शूद्रों को गा गा कर गाली दिया TPSG Friday, February 11, 2022, 03:01 PM रामायण में राम का बहाना दे कर खुद शूद्रों को गा गा कर गाली दिया और आज भी शूद्र यानी (SC, ST, OBCs) वही रामायण गा गा कर खुद को ही गाली देता है। कभी रामायण में लिखी चौपाईयो का अर्थ नही समझता।। इसलिए पहले समझो बुझो तब मानो... चलिए आज आपको रामायण में लिखी सत्यता को दिखाते हैं मौलिक जानकारी जिस रामायण मे जात के नाम से गाली दिया गया है, उसी रामायण को शूद्र लोग रामधुन (अष्टयाम) मे अखण्ड पाठ करते है, और अपने आपको गाली देते है । और मस्ती मे झाल बजाकर निम्न दोहा पढते है :- जे बरनाधम तेलि कुम्हारा, स्वपच किरात कोल कलवारा।। (तेली, कुम्हार, किरात, कोल, कलवार आदि सभी जातियां नीच 'अधम' वरन के होते हैं) नारी मुई गृह संपत्ति नासी, मूड़ मुड़ाई होहिं संयासा (उ•का• 99ख 03) (घर की नारी 'पत्नी' मरे तो समझो एक सम्पत्ति का नाश हो गया, फिर दुबारा दूसरी पत्नी ले आना चाहिए, पर अगर पति की मृत्यु हो जाए तो पत्नी को सिर मुंड़वाकर घर में एक कोठरी में रहना चाहिए, रंगीन कपड़े व सिंगार से दूर तथा दूसरी शादी करने की शख्त मनाही होनी चाहिए) ते बिप्रन्ह सन आपको पुजावही, उभय लोक निज हाथ नसावही (जो लोग ब्रह्मण से सेवा/काम लेते हैं, वे अपने ही हाथों स्वर्ग लोक का नाश करते हैं।) अधम जाति मै विद्या पाए। भयऊँ जथा अहि दूध पिआएँ (उ०का० 105 क 03) (नीच जाति (SC, ST, OBCs) विद्या/ज्ञान प्राप्त करके वैसे ही जहरीले हो जाते हैं जैसे दूध पिलाने के बाद साँप) आभीर(अहिर) जमन किरात, खस, स्वपचादि, अति अधरूप जे!! (उ• का• 129 छं•01 )(अथॅ खुद जाने) काने खोरे कूबरे कुटिल कुचली जानि।। (अ• का• दोहा 14) (दिव्यांग abnormal का घोर अपमान है इस रामायण में, जिन्हें भारतीय संविधान ने उन्हें तो एक विशेष इंसान का दर्जा दिया & विशेष हक-अधिकार भी दिये) सति हृदय अनुमान किय सबु जानेउ सर्वग्य, कीन्ह कपटु मै संभु सन नारी सहज अग्य (बा • का• दोहा 57क) ( नारी स्वभाव से ही अज्ञानी)बाकि अर्थ खुद समझे । ढोल गवार शूद्र , पशु , नारी । सकल ताड़न के अधिकारी ।। (ढोल, गंवार और पशुओं की हीे तरह शूद्र(SC, ST, OBCs) एव साथ-साथ नारी को भी पीटना चाहिए) ( सु•का• दोहा 58/ 03) पुजिए विप्र शील गुण हीना, पुजिए न शूद्र गुण ज्ञान प्रविना (सुन्दर काण्ड) (ब्रह्मण चाहे शील-गुण वाला नहीं *है फिर भी पूजनीय हैं और शूद्र (SC, ST, OBCs) चाहे कितना भी शीलवान,गुणवान या ज्ञानवान हो मान-सम्मान नहीं देना चाहिए) इस प्रकार से अनेको जगह जाति एवं वर्ण के नाम रखकर अपशब्द बोला गया है। पुरे रामचरितमानस व अन्य रामायण मे जाति के नाम से गाली दिया गया है। जबकि इसी रामायण मे बालकाण्ड के दोहा 62 के श्लोक 04 मे कहा गया है, कि जाति अपमान सबसे बड़ा अपमान है इतना अपशब्द लिखने के बाद भी हमारा शूद्र/दलित समाज (SC, ST, OBCs) रामायण को सीने से लगा कर रखे हुए है, और हजारो, लाखो रूपये खर्च कर राम धुन (अष्टयाम ) कराते है। कर्ज मे डूबे रहते है। बच्चे को सही शिक्षा नही देते है और कहते है कि भगवान के मर्जी है। आप कभी जानने की कोशिश किया कि राजा राम ने शूद्र कुल के शम्बूक ऋषि का वध्य ज्ञान सीखने के आरोप में किया था। शिक्षित बने, जागरूक बने। कुछ (SC,ST,OBCs) लोग पढ़ने-लिखने के पश्चात (डाॅ भीमराव अंबेडकर जी) के लिखे गए संविधान के आधार पर नौकरी पाते है और कहते है कि ये सब राम जी के कृपा से हुआ है।। जागो शिक्षा ही सर्वोपरि है । यदि आप (भगवान राम ) के कृपा से ही पढे लिखे और नौकरी पाए तो आपके पिताजी, दादाजी, परदादाजी & दादी, नानी, परदादी, इत्यादि भी पढे लिखे होते नौकरी पेशा मे होते! यदि सब राम (भगवान )के कृपा से ही हुआ है, तो आप बताइए कि अंग्रेज़ के राज के पहले एक भी शूद्र (SC, ST, OBCs) पढ़ा लिखा विद्वान क्यों नही बन सका ? उस जमाने मे डाक्टर भीमराव अम्बेडकर जी पढे थे जिन्होने जरूरत मंद को अधिकार दिलवा गये ।।। मेरे प्यारों!! आप शूद्र/दलित अर्थात मूलनिवासी (SC, ST, OBCs) जो भी कुछ है, भारतीय संविधान के बल पर ही है। इसलिए हम सब का परम कर्तव्य बनता है कि भारतीय संविधान की रक्षा करें। संविधान सर्वोपरि है ।इस पोस्ट का मतलब अन्यथा (धर्म, ग्रन्थ, जाति को ठेस पहुंचाना नही है।) केवल संविधान को अधिक से अधिक पढ़ने के लिये प्रेरित करना है। ताकि भारतीय लोकतंत्र की रक्षा की जा सके। भारत की गुलामी में गीता की भूमिका-- भारत की गुलामी में गीता की मुख्य भूमिका है इसलिए ' भारत वर्ष में गीता का जितना प्रचार एवं प्रसार होगा ,इस देश का उतना ही पतन होगा, गीता के मानने वाले लोग स्वयं तो गुमराह होते ही हैं , वे दूसरों को भी गुमराह करते हैं,गीता महाभारत का अंश है ,लेकिन गीताकार ने महाभारत से हटकर ' अपनी - अपनी ढपली और अपना - अपना राग अलापा है,भारत की गुलामी के सात कारण माने जाते हैं,उनमें से लगभग सभी कारण गीता में मौजूद है,गीता में आत्मा - परमात्मा तथा अवतारवाद का झमेला है,इस विज्ञानमय संसार में न कहीं आत्मा है ,न परमात्मा है और न उसका अवतार है,इस आत्मा तथा परमात्मा के ढकोसले ने भारत को रसातल में पहुंचाया है और इसमें भी मुख्य कारण है - परमात्मा का अवतार लेना,गीता में विनाशकारी शिक्षाओं की भी कमी नहीं है, एक -एक विनाशकारी शिक्षा निंबू - निचोड़ का कार्य कर रही है गीता में कर्मयोग की परिभाषा ने मनुष्य को उलझाया है,गीता का ' कर्मयोग ' कर्मयोग न होकर कर्मछोड़ ही सिद्ध होता है गीताकार स्वयं संदिग्ध है ,क्योंकि वह एक वाद का प्रचार नहीं कर पाया है,यदि गीता नहीं होती ,तो शयद गीता भाष्यकारों का ध्यान वैज्ञानिक -शोध की ओर जाता ,न कि गीता की गुत्थियों में उलझे रहता,भारत के पतन की मूल बात वर्णव्यवस्था गीता में मिलती है यह गीता का ही प्रभाव रहा है, कि कोई गैर हिंदू मनुष्य हिंदू धर्म अपनाने से डरता है ,क्योंकि उसे मालूम है कि धर्म परिवर्तन करने में कोई उसे ब्राह्मण ,क्षत्रिय तथा वैश्य तो बनाएगा नहीं ; हां , मजबूरन उसे शूद्र तथा अतिशूद्र ( दलित ) के झाड़ - झंखाड़ में झोंक दिया जाएगा,गीता में आधुनिक विज्ञान के विरोध में ढेर सारी बातें मिलती हैं,उदाहरण के लिए गीता में कहा गया है कि प्रजा ( लोगों ) को परमात्मा ने पैदा किया और कहा कि तुम यज्ञ किया करना ,इससे तुम्हारी सब इच्छाओं की पूर्ति होगी- यथा- सहयज्ञाः प्रजाः सृष्टवा पुरोवाच प्रजापतिः । अनेन प्रसविष्यध्वमेव वोस्त्विष्ट कामाधुक । । - गीता 3 / 10 गीता के परमात्मा ने यह क्यों नहीं कहा कि हे मनुष्यों ! तुम रेलगाड़ी बनाना ,हवाई जहाज बनाना ,कार बनाना ,मोटर साइकिल बनाना ,साइकिल बनाना ,हेलीकोप्टर बनाना कम्प्यूटर बनाना ,रडार बनाना , रोबोट बनाना ,घड़ी बनाना , रेडियो बनाना ,टेलीविजन बनाना और भी दुनिया भर की शोधपूर्ण सामग्री बनाना और इलेक्ट्रोनिक का सारा सामान बनाना,यदि गीता के परमात्मा ने यह सब कहा होता ,तो भारत सारे विश्व में अमेरिका ,फ्रांस ,रूस जर्मनी , इस्राइल तथा जापान से बहुत आगे होता,यदि गीताकार चार्ल्स डार्बिन के सामने होता ,तो वह न पिद्दी , न पिद्दी का शोरबा सिद्ध होता ; क्योंकि चार्ल्स डार्बिन ने सिद्ध किया है कि यह संसार न तो किसी का बनाया हुआ है और न मनुष्यों को किसी काल्पनिक ईश्वर ने गढ़ा है ,यह सब तो विकास का कारण है,गीताकार आगे कहता है कि यज्ञ से बादल पैदा होते हैं यथा - पर्जन्यादन्न संभवः यज्ञाद् भवति पर्जन्यः - गीता 3 /14 क्या गीताकार को मालूम नहीं था कि यज्ञ से बादल उत्पन्न नहीं हो सकते,गीताकार को भूगोल पढ़ना चाहिए था ,जिसमें पढ़ाया जाता है कि बादलों का मूल कारण मानसून होता है,जहां भी पानी एकत्रित होता है ,वह सूर्य की गर्मी से भाप बनकर ऊपर उठता है और वही धीरे -धीरे बादलों का रूप धारण कर लेता है ' यज्ञ से बादल बनते हैं ' , ऐसा कहकर गीताकार ने अवैज्ञानिक बात तो कही ही है ,भारतीयों को भी गलत शिक्षा दी है,यज्ञ से तो वैसे ही बादल उपजते हैं ,जैसे मिलों की चिमनियों और कोयले से चलने वाली गाड़ियों के इंजनों से उठने वाले धुएं से उपजते हैं उनसे पानी नहीं बरसता,वे धुएं के पुंज मात्र होते हैं,यह बात प्राईमरी स्कूल का विद्यार्थी भी जानता है ( गीता की शव परीक्षा -लेखक डॉ सुरेन्द्र कुमार शर्मा , पृष्ठ 135 ). गीताकार को पता होना चाहिए था कि अग्नि में जलने वाली हर वस्तु से कार्बन बनता है,गीताकार ने भारतीयों को भ्रमित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है,वह विज्ञान विरुद्ध बात कहता है कि ' शब्द ' आकाश में रहता है , अर्थात ' शब्द ' आकाश के कारण उत्पन्न होता है,यथा शब्द : खे - गीता 7 / 8 " यह बात विज्ञान के विरुद्ध है ' शब्द ' आकाश में न रहकर ,वायु में रहता है,वायुशून्य किए पात्र में बिजली की घंटी रखकर जब बजाई गई ,तो उससे कोई शब्द न निकला,यह बात प्राईमरी स्कूल के बच्चे भी जानते हैं कि जब पहले -पहल चांद पर ( 20 जुलाई 1969 को ) मानव उतरा था, वहां उतरने वाले दोनों व्यक्ति आपस में बात नहीं कर सके थे ,क्योंकि वहां हवा न होने के कारण जो कुछ वे बोलते थे ,वह ध्वनि -शून्य होता था,बोलने वालों को भी अपने शब्द सुनाई न पड़ते थे, आकाश में ' शब्द ' वहीं सुनाई देता है ,जहां वायु है,जहां वायु नहीं ,आकाश में ' शब्द ' नहीं अतः आकाश में ' शब्द ' का रहना बताना विज्ञान के सिद्धांतों के विपरीत है और अपनी अज्ञानता का परिचय देना है- ” ( गीता की शव परीक्षा , पृष्ठ 140 ). भारत की गुलामी में गीता की भूमिका-पृष्ठ-2-3. -------मिशन अम्बेडकर. Tags : prohibition of getting married And there should be a strict away from colorful clothes and jewelry the wife should shave her head and stay in a cell in the house but if the husband dies then another wife should be brought again then one property has been destroyed If the woman 'wife' of the house dies