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महापुरूषो को बनाया खलनायक

Santi Swaroop Bouddh

Friday, April 26, 2019, 10:55 AM
Nayak

महापुरूषो को बनाया खलनायक
जीवन भर के अध्ययन और अनुभव के आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि भारत में जितने भी उपेक्षित और अपमानित पात्र हैं, किसी न  किसी रूप में उनका संबंध बौद्ध धर्म से रहा है। इस देश के सबसे बड़े कल्याण-पुरूष बुद्ध की पावन छवि के साथ खिलवाड़ और मनमर्जी करने वालों ने उन्हें चोर तक लिख दिया। बुद्ध शब्द को महिमा शून्य करने के उद्देश्य से बुद्धू शब्द गढ़ डाला। इस देश के बौद्ध राजा जयचन्द्र और रामगुप्त बौद्ध धम्मानुयायी होने के कारण बहुत विनयशील और न्याय प्रिय थे। बौद्ध होने के कारण ही ब्राह्मण इतिहासकारों, जिनका इतिहास के लेखन कार्य पर एकाधिकार था, उनके द्वारा जयचन्द्र को खलनायक एवं कापुरूष के रूप में स्थापित करने का कुकृत्य किया। जयचंद जैसे परम देश भक्त को गद्दार शब्द के पर्याय के रूप में प्रचारित कर दिया गया। बौद्ध प्रतीक ‘बोधिवृक्ष’ अर्थात पीपल के पेड़ पर भूतों का डेरा बताकर उसके प्रति जनमानस को आतंकित किया गया दूसरी ओर उस पेड़ की पूजा के नाम पर उसकी जड़ में दूध और मट्ठा डालने का कार्य किया, जिससे कि उसकी जड़ों में कीड़ा लग जाए और बौद्ध धर्म और आस्था का यह जीवंत प्रतीक धराशायी हो जाए आदि-आदि। धर्मधर रावण को साल-दर-साल जितना अपमानित किया जाता है, संसार में इतना अपमान शायद ही किसी महापुरूष का किया जाता हो। इतने बड़े विद्वान का इतना अधिक अपमान देखकर कई बार लगता था कि हो ना हो धर्मधर रावण का सीधा संबंध बौद्ध संस्कृति से रहा होगा।
इस शंका का कारण इस ब्राह्मणी सिद्धांत से स्पष्ट होता है, जिसके अनुसार ब्राह्मण बड़े से बड़ा कुकृत्य अपराध और पाप करने के पश्चात भी अबधारी है। अर्थात उसका वध नहीं किया जा सकता। वध की तो बात ही दूर ब्राह्मणी विधान ब्राह्मण कर (टेक्स) लेने तक को निषिद्ध घोषित करते है। फिर क्या कारण है जो रावण जैसे महाब्राह्मण को प्रतिवर्ष राम के हाथों मारे जाने का नाटक किया जाता है। वास्तव में रावण दहन के इस कार्य में बहुत बड़ी गड़बड़ी नजर आती है। वह यह कि रावण वास्तव में बौद्ध सम्राट था, जिसे ब्राह्मण बताकर अपमानित करने का कार्य आज तक भी भारत के कई हिस्सों में जारी है। यह बात सत्य है कि रावण दहन सारे भारत में आज भी नहीं हो पाता।
- शान्ति स्वरूप बौद्ध





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