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युग के मूल्यों को नापने के प्रतिमान

Rajendra Prasad Singh

Monday, February 15, 2021, 02:36 PM
Yug

गिरते सोलह संस्कारों, टूटती वर्णव्यवस्था जैसे भोथरे और जंग लगे औजारों से समय, समाज तथा युग को अनजाने में ही आप नाप रहे होते हैं.....

इसीलिए लगता है कि घोर कलियुग आ गया है, समाज खराब हो गया है, मनुष्य का पतन हो गया है और बहुत बेकार समय आ गया है....

वैज्ञानिक पद्धति और तर्कपूर्ण तथ्यों से समय, समाज तथा युग को नापने पर एक सुखद पहलू भी सामने आता है, समाज की जीर्ण-शीर्ण व्यवस्थाएँ टूट रही हैं, नई तकनीक तथा मशीनें विकसित हो रही हैं.....

लोग शिक्षित हो रहे हैं, जनतांत्रिक मूल्य रग - रग में समा रहे हैं, समाज जग रहा है, सामंती युग के प्रतिमान बदल रहे हैं.....

कभी मानस की चौपाइयों को कंठस्थ कर लेना ही ज्ञान का द्योतक था, कभी फर्राटेदार अंग्रेजी बोलना ही शिक्षित होने की पराकाष्ठा थी, ये सब सांस्कृतिक सत्ता के पैमाने हैं.....

समय, समाज तथा युग के मूल्यों को नापने के प्रतिमान बदलते रहेंगे, घबड़ाने की जरूरत नहीं है, इसे पूरी तरह से रोकने की क्षमता किसी में नहीं है.....





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