देश में बाबासाहब की मूर्तियाॅ ही क्यों खंडित होती है ? Seema Meshram Sunday, April 21, 2019, 08:29 AM देश में बाबासाहब की मूर्तियाॅ ही क्यों खंडित होती है ? आदर्श, मूल्य, विचार और एटिट्यूड किसी भी व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षिक करते हैं। इनकी सकारात्मकता मनुुष्य को महानता की ओर अग्रसर करती है। आस्था इसका प्रतिबिम्ब है। जिसमें हमारी आस्था होगी, उसके समूचे व्यक्तित्व में ये गुण समाहित होंगे। किन्तु वर्तमान परिपेक्ष्य में आस्था को हमने जाति और धर्म के गुणों में विभाजित कर दिया है। अगर कोई ईसाई है तो वह केवल यीशु को मानेगा। कोई मुस्लिम है तो वह मोहम्मद पैगम्बर को मानेगा और कोई सिक्ख है तो नानक को मानेगा। किसी और में कितने ही ज्यादा गुण विद्यमान क्यों ना हो फिर उसे मानने और ना मानने का सवाल ही पैदा नहीं होता। हमारे लिए बाबासाहब से बढ़कर इस धरती पर दूसरा कोई पैदा नहीं हुआ ऐसा नहीं है। बल्कि विश्व जगत ने इसे स्वीकारा भी है। 2004 में सीपा (School of International and Public Affairs) ने वाशिंगटन में 50 लोगों का अनुसंधान कर यह पाया कि विगत् 250 वर्षो में विश्व की 50 महान् हस्तियों में से यदि किसी ने अपने देश को कुछ समर्पित किया है तो वे केवल बाबासाहब ही हैं। जिन पर हमारी आस्था और विश्वास के मूल्य नैतिक, मानसिक या सामाजिकता के लिए नहीं जुड़े हैं, बल्कि उनसे एक अटूट नाता है, हमेशा हमेशा का। जिसे शब्दों में बयाॅं करना या किसी कागज पर लिखना संभव ही नहीं। आप अम्बेडकरी विचारकों, चिंतकों और उनके अनुयायियों की आस्था का अंदाजा लगा सकते हैं। ऐसी आस्था किसी भी व्यक्ति के प्रति हो सकती है। किसी जाति या धर्म के प्रति हो सकती है। बाबासाहब को पूजनेवालों का देश में एक बड़ा तबका है जो उन पर अपनी आस्था से नतमस्तक करता है। आज भी देश के हर वर्ग, हर जाति में हर धर्म में एक तबका ऐसा भी है जो हमेशा कहता है-काश! बाबासाहब ने हमारे लिए भी कुछ किया होता, बाबासाहब के बारे में यह कहना बेमानी होगी। जो हासिये में थे, हर जाति, वर्ग और धर्म को संविधान में उन्होंने प्राथमिकता दी। तात्पर्य यह है कि देश में बाबासाहब को मानने और पूजनेवाले गिने जा सके संभव नहीं हैं। अब इस आस्था को, इस इंसान को हम भगवान मानने की भूल कर बैठे हैं। शायद इसलिए ईश्वरवादियों और कट्टरपंथियों का दंश हमें झेलना होगा। इनका मानना है कि हम उनके भगवान को भगवान मानकर पूजे, किसी इंसान को भगवान ना माने। अंधविश्वासियों, आस्थावादियों का यह पाखंड आडम्बर के रूप में हमारे सामने उभरकर आता है। आये दिन बाबासाहब की मूर्तियों को तोड़ना, चश्में को उतार देना, स्याह पोत देना, या किसी भी प्रकार से बाबासाहब की मूर्ति को क्षतिग्रस्त करना इनकी मानसिक विकृति का प्रतीक है। सभी जाति व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था के ऊपर सभी धर्मों के प्रणेताओं, चिंतकों और विचारकों तथा समाज सुधारकों ने यह बात अच्छे ढंग से समझा दिया है कि जन्म कुछ नहीं, सब कुछ कर्म ही है। राष्ट्रहित में बाबासाहब ने कहा कि वर्तमान काल में मैं हिन्दू भारत में सबसे अधिक घृणित व्यक्ति हॅू लेकिन विश्वास करो जब मैं यह कहूूॅ, कुछ दिनों पश्चात् जब धूल स्थिर हो जायेगी और भावी इतिहासकारों द्वारा गोलमेज सम्मेलन की कार्यवाही का निष्पक्ष भाव से जायजा लिया जाय तब हिन्दूओं की आने वाली पीढ़ियाॅं राष्ट्र के प्रति मेरी सेवाओं का जयघोष करेंगी। अब वह दिन दूर नहीं रहा। देश के हर मंच पर, हर पार्टी पर बाबासाहब का नाम लिया जाता है। उनके गगनभेदी नारों से धरती हिल जाती है लेकिन फिर भी एक कसक है। कौन है जिसे यह नहीं सहा जाता कि बाबासाहब का नाम अमर रहे। राष्ट्र की मुख्य धारा में आम लोगों को शामिल करना किसे नागवार गुजर रहा है। वे चाहते थे कि जाति धर्म से उपर उठकर देश समग्र विकास करे। सोच मेें बदलाव किए बिना ऐसा संभव नहीं। ऊॅचनीच और जातिगत् भेद के कारण देश का विकास अवरूद्ध हो गया है। जाति और धर्म के नाम पर लोग उन्मादी हो जाते हैं और अनायास सोची समझी रणनीति के तहत बाबासाहब के मूर्तियों को खंडित करते रहते हैं। क्या देश में केवल एक ही मसीहा है ? क्या केवल एक ही मूर्ति है ? क्या एक ही युगपुरूष है ? बाकी जननायकों, राजनीतिज्ञों और सामाजिक और ऐतिहासिक नायकों की मूर्तियाॅं क्यों खंडित नहीं की जाती। सोची समझी भंयकर साजिश हम सब के लिए एक चुनौती है। इसे हमें समय रहते ताड़ना होगा। वरना हमारी भावी पीढ़ी इस साजिश का निशाना बन सकते हैं। - सीमा मेश्राम Tags : personality positivity Attitude consideration value Ideal