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अनाथपिंडिक का ऐतिहासिक शिल्पांकन

Rajendra Prasad Singh

Saturday, August 24, 2024, 02:26 PM
shilpkana

अनाथपिंडिक का ऐतिहासिक शिल्पांकन!

अनाथपिंडिक श्रावस्ती के प्रसिद्ध व्यापारी तथा पूँजीपति थे। बचपन का नाम सुदत्त था। राजगीर में ससुराल थी। यहीं वे गौतम बुद्ध से प्रभावित हुए थे। प्रभावित भी ऐसे हुए कि तथागत को ठहरने के लिए श्रावस्ती में उन्होंने राजकुमार जेत से जेतवन की जमीन पर करोड़ों स्वर्ण मुद्राएँ बिछाकर उसे खरीद लिए और भव्य महाविहार बनवाए।

फाहियान ने जेतवन महाविहार का वर्णन करते हुए लिखा है कि जेतवन विहार सात तले का था। विहार के पूरबी दरवाजे पर पत्थर के बने दो धम्म स्तंभ खड़े हैं। एक पर धम्म चक्र और दूसरे पर बैल की आकृति बनी हुई है। विहार के दाएँ - बाएँ निर्मल जल से भरे सरोवर हैं और सदाबहार पेड़ों के वन हैं, जिनमें रंग - बिरंगे फूल खिले हैं।

ह्वेनसांग ने जेतवन विहार के पूरबी दरवाजे पर खड़े दोनों प्रस्तर - स्तंभों की ऊँचाई 70 फीट बताई है और लिखा है कि ये दोनों प्रस्तर - स्तंभ सम्राट अशोक ने बनवाए हैं। श्रावस्ती का नाम ह्वेनसांग ने शलोफुशीटी और फाहियान ने शी - वेई लिखा है।

साहित्यिक साक्ष्य बताते हैं कि गौतम बुद्ध ने अपने जीवन के सर्वाधिक वर्षावास कुल मिलाकर 25 वर्षावास यहीं बिताए थे। सबसे अधिक यहीं बोले भी थे। जेतवन विहार इसीलिए बौद्धों के लिए खास है।

जेतवन विहार कब बना होगा? साहित्यिक प्रमाण से पता चलता है कि तथागत ने जेतवन विहार में प्रथम वर्षावास बोधि के 14 वें वर्ष में किए थे। यदि बुद्ध का जन्म - वर्ष 563 ई. पू. में मान लिया जाए तो उन्हें 35 वर्ष की उम्र में बोधि की प्राप्ति हुई थी तो बोधि - वर्ष 528 ई. पू. होगा। फिर यदि वे 14 वें वर्ष में जेतवन विहार में प्रथम वर्षावास किए, तब जेतवन विहार का निर्माण- काल 514 - 513 ई. पू. होगा।

अनाथपिंडिक द्वारा जेतवन की खरीद का शिल्पांकन भरहुत स्तूप पर उत्कीर्ण है। शिल्पांकन के ठीक नीचे धम्म लिपि में लिखा है - " जेतवन अनाथपेडिको देति कोटि संथतेन केता"। मतलब कि खरीददार अनाथपिंडिक करोड़ों ( स्वर्ण - मुद्राएँ ) बिछाकर जेतवन अर्पित करते हैं।

शिल्पांकित पटल पर हाथों में जल - पात्र लिए जो जेतवन को अर्पित करने के लिए खड़े हैं, वे अनाथपिंडिक हैं। बैलगाड़ी पर लादकर स्वर्ण - मुद्राएँ जेतवन की जमीन पर बिछाने के लिए आई हैं। बैलों की नाक में नाथने की रस्सी लगी है। कंधों से जुए को हटा लिया गया है। बैलों से जोती हुई गाड़ी खुल चुकी है।

बैलगाड़ी के पीछे से एक आदमी स्वर्ण - मुद्राएँ उतार रहा है। जो स्वर्ण - मुद्राएँ गाड़ी से पहले उतार ली गई हैं, उन्हें दो आदमी जेतवन की जमीन पर बिछा रहे हैं। शर्त थी कि जेतवन की जमीन उसे बिकेगी, जो इसे स्वर्ण - मुद्राओं से ढक देगा और अनाथपिंडिक ने बुद्ध के लिए यह चुनौती स्वीकार कर ली थी।

2200 सौ साल पहले का जो बैलगाड़ी का उत्कीर्णन है, वह अभी हाल तक की बनी बैलगाड़ी की बनावट से मेल खाती है। आश्चर्य इस बात की है कि इतने बड़े पूँजीपति के आवास के निकट ही अंगुलिमाल का भी आवास था। ह्वेनसांग ने लिखा है कि सुदत्त के मकान के निकट अंगुलिमाल का वह स्थान था, जहाँ वे बौद्ध हुए थे। खुदाई में भी सुदत्त और अंगुलिमाल के स्थलों के बीच की दूरी कोई 50 मीटर ही है।





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