डाॅ. बाबासाहेब अम्बेडकर की पत्रकारिता Dinesh Bhaleray Saturday, June 22, 2019, 03:40 PM डाॅ. बाबासाहेब अम्बेडकर की पत्रकारिता भाईयों और बहनों हम सभी अम्बेडकर विचारधारा को मानने वाले है। हमारे माता-पिता ने हमें बचपन से बाबासाहेब उनके संघर्ष तथा अपना व अपने पूर्वजो की पूर्वपीठिको के बारें में बताया है, कई घरो में बाबासाहेब की पुस्तके खरीद कर पढ़ी जाती है। बाबासाहेब के बारे में सामान्य जानकारी प्रायः सभी लोग रखते है जैसे बाबासाहेब का जन्म 14 अप्रैल 1891 में हुआ था। उनका जन्मस्थान इन्दौर के समीप महू में हुआ था, आगे उनका बचपन महाराष्ट्र, कोंकण, मुम्बई आदि स्थानों पर बीता साथ में उन्होने शिक्षा भी ग्रहण की आगे उच्च षिक्षा के लिए वे लन्दन व अमेरिका भी गये, आगे भारत लौटने के बाद समाज सुधारक, जातिभेद उन्मूलन तथा विरोध कानूनी व मजदूर यूनियन के मसलों पर अपने विचार गहन अध्ययन युक्त प्रबंध रहें व आंदोलन भी चलायें। स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माता आप रहे, पहले कानून मंत्री रहें, 14 अक्टूबर 1956 को आपने अपने करोड़ों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली व आपका महापरिनिर्वाण दिनांक 6 दिसंबर 1956 को हुआ। भाईयों आप कहेंगे क्या बाबासाहेब कोई समाचार पत्र में भी कार्य किया करते थे उनकी पत्रकारिता मतलब उन्होंने जैसे वकालत की वैसे की पर पत्रकारिकता भी की है क्या ? इस सवाल का उत्तर नकारात्मक देना पडेगा। बाबासाहेब ने पेशे के लिए पत्रकारिता नही की बल्की अपने आंदोलन को एक वैचारिक बैठक व दिशा निर्देशन के लिए उन्हें ? समाचार पत्र की आवश्यकता पड़ी और उन्होने इसे चालू किया। उस समय समाचार पत्र ही एक माध्यम था जो सस्ता व अधिक से अधिक लोगों तक पहुचने का उत्तम साधन था। समाचार पत्र के माध्यम से वे अपने अनुयायियों के बीच अपने विचार प्रभावी तरीके से रख सकते थे। अपने पाति उन्मूलन आंदोनल के दिशा निर्देशन में भी वह एक प्रभावी भुमिका निभाकर महाराष्ट्र व भारतभर प्रचार-प्रसार के कार्य मे आगे चलकर महत्वपूर्ण साबित हूए। बबासाहब ने कुल 04 समाचार पत्र शुरू किये:- (1) मूकनायक - दिनांक 31 जनवरी 1920 से शुरू (2) बहिष्कृत भारत - 1927 (3) जनता - 1930 (4) प्रबुद्ध भारत - 1956 ये चारों समाचार पत्र मराठी भाषा में थे और मूकनायक और बहिष्कृत भारत इन समाचार पत्रों का संपादन बाबासाहेब ने स्वयं किया था, जनता और प्रबुद्ध भारत दोनो ही समाचार पत्र यद्यपि बाबासाहेब के आंदोलन के प्रमुख पत्र थे फिर भी उन्होने प्रत्यक्ष इसका संपादन नही किया था अपने सहायकों के द्वारा उन्होने इसका संपादन करवाया। मूकनायक के प्रथम अंक ने ही बाबासाहेब में अपना उददेश्य स्पष्ट कर दिया। ’’हमारे समाज के लोग जिन्हे हिन्दूओं ने बहिष्कृत कर दिया है और हमारे ऊपर जो हमले और अन्याय किये जा रहे है, उस पर उपाय योजना करने हेतु साथ ही अछूत समाज की उन्नति व उसके मार्ग की चर्चा करने के लिए समाचार पत्र ही एक रास्ता है, साथ में यह भी स्पष्ट किया की इससे हम स्वयोजनोद्वार का महनतम कार्य कर रहे है।’’ उपरोक्त चार समाचार पत्रों में से जनता का नाकरण ’प्रबुद्ध भारत’ कर उसे आगे चलकर प्रकाशित किया जाने लगा। यद्यपि बाबासाहेब ने अपनी उच्चशिक्षा अंग्रेजी में की थी परन्तु उनका मराठी भाषा पर भी प्रभुत्व था। बाबासाहेब के आंदोलन का काल व इन समाचार पत्रों के प्रकाशन काल पर ध्यान दिया जाए तो आप पायेगे की‘ मूकनायक’ व 8 बहिष्कृत भारत’ इन समाचार पत्रों का महत्व अनन्य साधारण प्रतित होता है। इन पत्रों पर से आप सरसरी नजर भी डाले तो आपको बाबासाहेब की चहुमूखी प्रतिभा का दर्शन अवश्य होगा। सन् 1927 के मार्च माह में बाबासाहेब ने चवदार तालाब अछूतों के लिए खुला करने के लिए आंदोलन चलाया। उसी समय ’कुलाबा जिला बहिष्कृत परिषद का अधिवेशन भी हुआ था। इस अधिवेशन के पश्चात् अपने आंदोलन की धार और पैनी करने के लिए उनको एक समाचार पत्र की आवश्यकता निर्माण हुई। परिणमतः उन्होने 1927 में ’बहिष्कृत भारत की शुरूआत की। बहिस्कृत भारत में विचार विनिमय, विविध सभाओं की जानकारी विविध विषय, पत्रव्यवहार, आत्मपरिचय आदि विविध प्रकार के विषयों पर जानकारी दी जाती थी। इन सब के ऊपर कोई महत्वपूर्ण मुद्दा है तो वह’ आजकल के प्रश्न’ व बाबासाहेब द्वारा लिखा गया’श्अग्रलेख’ एक महत्वपूर्ण निबंध की तरह प्रस्तुत किये जाते थे। मुद्दों का तर्कशुद्ध भाषा में खंडन, योग्य युक्तिवाद, आवेशपूर्ण भाषा, समर्पक उदाहरणयुक्त दोहे आदि शामिल किये जाने से बाबासाहेब के अग्रलेख एक सम्पूर्ण अभ्यासयुक्त प्रबंध जैसे ही परिपूर्ण है। बाबासाहेब ने प्रथम वर्ष 1927 में ’बहिष्कृत भारत’ से अनेक अग्रलेख लिखकर अपने उच्च दर्जा के पत्रकारिता का लोहा मनवाया। इन अग्रलेखों में मुख्यतः ’’महार का धर्म संगर (लड़ाई) व वरिष्ठ हिन्दूजी जवाबदारी’’ (अंक 2), महाड़ का धर्मसंगर और अंग्रेज सरकार की जवाबदारी (अंक 3), महाड़ का धर्मसंगर और अस्पृश्य वर्ग की जवाबदारी’’ (अंक 4) है। इस प्रकार की एक लेखमाला ही उन्होने जारी की थी। इन लेखों को पढ़ने पर/ अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है। बाबासाहेब विषय की अलग-अगल दृष्टिकोण से चिकित्सा कर एक व्यापक, गहन विचारों का निचोड़ इन लेखों में प्रस्तुत है। उन्होने लाहौर हाइकोर्ट के जजमेन्ट का हवाला देकर यह भी पूछा था की ’अस्पृश्यता की रूढ़ी /परम्परा को क्या कानून की मान्यता है? साथ ही मद्रास हाइकोर्ट का हवाला देकर उन्होंने सप्रमाण साबित कर दिया की कोई गलत पंरपरा के कारण कोई भी समाज के सार्वजनिक अधिकारों को नकारा नही जा सकता’ यह उन्होंने सरकार को निखर शब्दो में स्पष्ट किया। यही बात हिन्दूओं को समझाने के लिए उन्होने कानूनी भाषा का प्रयोग न करते हुए, धर्मग्रंथ के तत्वों व सिद्धांतों का उपयोग किया। अस्पृश्यों को इस विषय पर मार्गदर्शन करते समया उन्होने अस्पृश्यों में प्राप्त सत्व व तेज को आहवान किया। एक ही विषय को कानून, प्रमाण व भावना ऐसे तीन अलग शास्त्रों का चतुराई से उपयोग कर अपने बहुमूखी प्रतिमा संपन्न होने का प्रमााण दिया। यह सब पढ़ने पर अभ्यास करने पर और अधिक स्पष्ट होकर सामने आता है और यह पढ़ने लायक होने से इसे पसंद से पढ़ा जा सकता है। इन समाचार पत्रों में बाबासाहेब द्वारा लिखें गये अग्रलेख व अन्य लेखन सामग्री अत्यंत विद्रोही व हिन्दू धर्म पर सवाल खड़ी करने वाली थी। हिन्दू धर्म में चल रही पुरानी परंपराएं जो की अस्पृश्यता जैसे अन्यायकारी प्रथा को बढ़ावा दे रही थी। उसके विरूद्ध कड़े शब्दों का उपयोग कर इन समाचार पत्रों मे कड़ा प्रहार किया। इनके शब्दों में जो धार थी उसका मुख्य कारण यह है कि बाबासाहेब स्वयं दलित समाज में पैदा हुए और वह सब अन्याय, अत्याचार, अस्पृश्यता का दर्द झेला। बाबासाहेब के लेखन का बारीकी से अध्ययन करने पर आप जानेगें की बाबासाहेब की लड़ाई कोई व्यक्ति के लिए नही थी जबकि उनकी लड़ाई ’ब्राहमणवाद’ के विचारों के खिलाफ थी। बाबासाहेब के लेखन पर ब्राह्मण विरोधी होने के दोषारोप भी लगे, आरोप लगाने में लोक मान्य तिलक का अखबार ’केसरी’ प्रमुखता से उभरकर सामने आता है। इनके आरोपों का उत्तर बाबासाहेब ने बहिष्कृत भारत में ’भालाकार, भोपटकार’ ऐसी उपमाओं का उपयोग कर अपने अर्जित तर्क देकर किया है। महाराष्ट्र में पत्रकारों की सम्मानिय परंपरा रही है। इसमें तिलक, आगरकर, परांजपे, केलकर, खाड़ीलकर, कोल्हटकर आदि लोगों के लाम अत्यंत सम्मान व प्रतिष्ठा से लिया जाता है। समाचार पत्र जनता में जाग्रति का काम करते है, परंतु कहने में यह अत्यंत खेद है कि पुराने इतिहासकारों नें बाबासाहेब द्वारा 04 समाचार पत्रों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपादन करने के बाद भी ’पत्रकार अम्बेडकर या बाबासाहेब के पत्रकारिता की उपेक्षा ही की है। भारत व महाराष्ट्र के इतिहास पर लिखे गये पुस्तकों या ग्रंथों में बाबासाहेब का उल्लेख पत्रकार के रूप में नाममात्र के लिए किया गया है। दलित साहित्यिक आंदोलन के प्रणेता व ’असिमदादर्श’ तिमाही मराठी पत्रिका के लेखक, संपादक, संशोधन डाॅ. गंगाधर नानतावणें सर ने जरूर एक पुस्तक ’पत्रकार अम्बेडकर’ लिखकर बाबासाहेब के इस कार्य को सलाम किया है। आज के नये पीढ़ी के नवयुवक, युवतियां बाबासाहेब समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी, कानूनविद, भारत के संविधान के निर्माता, इतिहासकार इत्यादि के रूप में ज्ञात है परंतु प्रस्तुत लेख से बाबासाहेब एक उच्च श्रेणी के पत्रकार थे इसकी जानकारी देने का प्रयास किया गया है। आपके विचारों का स्वागत है। संदर्भ: - (1) बाबासाहेब अम्बेडकर राईटिंग एण्ड स्पीचेस (2) बाबासाहेब अम्बेडकर यांचे बहिष्कृत भारत आणि मूकनायक - संग्रहक - दिनेश भालेराय Tags : movement direction profession negative question answer journalism newspaper