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एक गरीब बेटी की दास्तान

Sumedh Ramteke

Monday, July 8, 2019, 07:58 AM
Garib Bacchi

एक गरीब बेटी की दास्तान
चोैदह साल की मुनिया पड़ोस के घर से झाड़ू - पोंछा करके अपने घर आई। चारपाई पर लेटा उसका बाप गुस्से से आग- बबूला होके बोला - ‘‘रे करमजली! कहाँ मुँह काला करवा रही थी। एक घंटा देर से आ रही है।‘‘
‘‘बापू! वो उनके घर कुछ मेहमान आने वाले थे, तो पोंछा लगाने का काम आज ज्यादा करना पड़ा। इसलिये देर हो गई।’’
‘‘अबे! भाग करमजली जाकर घर के काम अपने निपटा।’’ अभी मुनिया रूम में ही आई की छोटे भाई ने नाश्ता माँगा। मुनिया के बताने पर कि नाश्ता नहीं बना, भाई ने उसकी पीठ पर एक मुक्का तान के मार दिया। ‘‘कमीनी मुझे खेलने जाना है भूख लगी है, जल्दी रोटी बना।
दोपहर में जब कोई नहीं था तो मुनिया अकेले में रो रही थी, पालतू कुत्ता शेरू उसके समीप आके जीभ से दुलार करने लगा। मुनिया शेरू से लिपट के रो पड़ी और बोली - ‘‘भगवान! किसी भी जन्म मेे मुझे गरीब घर की बेटी मत बनाना, अगर गरीब की बेटी बनाना तो माँ के साथ ही मुझे भी ऊपर बुलाना!’’
‘‘हाथों में पोथी की जगह, मांजने को है थाली पढ़ने की कौन सोचे, जब भूख से पेट हो खाली।‘‘
- संग्रहक - सुमेध रामटेके

 





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