मनुवाद बनाम अंबेडकरवाद TPSG Friday, October 16, 2020, 08:07 AM मनुवाद बनाम अंबेडकरवाद मनुस्मृति वर्ण व्यवस्था को देश में कायम रखना मनुवाद है इसी उद्देश्य से ब्राह्मणों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ , आर एस एस की सन 1925 में स्थापना की थी, यह कट्टर हिंदुत्ववादी ब्राह्मणों का संगठन है, इस संगठन का गठन एक महाराष्ट्रीयन चितपावन ब्राह्मण केशव बलिराम हेडगेवार ने किया था, इस संगठन का मुख्य उद्देश्य देश को हिंदू राष्ट्र बनाना है , और जिस डॉक्टर बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर द्वारा सन 1927 को मनुस्मृति जलाई गई थी , और उसी डॉक्टर अंबेडकर द्वारा आजाद भारत का संविधान निर्माण किया गया है, उस संविधान को नष्ट कर उसे बदलकर मनुस्मृति रामराज्य लागू किए जाने के उद्देश्य ब्राह्मणवादी मनुवादी विचारक फासीवादी ताकतें काम कर रही है, जब 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ था तो आर एस एस ने उस दिन को काला दिवस के तौर पर मनाने का सिलसिला शुरू किया था, लेकिन वही 14 अगस्त 1947 को ही जब पाकिस्तान भी आजाद हुआ था, तो आर एस एस ने जश्न मनाया था, 26 जुलाई 1950 को जब R.S.S. पर प्रतिबंध लगाया गया था, तब सरदार पटेल और आर एस एस के बीच समझौता हुआ था, उस समझौते में सरदार पटेल ने कहा था, कि आर एस एस को संविधान को स्वीकार करना होगा, 15 अगस्त 1947 को भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाना होगा, और आर एस एस कार्यालयों पर तिरंगा झंडा फहराना होगा। आर एस एस, आजाद भारत के संविधान को नहीं मानती, भारत का संविधान लागू नहीं होना चाहिए इसके विरोध में आर एस एस ने समूचे देश में डॉक्टर बाबा साहब अंबेडकर के पुतले जलाए थे, हिंदू महासभा और आर एस एस उस समय भूमिहीनों को वोट का अधिकार नहीं देना चाहती थी, बाल गंगाधर तिलक शूद्रों को उनके हक और अधिकार देने के कट्टर विरोधी थे, उन्होंने अपनी पत्रिका केसरी और मराठा में लिखा था कि शुद्र वर्ण पिछड़ा वर्ग और अछूतों को भारत की नागरिकता नहीं दी जा सकती है , क्योंकि वर्ण व्यवस्था के अनुसार शुद्र वर्ण का एकमात्र कर्तव्य, ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य तीनों उच्च वर्गों की सेवा करना है, धर्म शास्त्र के अनुसार वे किसी भी अधिकार को धारण करने के अधिकारी नहीं है, देश में ब्राह्मण वादी मनु वादियों की पूर्ण बहुमत में सरकार है, और इसी वर्ण व्यवस्था धर्म शास्त्रों के अनुसार उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून सी ए ए और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर एनसीआर लाकर धर्म के आधार पर नागरिकता दिए जाने का कानून, पाकिस्तान , अफगानिस्तान एवं बांग्लादेश के हिंदुओं को भारत की नागरिकता देकर हिंदू राष्ट्र यानिकि ब्राह्मणराष्ट्र बनाने का षड्यंत्र रच कर मुसलमानों और दलितों की नागरिकता वोट देने का अधिकार छीनने का षड्यंत्र रचा गया है, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने हिंदू राष्ट्र के संबंध में कहा था, यदि हिंदू राष्ट्र हकीकत में बनता है, तो वह इस मुल्क देश के लिए सबसे बड़ा अभिशाप होगा, हिंदू कुछ भी कहे हिंदू धर्म स्वतंत्रता समता बंधुता के लिए खतरा है, इन पैमाने पर वह लोकतंत्र के साथ मेल नहीं खाता, हिंदू राज को किसी भी कीमत पर रोकना होगा, जब डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर ने हिंदू धर्म त्याग कर 14 अक्टूबर 1956 को विजयादशमी के दिन नागपुर में बौद्ध धम्म की दीक्षा देकर धम्मचक्र प्रवर्तन किया था, तब आर एस एस ने बौद्धों पर कई हमले पथराव किया था, वाराणसी उत्तर प्रदेश से प्रकाशित द हिंदू अखबार ने डॉक्टर अंबेडकर को एहसान फरामोश कहा था,हिंदुओं का कहना था कि डॉक्टर अंबेडकर को उच्च शिक्षा प्राप्त करने हिंदू राजाओं, कोल्हापुर के राजा छत्रपति शाहूजी महाराज और बड़ौदा गुजरात के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने छात्रवृत्ति आर्थिक सहायता दी थी, उनकी सहायता से डॉक्टर अंबेडकर ने विदेशों में जाकर उच्चतम शिक्षा प्राप्त कर दुनिया के महानतम विद्वान बने, परंतु उन्होंने हिंदू धर्म त्याग कर बौद्ध धम्म स्वीकार कर एहसान फरामोश का काम किया है, आर एस एस से संबंध वनवासी कल्याण परिषद के मुखपत्र बप्पा रावत के कृतज्ञन एवं साहित्यिक विध्वंसक लेखक ने महान सम्राट अशोक को खलनायक और बौद्धों को राष्ट्रद्रोही कहां है, आर एस एस देश में ही नहीं अपितु समूचे दुनिया में बौद्ध धम्म को नष्ट किए जाने के लिए एड़ी चोटी एक कर रहा है, और इसी मुद्दे से तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को भारत में शरण देकर उन्हें सर्वभौमा धर्मगुरु की उपाधि देकर हिंदू धर्म की जड़े मजबूत करने का काम कर रहे हैं, अब मनुवाद से अंबेडकरवाद की ओर चलें तो डॉक्टर अंबेडकर ने कहा है, मेरे तीन गुरु है, और तीन देवता, पहला एवं श्रेष्ठ गुरु बुद्ध है, दूसरा गुरु कबीर और तीसरा गुरु ज्योतिबा राव फुले, मेरे तीन देवता है, विद्या स्वाभिमान और शील, उन्होंने अपने समाज को मार्गदर्शन दिया था, शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो,यही अंबेडकरवाद है। उन्होंने कहा था गुलामों को गुलामी की जंजीर खुद तोड़नी होगी, तुम्हारे मालिक तुम्हारी जंजीर क्यों तोड़ेंगे? ऐसा कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारेंगे? अपमानित होकर जिंदा रहना शर्मनाक है, आत्मविश्वास से जीना बहुत जरूरी है, इसके बिना जीवन व्यर्थ है, स्वाभिमान से जिंदगी जीने के लिए अनगिनत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, लेकिन कठिनाइयों और संघर्ष के साथ ही शक्ति स्वागत विश्वास और सम्मान प्राप्त हो सकता है, अज्ञानता से भय पैदा होता है,ऐसे अंधविश्वास पैदा होता है, अंधविश्वास से अंधभक्ति पैदा होती है, अंधभक्ति से व्यक्ति का विवेक शून्य हो जाता है, और जिसका विवेक शुन्य हो जाता है, वह इंसान नहीं मानसिक गुलाम हो जाता है, इसलिए अज्ञानी नहीं ज्ञानी बनो।। समता स्वतंत्रता न्याय भाईचारा पर आधारित समाज राष्ट्र देश भारत का निर्माण करने प्रेरित किया है,अनुसूचित जाति जनजाति पिछड़ा वर्ग अल्पसंख्यक और महिलाओं को एक उद्देश्य एक विचारधारा के आधार पर संगठित करना होगा, खून की एक बूंद भी न बहाते हुए लोगों के आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक जीवन में परिवर्तन लाना होगा, भेदभाव गैर बराबरी विषमता गुलामगिरी इन के विरुद्ध संघर्ष करना होगा।।वर्ण व्यवस्था जाति व्यवस्था अस्पृश्यता एवं महिलाओं की दास्तां के खिलाफ लड़ना होगा,यही अंबेडकरवाद हैं।। उन्होंने जो राजनीतिक दल का गठन किया था, रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया,उन्होंने बौद्धों को संगठित करने के लिए दि बुद्धिस्ट सोसायटी आफ इंडिया एवं अपने लोगों की सुरक्षा के लिए समता सैनिक दल का गठन किया था,उसे ईमानदारी और निष्ठा से चलाना होगा यही अंबेडकरवाद है।।।यह नहीं कि डॉक्टर अंबेडकर के नाम की आड़ में स्वयं अपने नाम से तो कई संगठनों और राजनीतिक दल अपनी इच्छा अनुसार बनाकर अपने विचारों के तहत काम करना अंबेडकरवाद का खात्मा कर मनुवाद की जड़े मजबूत करने का काम कर रहे हैं, ऐसे लोग नेता, अंबेडकरवादी नहीं बल्कि मनुवादी है, और मनु वादियों के लिए काम करते हैं, डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर ने अपने लोगों से कहा था,हिंदू धर्म 4 मंजिला इमारत है, परंतु इसमें जाने के लिए खिड़की दरवाजे नहीं है, ब्राह्मणों ने तुम्हें अपने भगवानों देवी देवताओं से और वेद पुराणों से हमेशा दूर ही रखा मंदिर में जाने नहीं दिया परंतु तुम्हारी लात खाने की आदत पड़ गई है, तुम ब्राह्मणों के द्वारा बनाए गए काल्पनिक देवी देवताओं के मंदिरों में घुसते हो जिन्होंने तुम्हारा कभी कोई भला नहीं किया, बौद्ध धम्म मानवतावादी धम्म है,तुम्हें बौद्ध बनना होगा, बौद्ध धम्म में ही मनुष्य का सर्वांगीण विकास एवं कल्याण निहित है, मैं बुद्ध को इसलिए अपनाता हूं क्योंकि बुद्ध ने ना सॉन्ग का लालच दिखाया है,न नर्क का डर, वो ना खुद को भगवान मानते हैं,ना मुक्तिदाता। वह सिर्फ अपने को मार्ग दाता बताते हैं, इस जगत में ईश्वर हो न हो इसका विचार करने की तुम्हें कोई जरूरत नहीं है, इतनी बात सत्य है, कि विश्व में जो कुछ घटित होता है, वह मनुष्य ही निर्माण करता है, डॉक्टर अंबेडकर ने कहा था,मनु लाजमी तौर पर एक ढीड व दूर साहसी व्यक्ति होगा, सामाजिक अधिकारों के संबंध में मनु के कानूनों से ज्यादा बदनाम कोई विधि संहिता नहीं है। मनुस्मृति दलितों शुद्रौ अछूतों महिलाओं बल्कि समस्त मानवता के खिलाफ है, तथा भारतीय संविधान विरोधी है, मनुस्मृति सहित सभी स्मृतियों पर प्रतिबंध लगना चाहिए, यदि मनुवादी अभी सोच समझ से काम नहीं लेते तो ना सविधान होगा ना लोकतंत्र, हिंदू राष्ट्र चाहने वालों को दोनों में से एक का चुनाव करना पड़ेगा,गुरु द्रोणाचार्य की तरह मनुस्मृति के लेखक की जितनी अधिक निंदा आलोचना की जाए उतनी कम है, भगवान बुद्ध के बाद दुनिया के सर्वोच्च महानतम विद्वान डॉ बाबासाहेब आंबेडकर,मनुस्मृति के लेखक मनु महाराज को क्रिमिनल माइंडेड मेन की संज्ञा दी थी, कुछ लोग कहेंगे कि मैं गड़े मुर्दे उखाड़ रहा हूं, लेकिन यदि कोई व्यक्ति गंभीर अपराध करके मरा हो तो उसकी लाश को खुदवा कर शव परीक्षा की जाती है,मनु महाराज वह पुराणकार मर गए परंतु ब्राह्मणवादी उनकी रीढ़ के गुरियों की माला पहने आज भी घूम रहे हैं, जयपुर राजस्थान में हाई कोर्ट के सामने मनु की प्रतिमा लगाई गई है, तथा हिमाचल प्रदेश की भाजपा सरकार ने मनाली में मनु का एक विशाल मंदिर बनाने का प्रस्ताव रखा था, इसलिए बाजार में उपलब्ध मनुस्मृति में यही लिखा मिलेगा, सर्वोच्च न्यायालय भी बहुत से फैसले मनुस्मृति के विधान के अनुसार देता है, तमिलनाडु सरकार ने मंदिर के अर्चको के पदों उच्च शिक्षित वह प्रशिक्षित अभ्यर्थियों द्वारा योग्यता एवं प्रतियोगिता के जरिए भरना चाहा तो इसके विरोध में ब्राह्मणों ने सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर किया, और सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि मंदिर के पुंजारी के पद पर काम करना ब्राह्मणों का कानूनी मौलिक एवं मानवीय अधिकार है।। मंदिर के महंत का उत्तराधिकारी कोई शुद्र नहीं हो सकता।।। उसी तरह ब्राह्मण एट्रोसिटी एक्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए तो सुप्रीम कोर्ट ने एट्रोसिटी एक्ट को निष्प्रभावी कर दिया , ब्राह्मण मनुवादी, पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ हाईकोर्ट तो हाई कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण को ही खत्म कर दिया, अब सर्वोच्च न्यायालय आरक्षण को मौलिक अधिकार नहीं है, बता रही है, मान भी लें आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन प्रतिनिधित्व का संवैधानिक अधिकार तो है ना, फिर आरक्षण को भी खत्म करने की सरकार और न्यायालय मनुस्मृति के अनुरूप क्यों साजिश कर रही है? हाल ही में अयोध्या विवादित ढांचे के ऐतिहासिक गंभीर एवं अहम मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुओं के आस्था के आधार पर बिना साक्ष्य प्रमाण के राम मंदिर बनाने के पक्ष में असंवैधानिक निर्णय दिया है, याने की संविधान के विपरीत मनुस्मृति के अनुसार निर्णय है, हालांकि यह फैसला मनुवादी सरकार के दबाव एवं प्रलोभन में दिया गया फैसला है, जिसकी पूरी दुनिया एवं सुप्रीम कोर्ट के विद्वान जजों ने कड़े शब्दों में निंदा की है, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस कुरियन जोसेफ ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने न्यायपालिका की निष्पक्षता के सिद्धांतों के साथ समझौता किया है, राज्यसभा के नामांकन की स्वीकृति ने निश्चित तौर पर न्यायपालिका की स्वतंत्रता में आम आदमी के विश्वास को हिला दिया है, जो संविधान का एक मूल आधार भी है।।।पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने कहा है, कि यौन रूप से सामान्य रंजन भाई जैसा बेशर्म जज मैंने आज तक नहीं देखा है, ऐसी कोई बुराई नहीं जो इसमें आदमी में ना हो, और यह दुष्ट कपटी इंसान अब भारतीय संसद में जाने वाला है, 27 मार्च 2019 को जस्टिस रंजन गोगोई ने स्वयं कहा था, सेवानिवृत् जजों की किसी सरकारी संस्था में नियुक्ति न्यायपालिका पर धब्बा है, लेकिन यह जानते हुए भी रंजन गोगोई ने अपने ईमान और धर्म को एक तड़ीपार गुंडे के सामने उनके कदमों पर रख दिया, न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान की मूल ढांचे का जरूरी हिस्सा है, और लोकतंत्र का एक स्तंभ माना जाता है, न्यायपालिका की ताकत इस देश की जनता के विश्वास में निहित होती है, रिटायर्ड जजों को राज्यसभा में नामांकित करने का कोई भी नियम न्यायपालिका की आजादी के संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने अछूत कौन और कैसे अपनी ऐतिहासिक पुस्तक में लिखा था, मनुवाद हिंदू सभ्यता मानवता को दबाने और उन्हें गुलाम बनाने की एक निर्दयी शैतानी साजिश है, इसलिए डॉक्टर अंबेडकर ने अपने लोगों से कहा इस साजिश के खिलाफ संगठित होकर लड़ना होगा, जुल्म इतना बुरा नहीं है , जितनी बुरी तुम्हारी खामोशी होगी, बोलना लड़ना सीखो वरना आने वाली पीढ़ियां गूंगी हो जाएगी, सांसों का रुक जाना ही मृत्यु नहीं है , वह व्यक्ति भी मरा हुआ ही है, जिसने अन्याय का विरोध करने की हिम्मत को दिया है, अन्याय का प्रतिकार करते समय आप की मृत्यु हो जाती है, तो आने वाली पीढ़ी इसका बदला लेगी परंतु अन्याय सहते सहते मर गए तो आने वाली पीढ़ी भी आप जैसे कायर और गुलाम बनेगी, इसलिए डॉक्टर अंबेडकर ने संगठित संघर्ष को जीवन का लक्ष्य बताया है, उन्होंने कहा स्वाभिमानी लोग ही संघर्ष की परिभाषा समझते हैं, जिनका स्वाभिमान मरा होता है, वह गुलाम होते हैं , मुर्दा लोग मिशन नहीं चलाते, और जिंदा लोग मिशन रुकने नहीं देते, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर अस्पृश्य अछूतों दलितों के मसीहा और सच्चे देशभक्त थे, शुद्र अस्पृश्य को परंपरातक दासता से मुक्ति दिलाने उनके जीवन एवं कार्य का प्रधान लक्ष्य था, जिसे उन्होंने कभी नहीं छुपाया, अस्पृश्यौ की मुक्ति को उन्होंने स्वराज आजादी के लिए किए जाने वाले आंदोलन संघर्ष से भी अधिक महत्वपूर्ण समझा था, उनका कहना था कि यदि कभी उनके हित और अस्पृश्यौ के हितों में संघर्ष हुआ तो वे प्रथम अछूतों के हितों को ही महत्व देंगे और यदि उनके हित एवं देश के हित मे टकराहट हुई तो देश के हित को प्रथम प्राथमिकता देंगे किंतु अछूतों के हितों में और देश के हित में कभी संघर्ष हुआ तो वे शूद्रों के हितों को महत्व देंगे, इतनी बड़ी महान सोच विचार थे, डॉक्टर अंबेडकर के,यही अंबेडकरवाद है, जिन्होंने जीवन भर मनुवाद के खिलाफ संघर्ष किया और सन 1927 को सार्वजनिक रूप से मनु स्मृति की होली जलाया था, आज फिर से मनुवाद जिंदा हो गया है, इसे जलाने नष्ट करने विभाजित एवं असंगठित अंबेडकर वादियों को संगठित होना ही पड़ेगा, और यदि संगठित नहीं हुए तो ब्राह्मण वादी मनु वादियों का गुलाम होना पड़ेगा, इसलिए संगठित हो जाओ इस देश में मनुवाद बनाम अंबेडकरवाद की ही लड़ाई है, जिसे सच्चे अंबेडकरवादी ही लड़ सकते हैं,और अपने समाज डॉक्टर अंबेडकर द्वारा निर्मित भारतीय संविधान और लोकतंत्र को बचा सकते हैं।।।। Tags : nation objective organization purpose country system Manusmriti maintain