बाबासाहेब जन्मोत्सव समिति की मीटिंग जाटव धर्मशाला Sudhir Kumar Jatav Tuesday, April 30, 2019, 08:06 PM बाबासाहेब जन्मोत्सव समिति की मीटिंग जाटव धर्मशाला कल बाबासाहेब जन्मोत्सव समिति की मीटिंग जाटव धर्मशाला में थी। पहली बार पिछले वर्ष 2 अप्रैल 2013 को मैंने इसमें हिस्सा लिया था। हर वर्ष बाबा साहब की जयंती का कार्यक्रम संपन्न करवाने वाले लोग अधिकतर सरकारी कर्मचारी ही है जो अधिकतर बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं और उनमे से कुछ बामसेफ से जुड़े हुए हैं। उनमे बैंक मैनेजर से लेकर शिक्षक तक हैं। हमारा कार्यक्रम चंदा इकठ्ठा करने से शुरू होता है। पिछली बार झाँकियो में सत्यवान सावित्री, श्रवण कुमार की भी झांकिय थी। झाँकियो को जो अंतिम रूप देते हैं वो बामसेफ से भी जुड़े हुए हैं। जब झाँकियो पर पिछली बार 13 अप्रैल को चर्चा हो रही थी तभी मैंने उनसे कहा था कि ये झांकियां गलत है। अन्धविश्वास और ब्राह्मणवाद को बढ़ावा देती है लेकिन उन्होंने मेरी बातो पर गौर नहीं किया। सभी झाँकियो के साथ वो झांकी भी जयंती कार्यक्रम में शामिल रही। इस बार जब मुझको कल फिर झाँकियो पर सुझाव रखने के लिए कहा गया तो मैंने उनसे फिर यही कहा कि पिछली बार झाँकियो में सत्यवान सावित्री और श्रवण कुमार शामिल रही थी। जयंती को निकालने का हमारा उद्देश्य शक्ति प्रदर्शन करना ही नहीं बल्कि जागरूकता पैदा करना भी है। सत्यवान सावित्री की कथा पूरी तरह से बाबा साहब के विचारो के खिलाफ और अन्धविश्वास को बढ़ावा देने वाली है। इससे समाज का नुकसान होने के साथ साथ ही बाबा साहब का भी अपमान है। अगर हम किसी महापुरुष का जन्मदिवस मना रहे हैं तो कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं कि उनके विचारो का अपमान ना हो। सत्यवान की मौत का पहले से ही पता होना ज्योतिष जैसे अन्धविश्वास को बढ़ावा देता है। क्या आज तक कोई अपनी या किसी और की मौत को पहले से जान पाया है ? उसके बाद सावित्री साक्षात् यमराज को देख लेती है और उसके पीछे पीछे भी चल देती है। क्या आज तक किसी ने काल्पनिक यमराज और आत्मा को देखा है, जबकि मृत्यु सत्यवान की हुई और यमराज सावित्री को दिखाई दे रहा था। यमराज तो भैंसे पर सवार होकर यमलोक को जा रहा था लेकिन सावित्री किस प्रकार यमराज के पीछे पीछे जा रही थी ? क्या किसी अंधे व्यक्ति की आँखे बिना इलाज के किसी आशीर्वाद से सही हो सकती हैं, लेकिन सावित्री के सास ससुर की आँखे भी आशीर्वाद से वापिस मिली और उनको उनका राज्य भी वापिस मिला। सावित्री यमराज से पुत्रवती होने का वरदान मांगती है तो यमराज उसको वरदान देकर चल देता है। तब यमराज पूछता है अब तुम पीछे क्यों आ रही हो ? तब सावित्री कहती है कि आपने मुझको पुत्रवती होने का वरदान दिया है और मेरे पति को लिए जा रहे हैं तो बिना पति के मैं पुत्रवती कैसे हो सकती हूँ। इतना सुनकर यमराज सावित्री को उसके पति के प्राण लोटा देते हैं। अब मैं कहता हूँ जब कुंती बिना पति के कर्ण को जन्म दे सकती है, पांडवो को जन्म दे सकती है तो फिर सावित्री क्यों नहीं बिना पति के पुत्रवती हो सकती थी ? अब बात करते हैं श्रवण कुमार की उससे माता पिता की सेवा करने की शिक्षा मिलती है ये बात तो सही है लेकिन क्या माता पिता की सेवा उनको धार्मिक स्थानों की यात्रा करवाने से होती है ? आप कह सकते हो उसके माता पिता की इच्छा यही थी। हाँ, उसके माता पिता की इच्छा ये हो सकती है लेकिन धर्म को मुख्य केंद्र में रखकर बनाई हुई किसी कहानी को हमको बाबा साहब की जयंती कार्यक्रम में हिस्सा देना चाहिए ? इस पर बड़ी बात ये है कि इन झाँकियो को बनाने वाले और इनमे हिस्सा लेने वाले हमारे समाज के ही बच्चे और बड़े थे। क्या हम उनको सिर्फ इसलिए मना नहीं कर सकते क्योंकि उनको बुरा लग जायेगा ? अगर हम ही उनको नहीं बताएँगे तो वो कैसे समझेंगे कि ये बस कहानियां है और ढकोसलो को बढ़ाने वाली हैं। मैंने समिति के सामने अपना सुझाव रख दिया है। अगर इसके बावजूद इस वर्ष भी यही होता है तो फिर मुझको सोचना पड़ेगा कि मुझको इसमें शामिल रहना चाहिए या नहीं। सुधीर कुमार जाटव Tags : Buddhism employees government anniversary People first time Babasaheb Yesterday