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पूजने के लिये नहीं है अम्बेडकर

Seema Meshram

Sunday, April 21, 2019, 09:01 AM
Pujne ke liye nahi

पूजने के लिये नहीं है अम्बेडकर
डाॅ0 अम्बेडकर के नाम की माला जपते रहने से दलित समाज का भला होने वाला नहीं है। सवाल है कि केवल डाॅ0 अम्बेडकर जयंती और परिनिर्वाण दिवस के दिन कुछ लोग बाबासाहब की प्रतिमा पर माला पहना देंगे तो क्या दलित-शोषितों की समस्या का समाधान हो जायेगा। जरूरत है कि वास्तव में अम्बेडकरवादी दृष्टिकोण के अनुसार वास्तविक मुक्ति क्या है और उस मुक्ति को हासिल करने का रास्ता क्या है ? अगर देश के दलितों से पूछा जाये तो असलियत का खाका जो सामने आयेगा। वह चैकाने वाला होगा। आखिर केसे दलितों को प्रतिएका्रंतिवाद के चंगुल से आजाद किया जा सकेगा। बाबासाहब ने ब्राम्हणवाद को इस समस्या के लिए उतना ही जिम्मेदार माना जितना दलितों को। 
सामाजिक उत्पीड़न की बात करें तो देश में सवर्णों के घरों के सामने से जाने पर जूते-चप्पल हाथ में लेने पड़ते हैं। देश में बाबा के मिशन के लिए नौजवानों से बहुत आशायें है। देश की सरकारें घोर जनविरोधी और जनता को बर्बाद करने वाली नितियाॅं लागू कर रही है। निजिकरण, उदारीकरण और भूमंडलीकरण के जरिये देश को बेचा जा रहा है। अम्बेडकरवादी होने का दावा करने वाले कुछ लोग निजिकरण का समर्थन कर रहे है। निजिकरण के कारण सरकार का समर्थन खत्म हो रहा है। इसलिए हमें अम्बेडकर के सिद्धांतों को लेकर चलना होगा। संघर्ष करना होगा। कितने लोग हैं जो अम्बेडकर के सिद्धांतो को अपने दैनिक जीवन में लागू करते होंगे। लोग सोचते हे कि अम्बेडकर की प्रतिमा लगाने और उनकी पूजा करने से तो क्या वो अम्बेडकरवादी हो गए ? लड़के-लड़की का बौद्ध पद्धति से विवाह कर लिया तो क्या वो अम्बेडकरवादी बन गए ?
अम्बेडकर के अनुयायियों ने उन्हें पूजा की वस्तु बना दिया है हम उनको भगवान मानने लगे है। जबकि डाॅ0 अम्बेडकर व्यक्तिपूजा और मूर्तिपूजा के घोर विरोधी रहे हैं। वो आजीवन कर्मकांडों का विरोध करते रहे। मगर हमने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। सच्चे अम्बेडकरवादियों का फर्ज है कि वो दलित शोषितों समाज को झूठे और पांखडी अम्बेडकरवादियों से बचाये और शोषितों समाज का नेतृत्व करें।
- सीमा मेश्राम

 





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