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भटकती युवा पीढ़ी

Pratima Ramesh Meshram

Wednesday, May 1, 2019, 07:57 AM
Youth

भटकती युवा पीढ़ी
आज की युवा पीढ़ी अशिष्टता, उदंडता, अनैतिकता का प्रतीक बनकर रह गई है। युवा पीढ़ी दिन ब दिन संस्कारहीन बनती जा रही है। उनके रहन-सहन व सामाजिक व्यवहार में निरंतर गिरावट आ रही है। कहते हैं, आज का बच्चा कल का भविष्य है, किन्तु यहाँ मानवीय मुल्यों का हा्स होकर युवा वर्ग की मानसिकता सृजन के स्थान पर विध्वंस की और मुड़ते चली है। युवा पीढ़ी समाज की रीढ़ होती है, उसकी नींव उसकी आधारशीला, उसका वर्तमान। और जब नींव ही कमजोर हो तो एक स्वस्थ, सुन्दर समाज की कल्पना करना निरर्थक ही नहीं अनुचित है, क्योंकि जिस पेड़ की जड़े जितनी मजबुत होगी, वृक्ष उतना ही हरा-भरा व फला-फूला रहेगा। आज आधुनिक युग में समाज की रीढ़ कमजोर होती नजर आ रही है। जहाँ इस आधुनिक दुनिया की चकाचैंध में युवा पीढ़ी के कदम डगमगाते दिखाई दे रहे है।
कहते है कि युवा समाज सबसे सशक्त कड़ी है। वे उस तुफानी नदी के समान है, जिसको समय पर रोककर बांध बना दे तो वह अपने आस-पास की बंजर भूमि को भी उपजाऊ बना देती है। यदि उसे उच्छखल अवस्था में ही रहने दिया जाए तो हरी-भरी भूमि को भी चैपट कर देती है।
कहने का तात्पर्य है कि इस दूषित सामाजिक माहौल के लिए फिल्मों से बना सामाजिक वातावरण उत्तरदायी है। परंतु इस सम्बन्ध में हमारे सामाजिक, राजनैतिक, पारिवारिक परिवेश की भूमिका को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। कहते है, परिवार बच्चे की प्रथम पाठशाला होता है, किन्तु विडम्बना यह है कि हम परिवार से जिस नैतिकता की अपेक्षा रखते हैं, आज उसी का अभाव हो रहा है। माता-पिता के बीच आपसी कलह, साथ ही उनका किटि पार्टी क्लब आदि में अधिक समय व्यतीत करना, जिससे बच्चे को उचित मार्गदर्शन एवं भरपूर स्नेह नहीं मिलता। फलस्वरूप् अपने इस सुख को वह बाहर तलाश करता है, और सुख की इसी तलाश में वह गलत तत्वों के हाथ में पड़ जाता है।
युवा पीढ़ी को भटकाव के लिये आधुनिकता का दौर भी जिम्मेदार है। उन्हें सही दिशा की जरूरत है। हमारे समाज में लड़के और लड़की में अंतर समझने की इस रीति के कारण भी कुछ हालात निर्माण होते है। हम बेटा हो या बेटी दोनो को समानता का अधिकार देना चाहिये। आज यह भी बात देखने में आती है कि शिक्षा का व्यवसायिकरण हो गया है। शिक्षा, जो व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करती है, जिसकी छत्रछाया में एक स्वस्थ मानसिकता फलती-फूलती है, पर हमारा दुर्भाग्य है आज उसका ही पतन हो गया है।
आज नैतिक शिक्षा की वजह युवा पीढ़ी को व्यावसायिक शिक्षा दी जा रही है।
अतः युवा वर्ग से मेरा अनुरोध है कि ताली एक हाथ से नहीं दोनो हाथ से बजती है, वे आवेश में न आकर, अपने कर्तव्यों को समझते हुये सुन्दर वैचारिक दृष्टि से अपनी प्रतिभा, क्षमता, गरिमा को एवं बुद्धि का सदूपयोग करें ताकि समाज की रचना हो सके।
श्रीमती प्रतिमा मेश्राम, पाण्ढूर्णा

 





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