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जाने भारत का इतिहास

Ajay Narnavre

Thursday, December 9, 2021, 11:22 AM
History

जाने भारत का इतिहास
"भारत" यह संवैधानिक नाम है । संविधान में India that is भारत" लिखा हुआ न कि हिंदुस्तान ।।  
प्राचीन भारत का सांस्कृतिक नाम था- #जम्बू द्वीप, #वानरंसा द्वीप, #कोया कोयतूर # #सिंगार द्वीप तथा #गोंडवाना लैण्ड ।
प्राचीन भारत की बहुत ही समृद्ध और उच्च कोटी की सभ्यता थी, जिसे सिन्धुघाटी / द्रविड़ / River Valley सभ्यता के नाम से इतिहास में लिपिबद्ध है । इस सभ्यता के निर्माता भारत के मूलनिवासी थे जिनके वंशज आज भारत में SC/ST/OBC/ Minority के रूप में है।
 समृद्ध गोंडवाना लैंण्ड को विदेशी आक्रमणकारियों ने नष्ट करके आज विश्व में सबसे पीछे ढकेल दिया हैं ?
 भारत पर 12 बार विदेशी आक्रमण हुए :-
1. यूरेशियायी आर्य ब्राह्मण
2. मीर काशीम 712 ईस्वी
3. महमूद गजनवी
4. मोहम्मद गोरी
5. चंगेज खान
6. कुतुबुद्दीन ऐबक
7. गुलाम वंश
8. तुगलक वंश
9. खिलजी वंश
10. लोदी वंश
11. मुगल वंश
12. अंग्रेज (British)

  सबसे पहला विदेशी आक्रमणकारी आर्य ब्राह्मण यानि यूरेशियन ब्राह्मण थे । जिन्होंने (अर्थवा, रथाईस्ट, वास्तानिया) यहाँ आक्रमण कर साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपना कर यहाँ की समृद्ध सभ्यता को छिन्न-भिन्न किया। अकूत संपत्ति को लूटने का काम किया देशी नरेशों से हजारों साल तक लड़ाई होती रही इसी लड़ाई को वेदों में सुर-असुर ; देव-दानव ; देवता-राक्षस के नामों से जाना जाता है। आर्य अपने को देवता / सुर तथा भारत के मूलनिवासी द्रविड़ों को असुर / राक्षस / निशाचर की संज्ञा देकर वेदों में Hero को Velion और Velion को Hero बनाया। वेदों के अनुसार यज्ञों में भारी संख्या में पशुबली, गौबली की परंपरा थी दुराचार, कुसंस्कार, अमानवीय परंपरा थी जो ब्राह्मणों की संस्कृति कही जाती है। ब्राह्मणधर्म और वेद की नीतियों से मूलनिवासी पूर्ण रूप से उब चुके थे।

तथागत बुद्ध की धम्मक्रांति एवं सम्राट अशोक
 तथागत बुद्ध ने जब वेद और ब्राह्मणधर्म के विरोध में एक नया मानवतावादी मार्ग "धम्म" की स्थापना की तो लोग "बौद्धधम्म" अपनाने लगे। उस समय बड़े बड़े बौद्ध सम्राटों का उदय हुआ। अशोक से पहले ब्राह्मण हजारों गौवंश का कत्ल यज्ञ के नाम पर करते थे जो किसानो के लिए चिंता का विषय था। क्योंकि गोवंश का उपयोग किसान अपने कृषि कार्य में करते थे । पशु बलि की वजह से गौवंश की संख्या में कमी आ रही थी जिसे रोकने के लिए सम्राट अशोक ने अपने राज्य में पशु हत्या पर पाबन्दी लगा दी थी, जिसके कारण ब्राह्मणों की रोजगार योजना बंद हो गई थी । उसके बाद सम्राट अशोक ने शिकायत मिलने पर तीसरी धम्म संगति में 60,000 ब्राह्मणों को बौद्ध धम्म के भिखु संघ से निकाल बाहर निकाला था । ब्राह्मण 140 सालों तक ब्राह्मणों का पाखंडवाद नहीं चल पाने के कारण ब्राह्मणों की रोजीरोटी बन्द हो गई थी । उस वक़्त ब्राह्मण आर्थिक रूप से कमजोर हो गए थे ? ब्राह्मणों का वर्चस्व और उनकी असमानता पर आधारित गैर बराबरी की परंपरा "वर्णव्यवस्था" खत्म हो गई थी ।
 *उसी समय ब्राह्मणों मौर्य सेना में घुसपैठ करके पुष्यमित्र शुंग नाम का ब्राह्मण सेनापति बनने में सफल हो गया और मौर्य वंश के 10 वें न्यायप्रिय सम्राट राजा बृहद्रथ मौर्य की धोखे से हत्या करके ईसा पूर्व 185 में खुद को मगध का राजा घोषित कर लिया था। और इस प्रकार छल कपट पूर्ण हिंसा से बौद्ध भारत में ब्राह्मणशाही की स्थापना पुष्यमित्र शुंग के द्वारा की गई । गद्दार पुश्यमित्र शुंग ने राजा बनने पर राजशक्ति के दम पर पाटलिपुत्र से स्यालकोट तक सभी बौद्ध विहारों को ध्वस्त करवा दिया व बौद्ध साहित्य को जला दिया था तथा अनेक बौद्ध भिक्षुओ का खुलेआम कत्लेआम किया था। पुष्यमित्र शुंग, बौद्धों व यहाँ की जनता पर बहुत अत्याचार करता था ।

 उत्तर-पश्चिम क्षेत्र पर उस वक्त यूनानी राजा मिलिंद का अधिकार था। राजा मिलिंद बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। जैसे ही राजा मिलिंद को पता चला कि पुष्यमित्र शुंग, बौद्धों पर अत्याचार कर रहा है तो उसने पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया। पाटलिपुत्र की जनता ने भी पुष्यमित्र शुंग के विरुद्ध विद्रोह खड़ा कर दिया, इसके बाद पुष्यमित्र शुंग जान बचाकर भागा और उज्जैनी में जैन धर्म के अनुयायियों की शरण ली।

 जैसे ही इस घटना के बारे में कलिंग के राजा खारवेल को पता चला तो उसने अपनी स्वतंत्रता घोषित करके पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया। पाटलिपुत्र से यूनानी राजा मिलिंद को उत्तर पश्चिम की ओर धकेल दिया।

 इसके बाद ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग को उसके दरबारी राज कवि वाल्मीकि ने राम के नाम से प्रचारित किया और अपने समर्थको के साथ मिलकर पाटलिपुत्र और श्यालकोट के मध्य क्षेत्र पर अधिकार किया और अपनी राजधानी उस समय की विश्व प्रसिद्ध बौद्ध नगरी साकेत को बनाया। पुष्यमित्र शुंग ने बाद में इसका नाम बदलकर अयोध्या कर दिया। अयोध्या अर्थात-बिना युद्ध के बनायीं गयी राजधानी ।

 राजधानी बनाने के बाद पुष्यमित्र शुंग उर्फ राम ने घोषणा की कि जो भी व्यक्ति, बौद्ध भिक्षुओं का सर (सिर) काट कर लायेगा उसे 100 सोने की मुद्राएँ इनाम में दी जायेंगी। इस तरह सोने के सिक्कों के लालच में पूरे देश में बौद्ध भिक्षुओ का बड़े पैमाने पर कत्लेआम किया गया ।  राजधानी में बौद्ध भिक्षुओ के सर इनाम पाने के लिए आने लगे । इसके बाद कुछ चालाक व्यक्ति अपने लाये हुए सर को चुरा लेते थे और उस सर को दुबारा राजा को दिखाकर स्वर्ण मुद्राए प्राप्त करते थे। जब पुष्यमित्र शुंग को पता चला कि लोग ऐसा धोखा भी कर रहे है तो पुष्यमित्र शुंग ने एक बड़ा पत्थर रखवाया और लाये हुए बौद्ध भिक्षु के सर को उस पत्थर पर मरवाकर उसका सर का चेहरा बिगाड़ देता था । इसके बाद सर को घाघरा नदी में फेंकवा देता था। राजधानी अयोध्या में बौद्ध भिक्षुओ  के इतने सर आ गये कि कटे हुये सरों से नदी पूर्णतः पट गयी और उसका नाम सरयुक्त अर्थात वर्तमान में अपभ्रंश होकर "सरयू" हो गया।

 पुष्यमित्र शुंग के दरबार में राजकवि वाल्मीकि  नाम का ब्राह्मण था जिसने "रामायण" लिखी थी। जिसमें राम के रूप में पुष्यमित्र शुंग को और "रावण" के रूप में मौर्य सम्राटों का वर्णन करते हुए उसकी राजधानी अयोध्या का गुणगान किया था और राजा से बहुत अधिक पुरस्कार पाया था। इतना ही नहीं, इसी काल मे वाल्मीकि रामायण, महाभारत, पुराण और स्मृतियों आदि काल्पनिक ब्राह्मण धर्मग्रन्थों की रचना की गई ।

 बौद्ध भिक्षुओं के कत्लेआम के कारण सारे बौद्ध विहार खाली हो गए, तब आर्य ब्राह्मणों ने सोचा कि इन बौद्ध विहारों का क्या करें कि आने वाली पीढ़ियों को कभी पता ही नहीं लगे कि इतिहास में क्या हुआ था ?

 तब उन्होंने इन सब बौद्ध विहारों को मन्दिरो में बदल दिया और इसमे अपने पूर्वजो व काल्पनिक पात्रों,  देवी देवताओं को वहां पहले से ही स्थापित बौद्ध मूर्तियो को भगवान बताकर स्थापित कर दिया और पूजा पाखण्ड के नाम पर यह मंदिर रूपी दुकानें खोल दी गई ।

 साथियों, इसके बाद ब्राह्मणों ने मूलनिवासियो (बौद्ध धम्मियो) को बौद्ध विहारों से convert किये गये मन्दिरों मे प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा दिया ताकि वे इस घटना को याद न रख पाये और इतना ही नहीं बौद्ध धम्मियों को कमजोर करने के लिए राजसत्ता की ताकत से वर्ण-व्यवस्था का convertion जाति व्यवस्था में कर दिया गया । जाति व्यवस्था का निर्माण कर भारत के मूलनिवासियों को 6000 जातियों में विभाजित कर दिया । और क्रमिक असमानता, ऊँच-नीच , गैरबराबरी, छुआछूत जैसी बनावटी जातिव्यवस्था का निर्माण किया तथा इस जातिव्यवस्था को ब्राह्मणों ने ईश्वर निर्मित बता कर प्रचारित किया ताकि इसे थोपने पर मूलनिवासी (बौद्ध) सहजता से स्वीकार कर लें । ब्राह्मणों ने मूलनिवासियों को इतने छोटे-छोटे हजारों जातियों के टुकड़ो में बाँटा ताकि मूलनिवासी संगठित होकर ब्राह्मणों से फिर कभी विद्रोह न कर सकें, उनसे युद्ध न कर सके और ब्राह्मणों पर फिर से विजय प्राप्त न कर सके।

 ध्यान रहे उक्त बृहद्रथ मौर्य की हत्या से पूर्व भारत में मन्दिर शब्द ही नही था, ना ही इस तरह की कोई संस्कृति थी वर्तमान में ब्राह्मण धर्म में पत्थर पर मारकर नारियल फोड़ने की जो परंपरा है ये परम्परा पुष्यमित्र शुंग के बौद्ध भिक्षु के सर को पत्थर पर मारने का प्रतीक है।

 पेरियार रामास्वामी नायकर ने True Ramayan यानी " सच्ची रामायण" नामक पुस्तक लिखी जिसका उत्तर प्रदेश के पेरियार ललई सिंह यादव ने हिन्दी में अनुवाद किया । जिस पर उ.प्र. govt ने प्रतिबन्ध लगा दिया और तब मामला इलाहबाद हाई कोर्ट मे चला गया और केस नम्बर 412/1970 में वर्ष 1970-1971 व् सुप्रीम कोर्ट 1971 -1976 के बीच में केस अपील नम्बर 291/1971 चला ।

 जिसमे सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस पी एन भगवती, जस्टिस वी आर कृष्णा अय्यर, जस्टिस मुर्तजा फाजिल अली ने दिनाक 16.9.1976 को निर्णय दिया कि सच्ची रामायण पुस्तक सही है और इसके सारे तथ्य सही है। सच्ची रामायण पुस्तक यह सिद्ध करती है कि "रामायण" नाम के देश में जितने भी ग्रन्थ है वे सभी काल्पनिक हैं और इनका पुरातात्विक व ऐतिहासिक कोई आधार नही है। अथार्त् 100% फर्जी व काल्पनिक है। एक ऐतिहासिक सत्य जो किसी को पता नहीं है कि बौद्ध जातक कथाओ में मिलावट कर ब्राह्मणों ने रामायण व अन्य धर्म ग्रंथ लिखे और बौद्ध साहित्य का ब्राहम्णीकरण किया और भारत के मूलनिवासियों को शिक्षा, संपत्ति और शस्त्र धारण करने से वंचित किया । ताकि लोग वास्तविक षढयन्त्र से अनभिज्ञ रहें और जो ब्राहम्णो द्वारा बताया जा रहा है उसे ही सच मानें । विदेशी ब्राहम्णों के इन सडयंत्रों ने भारत के मूलनिवासियो को मनुवादी/ब्राहम्णवादी के अमानवीयता पूर्ण कानूनों से अपमानित व अधिकारों से वंचित कर गुलाम बना दिया और यह देश बाद में बाहर से आक्रमण कारी ताकतो का गुलाम हो गया ।

यही है भारत का असली इतिहास, जिसके पुरातात्विक प्रमाण भी उपलब्ध हैं ?

*जिस प्रकार से भारत मे, पाकिस्तान में और अफगानिस्तान में जमीन के ऊपर और जमीन के नीचे बौद्ध कालीन अवशेष मिलते है ऐसे ऐतिहासिक एवम पुरातात्विक प्रमाण क्या राम के मिलते हैं ?

बाबा साहब अम्बेडकर ने कहा था  " जो कौम अपना इतिहास नहीँ जानती, वह अपने भविष्य का निर्माण नहीं कर सकती "

नागवंशी सुमित





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