मध्यप्रांत में दलित आंदोलन का इतिहास Munsi N. L. Khobragade Saturday, April 20, 2019, 06:42 PM मध्यप्रांत में दलित आंदोलन का इतिहास डाॅ. बाबा साहब अम्बेडकर के पूर्व प्रारंभ दलित आंदोलन मुंशी एन. एल. खोब्रागडे भाग 1 1. गैर दलित समाचार पत्रों की भूमिका डाॅ. बाबा साहब अम्बेडकर के द्वारा समाज सुधार के दिशा में दलित समाज के सामाजिक आंदोलन आरंभ करने के पूर्व महार समाज के कुछ लब्ध प्रतिष्ठित समाज सुधारकों द्वारा सामाजिक आंदोलन किया गया। प्रथम आंदोलन कर्ता और दलित नेता थे, गोपाल नाक विट्ठलनाक बलंगकर जिन्हें लोग गोपाल बाबा बलंगकर भी कहा करते थे। कुछ पिछड़े वर्ग के गैर दलित लोगों ने महात्मा ज्योतिबा फुले के सामाजिक क्रांति के आंदोलन से प्रभावित होकर ब्राहम्णों के वर्चस्व को समाप्त करने की दृष्टि से मुम्बई प्रांत में कुछ समाचार पत्र मराठी भाषा में आरंभ किये थे। जनवरी 1877 में कृष्णराव भालेकर ने ‘‘दीनबंधु’’ 1910 में मुकुंदराव पाटिल ने ‘‘दीनमित्र’’ बालचंद कोठारी ने 19 जुलाई 1917 को ‘‘जागरूक’’ 25 अक्टूबर 1917 को ही श्रीपतराव शिंदे ने ‘‘जागृति’’ और दिसम्बर 1919 में ‘‘विजयी मराठा’’ समाचार पत्र प्रकाशित किये गये थे। इन समाचार पत्रों के संपादक, व्यवस्थापक और प्रकाशक मराठा जाति के लोग थे। उन्होंने अपने समाचार पत्रों में केवल पिछड़े वर्ग की समस्याओं, समाज सुधार और इस समाज में व्याप्त कुरीतियों के प्रति जागृति लाने का ही प्रयत्न किया। ये गैर दलित समाचार पत्र महात्मा ज्योतिबा फुले के आंदोलन से प्रभावित ‘‘सत्यशोधक समाज’’ के नेतृत्व में कार्य कर रहे थे, किन्तु उन्होंने दलित समाज के हितों की अनदेखी तथा उनकी ज्वलंत समस्याओं की उपेक्षा की थी। तब गोपाल नाक विट्ठल नाक बलंगकर ने विचार किया कि दलित समाज को अपने पैरों पर खड़े होकर अपना आंदोलन और अपने समाचार पत्र स्वयं चलाना चाहिये। उन्होंने अपना समाचार पत्र आरंभ किया जिसके प्रथम पत्र सम्पादक वे स्वयं थे। 2. गोपाल नाक बलंगकर का कृतित्य गोपाल नाक विट्ठलनाक बलंगकर का जन्म कोंकण में महाड़ जिले के रावदक गांव में एक महार (अछूत) जाति में हुआ था। वे ब्रिटिश सेना में नौकरी करते थे। वे सन् 1886 में सेना से निवृत्त होने के पश्चात उन्होंने दलितोद्धार का काम अपने हाथ में लिया और दलित समाज का काम अपने जीवन के अंत तक पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी के साथ किया। गोपाल नाक विट्ठल नाक बलंगकर को महात्मा ज्योतिबा फुले का सानिध्य प्राप्त था। वे अपने लेख फुले प्रेरित ‘‘दीनबन्धु’’, ‘‘सुधारक’’, ‘‘दीन मित्र’’, और ‘‘शेतकरयांचा कैवारी’’ इत्यादि समाचार पत्रों में लिखते थे और अपना समाचार पत्र भी चलाते थे। वे दलितों की दयनीय स्थिति और उन पर होने वाले अत्याचारों पर लिखा करते थे। दलितों में सामाजिक सुधार लानें के लिये और उन्हें संगठित करनें का प्रयत्न किया। 3. दलित समाज के प्रथम लेखक गोपाल नाक विट्ठल नाक बलंगकर ने सन् 1888 में ‘‘बिटाल विधवंसक नामक पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक के द्वारा उन्होंने हिन्दू धर्म की समीक्षा की थी। उन्होंने जो पुस्तक लिखी थी इसके उदाहरण उन्हीं के हिन्दू धर्म ग्रन्थ वेद, पुराण, गीता, स्मृति, महाभारत आदि से ही दिये थे। उन्होंने हिन्दू समाज से छब्बीस प्रश्न पूछे थे। इन प्रश्नों के द्वारा हिन्दू धर्म की दुहाई देने वाले लोग कितने स्वार्थी हैं, इस बात की जानकारी उन्होनें दलित समाज के लोगों को विस्तार पूर्वक दी थी। हिन्दू धर्म ही दलितों की दयनीय दशा के लिये जिम्मेदार है, इस बात का दलित समाज को ज्ञान कराया था। वे अपने लेख संयत भाषा में लिखते थे। भारत में अंग्रेजों ने महारों (दलितों) की सेना में भर्ती बंद कर दिया था। तब गोपाल नाक विट्ठल नाक बलंगकर ने अंग्रेज सरकार को पत्र लिखकर भेजा था कि दलित (महार) समाज के लोगों ने सेना में रहकर अंग्रेजों और अंग्रेज सरकार की बहुत सहायता की थी। इस पर भी उन्हें सेना से निकाल दिया गया है। जो अनुचित है। अतः उन्हें पुनः सेना में भर्ती करने के लिये सरकार को पुर्नविचार करना चाहिये। 1895 में अंग्रेज सरकार ने उन्हें महाड़ जिले के लोकर बोर्ड में नियुक्त किया था। गोपाल नाक विटठ्ल नाक बलंगकर ने जीवन भर दलित समाज के उद्वार के लिये संघर्ष किया था किंतु अनेकों कठिनाइयों के बावजूद जरा भी विचलित नहीं हुये थे। दलित समाज के इस प्रथम समाज सुधारक, पत्रकार और लेखक का सन् 1940 में निधन हो गया। 4. शिवराम जानबाजी कामड़े दूसरे समाज सुधारक दलित समाज के दूसरे संपादक, लेखक और समाज सुधारक थे, शिवराम जानबाजी कामड़े। वे पुरानी पीढ़ि के दलित समाज के प्रखर समाज सुधारक हुये हैं। उनका जन्म सन् 1875 में पुणें के एक गरीब महार परिवार में हुआ था। उनके पिता अंग्रेजों के यहाँ बटलर का काम करते थे। शिवराम कामड़े को अंग्रेजों के घर के वातावरण में पढ़ने-लिखने की रूचि पैदा हुई और वे अंग्रेज परिवार के सानिध्य में पढ़ना लिखना सिख गये। वे दीनबन्धु जैसे समाचार पत्र नियमित रूप से पढ़ते थे। वे अंग्रेजों के संपर्क में रहने के कारण क्रांतिकारी विचारों के अनुगामी हो गये। उन्होंने समाज के उद्वार के लिये काम करने का फैसला किया और सन् 1903 में उन्होंने आसपास के गाँवों के दलित समाज के लोगों को संगठित करने का काम आरंभ किया। दलितों को सेना और पुलिस में भर्ती करने के लिये सरकार को आवेदन पत्र भेजा। सन् 1904 में उन्होंने ‘‘सोमवंशीय हितचिंतक मित्र समाज’’ नाम की संस्था स्थापित की। साथ ही वाचनालय भी खोला। यह भारत में दलित जातियों को संगठित करने की दूसरी संस्था थी। 5. समाज सुधार के कार्य शिवराम जानबा जी कामले इस संस्था के द्वारा दलित समाज में चेतना जगाना चाहते थे। दलित समाज को समाजोद्वार के लिये प्रेरित करना, उन्हें उचितन्याय दिलाना, और अपने अधिकार के लिये उनका मार्गदर्शन करना उनका मुख्य उद्देश्य था। स्वर्ण समाज को अपना दृष्टिकोण बदलकर दलित जातियों के साथ सहानुभूतिपूर्वक सोचने के लिये प्रवृत्त करना भी उनका ध्येय था। अस्पृश्य समाज में व्याप्त कुछ गलत रीति-रिवाजों जैसे अपने देवताओं को भैंस, बैल, बकरा, सुअर आदि की बलि देना, मृत पशु के मांस का सेवन करना, अस्वच्छ रहना ऐसे अनेकों गंदे काम करना जैसे गलत काम नहीं करने के लिये प्रेरित करने के उद्देश्य तथा अनेकों सामाजिक कार्यो के पालन करने के लिये उन्होंने ‘‘सोमवंशीय मित्र’’ नाम का समाचार पत्र आरंभ किया। इस समाचार पत्र के द्वारा दलितों को सम्माननीय व्यक्ति घोषित करना चाहते थे। 6. देवदासी प्रथा की समाप्ति के लिये कार्य दलित जातियों में देवदासी बनने की प्रथा को समाप्त करने के लिये वे अपने समाचार पत्र में इस प्रथा की बुराई पर लेख लिखते थे। दलित जाति के लोगों को वे उपदेश देते थे और प्रार्थना करते थे। वे अपने लड़कियों को देवदासी, जोगतीनी, मुरली आदि न बनावें। उसके लिये ‘‘सोमवंशीय मित्र’’ में शिबू बाई लक्ष्मण जाधव का पत्र छपा था। शिबू बाई दलित जाति की देवदासी थी। शिबूबाई ने अपने पत्र में लिखा था, कि देवदासी बनने के लिये उनके माॅ बाप दोषी हैं, जो अपनी लड़कियों को देवदासी बनाते है। सभी देवदासियाँ बुरी नहीं होती, उन्हें स्वर्ण समाज के लोगों द्वारा बुरी बनने के लिये गलत रास्ते पर चलने को बाध्य किया जाता है। शिबू बाई जाधव का ‘‘सोमवंशीय मित्र’’ में छपा पत्र पढ़कर गनपत राव हनमंत गायकवाड़ नामक दलित युवक ने शिबूबाई से विवाह कर लिया था। अनेकों देवदासियों के विवाह शिवराम जी कामले ने समाज के युवकों से करवाये थे। देवदासी प्रथा समाप्त करने के लिये कामले जी ने समाज के लोगों को योगदान देने की अपील की थी। 7. पहिली दलित महिला कार्यकर्ता किसन फागू बन्सोडे पाटील की पत्नी तुलसा बाई बन्सोडे पाटील दलित समाज की पहली महिला कार्यकर्ता थी। तुलसा बाई अपने पति के साथ उनके कंधे से कंधा मिलाकर समाज सुधार अथवा दलित महिला जागृति के कार्यक्रमों में भरपूर सहयोग करती थी। अपने विचार दलित जनता तक पहुंचाने के लिये उन्होंने अपना निजी छापाखाना खड़ा किया था। उन्होंने अपने विचारों के प्रचार-प्रसार के लिये सन् 1910 में ‘‘निराश्रित हिन्द नागरिक’’, 1913 में ‘‘बीटाल विध्वंसक’’, सन् 1918 में ‘‘मजदूर पत्रिका’’, नामक समाचार पत्र निकाले थे। ये समाचार पत्र भी आर्थिक कठिनाईयों के कारण अधिक दिनांे तक नहीं चल सके। किसन जी बन्सोडे़ पाटील ‘‘सुबोध’’, ‘‘केशरी’’, ‘‘मुम्बई वैभव’’, ‘‘ज्ञान प्रकाश’’ आदि समाचार पत्रों में दलितों संबंधी लेख लिखते थे। किसन फागू जी बन्सोड़े पाटील की पत्नी तुलसा बाई भी उनके साथ सामाजिक कार्य करने में अग्रणी भूमिका निभाया करती थी। छापाखाने का संचालन वह बड़े ही जिम्मेदारी के साथ सम्भालती थी। किसन बन्सोड़े पाटील दलित समाज में व्याप्त दोषों को समाज के सामने लाते थे और कभी कभी उनके उन दोषों के लिये उन्हें फटकारते थे। डाॅ. बाबा साहेब अम्बेडकर के पूर्व दलित समाचार पत्रों ने मुख्यतः सामाजिक प्रश्नों पर ही समाज को जागृत करने का काम किया था। 8. समाचार पत्रों की भूमिका उस समय दलित समाचार पत्रों ने सामाजिक समानता प्राप्त करने की दिशा में ही जोर दिया क्योंकि उस समय राजनैतिक अधिकारों की प्राप्ति के लिये संघर्ष करने का दलित समाज में वातावरण का निर्माण ही नहीं हुआ था, फिर भी दलितों के उन अल्पकालीन समाचार पत्रों ने दलितों पर होने वाले अन्याय, अत्याचारों के विरूद्ध उन्हें आवाज उठाने की हिम्मत दी, वाणी दी, और आज तक मार्गदर्शन कर रहे है। और आगे भी करते रहेंगे, क्योंकि डाॅ0 बाबा साहब अम्बेडकर के कार्यकाल में तथा उनके पश्चात आज तक अनेकों दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, और त्रैमासिक समाचार पत्र दलितों के द्वारा संपादन, लेखन और व्यवस्थापन किये जा रहे है। 9. समाज सुधारक विठोबा राव जी मून प्रथम समाज सुधारक गोपाल नाक विट्ठल नाक बलंगकर, दूसरे, शिवराम जानबा जी काभडे, और तीसरे किशन फागू बन्सोडे पाटील दलित समाज में डाॅ. बाबा साहब अम्बेडकर के पूर्व हुये है। इन्हीं की कोटि के एक प्रसिद्ध समाज सुधारक विठोबा राव जी मून थे, जिन्होंने समाज के हित में अनेको कार्य किये है। जिनमें महार समाज द्वारा मृत पशु का मांस खाने का काम बंद करवाने के लिये उन्होंने बहुत बड़ा आंदोलन चलाया। और गांव गांव में घूम घूमकर लोगों को जागृत किया। गोपाल नाक विट्ठल नाक बलंगकर ने समाज सुधार की पहली संस्था बनाई थी उसका नाम, ‘‘अनार्य दोष परिहार मंडल’’ जो सन् 1890 में बनी थी। शिवराम जानबा जी कामले ने सन् 1904 में ‘‘सोमवंशीय हितचिंतक मित्र समाज’’ संस्था की स्थापना की थी। किसन फागू बन्सोड़े पाटील ने सन् 1901 में ‘‘सन्मार्ग निराश्रित समाज’’ नामक सामाजिक संस्था स्थापित की थी। उसी प्रकार विनोबा राव जी मून संत पेडें ने सन् 1906 में दलित समाज की ‘‘अत्यंत समाज कमेटी’’ नाम की संस्था की स्थापना की थी। ये सभी समाज सुधारक महार जाति के थे। 20 जुलाई 1924 को ‘‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’’ ‘‘समता सैनिक दल’’ मार्च 1927 में ‘‘स्वतंत्र मजदूर पार्टी’’ 15 अगस्त 1936 को ‘‘अखिल भारतीय शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन’’ 19 जुलाई 1942 को, ‘‘रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया’’ 3 अक्टूबर 1957 को इसी प्रकार और सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक संस्थाएं दलितों की कार्यरत है। - मुंशी एन. एल. खोब्रागढ़े Tags : society organized social movement Baba Saheb Ambedkar