imagesimagesimagesimages
Home >> सम्पादकीय >> क्या मूलनिवासी बहुजन हिन्दू है

क्या मूलनिवासी बहुजन हिन्दू है

TPSG

Friday, June 14, 2019, 11:26 PM
bahujan

क्या मूलनिवासी बहुजन हिन्दू है ?
    क्या गुलाम बनाने वालो का और गुलामो का धर्म एक हो सकता है ? शुद्र-अतिशुद्र हिन्दू नहीं है - लेखक मा. प्रो. जैमिनी कडू
    यह जो विषय है वह सवाल के रूप में है। क्या मूलनिवासी बहुजन हिन्दू है ? इसका जवाब है - नहीं।
    वंश के संदर्भ में हम लोगों को जानकारी हासिल कर लेनी चाहिए। वैदिक पूर्वकाल में संस्कृति थी उस संस्कृति में ईश्वर संकल्पना नहीं थी।
   वैदिक वाड्मय में हिन्दू शब्द नहीं है। आज जिस तरह से हिन्दू स्वरूप दिखाई दे रहा है वह भी वैदिक काल में नहीं था। संपूर्ण वेद वांड्मय में खेती समाज संस्कृति का विवरण है।
    गणेश की संकल्पना वेद वांड्मय में नहीं है। 11वीं सदी में जो वांड्मय निर्माण हुआ उस समय से गणेश की संकल्पना रूढ़ हुई। इसके पीछे सामाजिक संक्रमण की अवस्था है। गणेश यह शब्द गण-ईश, गण-नायक, गण-अधपिति, इस अर्थ से है। ईश इस शब्द का अर्थ नेता, प्रमुख ऐसा है, ईश्वर यह अर्थ नहीं है। गण का नायक गणनायक है, गण का अधिपति याने प्रमुख ऐसे अर्थ है। 11वीं सदी पूर्व में मुख्य रूप से शक और हुण इनके आक्रमण हुए है। परन्तु वे उनकी संस्कृति को फैला नहीं सके। आर्यो (ब्राह्मणों) ने गिरोह के रूप में आक्रमण किया। उस वक्त उन्होंने मूलनिवासियों के संस्कृति को ध्वस्त करने का प्रयास किया या उस संस्कृति का संकर किया। वेद पूर्व काल में जहां भरपूर पानी था वहां खेती व्यवस्था थी। जब जल खत्म होता था तब यह लोग स्थानांतर करते थे।
    वैदिक वांड्मय में जैसे हिन्दू यह धर्म नहीं मिलता उसी प्रकार से वैदिक धर्म से अर्थ नहीं मिलता।
    हिन्दू धर्म पर अपना ठेका बताने वाले लोगो को आज भी हिन्दू धर्म के बारे में पूछा गया तो वह कहते हैं हिन्दू यह धर्म नहीं यह जीवन पद्धति है। इस वजह से हमें ठीक तरह से शोध करना होगा, शोध हिन्दू संस्कृति में होगा। 11वीं सदी में हिन्दू यह शब्द इस देश में आया। महमूद गजनवी के आक्रमण के पूर्व में यह देश एक नहीं था। यहाँ अलग अलग देश थे। 
    वैदिक काल में देव गण मिलते है, या तो राक्षस गण दिखाई देते है। सुर असुर यह संघर्ष यह सब आर्यो (ब्राह्मणो) के आक्रमण के बाद हुआ है। पुरानो में इसके उदाहरण है, वह गौरविकृत करके लिखा गया है।
    आर्यो के ईश्वर जैसा ईश्वर भी नहीं था। मूलनिवासियों में हमें नाग, अनार्य, द्रविड़ यह तीन नाम मुख्य रूप से दिखाई देते है। भारत में मूलनिवासी की शारीरिक स्थिति में जो विविधता है, वह भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार है।
    समय के साथ वह बदलती गयी। इस शारीरिक विविधतो के पीछे जो वांषिक और धार्मिक कल्पना है वह आर्यो ने बनायी है।
    आज हिन्दू की व्याख्या इस प्रकार से की जाती है कि जो हिन्दुस्तान में रहने वाले है। वह सारे हिन्दू है, यह व्याख्या पूरी तरह से गलत और झूठी है। मूलनिवासी बहुजन यह हिन्दू नहीं है। हिंदुत्व थोपकर मूलनिवासियो को हिन्दू (गुलाम) बनाया गया है। इसकी जानकारी हासिल करना आवश्यक है। 
    अगर सारे के सारे हिन्दू हैं तो सवाल खड़ा होता है कि हिन्दू धर्म के सारे लाभ सिर्फ ब्राह्मणों को ही कैसे मिलते हैं ? कुर्मी (कुनबी), तेली, भंगी, माली, महार (सैनी), चमार, मातंग इन सबको मिलने चाहिये थे लेकिन इनको धर्म का लाभ कभी मिला ही नहीं क्योंकि मूलनिवासियों का धर्म कभी भी हिन्दू नहीं था। ब्राह्मणों ने मूलनिवासियों को हिन्दू कहकर कौन सा फायदा उठाया यह समझ लेना आवश्यक है। मान लो इस देश में ब्राह्मणों ने हिन्दू नहीं कहा होता तो इस देश के सारे मूलनिवासी हम हिन्दू नहीं हैं, इस विचार के होते।
    आज आरक्षण के माध्यम से आरक्षण का समर्थन करने वाला जो वर्ग है वह आरक्षण से कोई सामाजिक दर्जा मिल रहा है केवल इसीलिए समर्थन करते है ऐसा नहीं है, बल्कि आरक्षण के माध्यम से उनको कई लाभ मिलते हैं। 
    यह भी महत्वपूर्ण है। ब्राह्मणों ने विचार किया कि इस देश के अब्राह्मणों को हिन्दू कहने से ब्राह्मणों का ही फायदा है तब उन्होंने मूलनिवासियो को हिन्दू कहना शुरू कर दिया। तरह-तरह के कथाओं में लिखने के कारण ही मूलनिवासियों का शोषण कर्मकांड, धर्मवाद, वंशवाद, पूजा-अर्चना, अंधश्रद्धा, ईश्वर संकल्पना के माध्यम से हुआ।
    इस देश में हिन्दू कहने के वजह से धार्मिक फायदे हुए हैं, राजकीय फायदे हुए है, शैक्षणिक लाभ मिले है यह सब 100 प्रतिशत ब्राह्मणों को ही मिले हैं। सारे मूलनिवासी अगर हिंन्दू होते तो पिछले तीन साढ़े तीन हजार सालों में ब्राह्मणों को जितना फायदा हुआ है, उतना ही फायदा मूलनिवासी बहुजन को होना चाहिए, लेकिन ऐसा हुआ नहीं दिखाई देता है।?
    मूलनिवासी बहुजन समाज ने खुद को हिन्दू कहने से खुद का ही बहुत नुकसान किया है। इस देश के स्वतंत्रता युद्ध में मूलनिवासी बहुजनो ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, परन्तु इतिहास लेखन करने वाले ब्राह्मणो ने बदमाशी की है, उन्होंने झांसी की रानी सारे देश को बताई लेकिन जिजाबाई को अंधेरे में रखा। मंगल पांडे सारे देश को मालूम है लेकिन मंगल पांडे जैसा कार्य नागपुर शहर में शंकर मुहल्ले में एक कुनबी (कुर्मी) युवक ने किया यह बात महाराष्ट्र में ही मालूम नहीं है तो अन्य राज्यों की बात ही अलग है। उमाजी निक ने स्वतंत्रता पूर्व काल में जो कार्य किया वह महाराष्ट्र को मालूम नहीं लेकिन मंगल पांडे, वासूदेव बलवंत फडके सारे देश को मालूम होते है। यह बदमाशी है।
    मध्ययुगीन भारत के पूर्व का इतिहास अगर हम लोगो ने देखा तो ऐसे दिखाई देता है की मोर्य हिन्दू नहीं थे। आधुनिक काल में भी मूलनिवासी बहुजन हिन्दू नहीं है, इसके सबूत हैं। चरण सिंह जब इस देश के प्रधानमंत्री हुए तब समाचार पत्रों ने ‘‘जाटो’’ के नेता चरण सिंह ऐसा उल्लेख किया। इसके बाद जब जब अब्राह्मण इस देश के पंतप्रधान हुए तब-तब उनका वर्णन ठाकुरों के नेता, किसानों के नेता, क्षत्रियों के नेता ऐसा हुआ है। जब शरद पवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हुए तो इस देश के तमाम समाचार पत्रों में ‘‘दि ग्रेट मराठा लीडर शरद पवार’’ ऐसा उल्लेख किया था। अब सवाल पैदा होता है, समाज में यह पूछा जाना चाहिए कि जब नेहरू प्रधानमंत्री हुए तब इस देश के तमाम वर्तमान पत्रों ने ‘‘ब्राह्मण पंडितो के नेता जवाहर लाल नेहरू’’ ऐसा क्यों नहीं छापा ? जब ब्राह्मणों का नेता प्रधानमंत्री होता है तब उसका उल्लेख ‘‘दि ग्रेट नेशनल लीडर’’ ऐसा होता है। समाचार पत्रों की मानसिकता ही ऐसी है कि जब देवगौडा लोकसभा में आंखे मूदंकर बैठे होंगे तब समाचार पत्रों में फोटो के साथ छाप दिया जाता है कि ‘‘लोकसभा में देवगौडा नींद लेते हुए। लेकिन वाजपेयी जब लोकसभा में आंखे मूंदकर बैठे हो तो फोटो के साथ छाप दिया जाता है कि ‘‘भारत के नेता अटल बिहारी वाजपेयी लोकसभा में चिंतन करते हुए। यह मानसिकता ब्राह्मणी मानसिकता है। 
- प्रो. जैमिनी कडू

 





Tags : society culture description Vedic today