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अंहिसा व्यक्त करता गीत

Sumedh Ramteke

Friday, January 31, 2020, 10:45 AM
Shukh Shanti

बुद्ध की शरण ही उत्तम शरण है।

 

"घबराये जब मन अनमोल,

ह्रदय हो उठे डामा डोल,

तब मानव तू मुख से बोल,

बुद्धं सरणं गच्छामि l

धम्मं सरणं गच्छामि l

संघं सरणं गच्छामि l

 

जब अशांति का राग उठे,

लाल लहू का भाग उठे,

हिंसा की वो आग उठे,

मानव में पशु जाग उठे,

ऊपर से मुस्काते मन,

भीतर जहर रहे तू घोल,

तब मानव तू मुख से बोल,

बुद्धं सरणं गच्छामि l

धम्मं सरणं गच्छामि l

संघं सरणं गच्छामि l

 

जब दुनिया से प्यार उठे,

नफरत की दीवार उठे,

माँ की ममता पर जिस दिन,

बेटे की तलवार उठे,

धरती की काया कांपे,

अम्बर जगमग उठे डोल,

तब मानव तू मुख से बोल,

बुद्धं सरणं गच्छामि l

धम्मं सरणं गच्छामि l

संघं सरणं गच्छामि l

 

दूर किया जिसने जन-जन के,

व्याकुल मन का अंधियारा,

जिसकी एक किरण को छूकर,

चमक उठा ये जग सारा,

दीप सत्य का सदा जले,

दया, अहिंसा सदा पले,

सुख शांति की छाया में,

जन-गण-मन का प्रेम पले,

भारत के भगवान बुद्ध का,

गूंजे घर-घर मंत्र अनमोल,

हे मानव, नित मुख से बोल,

 

बुद्धं सरणं गच्छामि l

धम्मं सरणं गच्छामि l

संघं सरणं गच्छामि l"

बुद्ध ने मैत्री, ममता और अहिंसा का उपदेश दिया है उसे गीत के रचयिताने बखूबी व्यक्त किया है।

"बुद्धं सरणं खेमं,

"सब्बदुक्खा पमुच्चति ।"

बुद्ध की शरण ही उत्तम शरण है। बुद्ध शरण से सभी दु:खों से मुक्ति मिलती है।





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