ही लोगों ने बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी के मिशन के लिए कुछ काम किया बाकी लोगों ने खा पिकर गोबर किया इस लिए बाबासाहेब ने परिस्थितियों को देखते हुए कहा था। मुझे आयुष्मान धर्मप्रकाश ने उसकी दो साल पहले की आपबीती बताई थी, उसकी माताजी का आगरे की बौद्ध महिलाओं में बुद्ध गया महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन समिति में बहुत बड़ा योगदान रहा है। आयुष्मान गुड्डू सागर बौद्ध श्रामणेर शिविर में प्रव्रज्यीत हुए थे। बाबासाहेब डॉ आंबेडकर की धम्मक्रांति का नागपुर के बाद महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। सार्वजनिक बौद्ध धम्म दीक्षा के पहले बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी ने देहू रोड़ पूणे में और आगरा में तथागत बुद्ध की मूर्ति 18 मार्च 1956 को स्थापित की थी। Tags : Delhi Patna Bhadant Dr. Narinda Mahathero Miyan Buddha Vihara opportunity Northeast India Bhikkhu communities Buddhist successful organizations Pongapanthis birthday Buddhists North India resentment