आरक्षण समाप्ति की ओर शिक्षा पर मनुवाद हावी Tejratan Boudh Tuesday, April 30, 2019, 09:07 PM आरक्षण समाप्ति की ओर शिक्षा पर मनुवाद हावी विश्व में किसी भी राष्ट्र के विकास में शिक्षा का विशेष महत्व रहा है। मानवीय मूल्यों का विकास शिक्षा पर ही आधारित होता है। शिक्षा का शाब्दिक अर्थ ‘‘इच्छा शक्ति’’ कहा जाय जो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। अशिक्षित व्यक्ति की इच्छा शक्ति कभी जाग्रत नहीं होती और वह अन्धानुकरनीय होता जाता है। इसलिए हम निःसंकोच कह सकते हैं कि भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में शिक्षा का अधिकार सर्वोपरि है। भारतीय संविधान में ऐसी व्यवस्था नहीं हैं कि सिर्फ शिक्षाविद् ही सांसद या विधायक बनकर कानून के जनक बनें। इसलिए चन्द मनुवादियों के हाथ में भारत का शासन छुपा हुआ है। अतः मनुवादी व्यवस्था के आधार पर शिक्षा पर सिर्फ ब्राम्हाणों का अधिकार रहा। कांगें्रस और भाजपा में मनुवादियों का बोलबाला है। आरक्षित चुनाव क्षेत्रो में अंगूठा छाप व्यक्तियों को ही प्रत्याशी बनाती है। इस चुनाव क्षेत्रों में यह दोनो पार्टीयाॅ हद से अधिक पैसा खर्च करती है। फलस्वरूप अनपढ़ या साक्षर व्यक्ति चुनाव जीत कर सांसद, विधायक आदि पदों पर आसीन दिखाई देते है। आजादी के बाद वर्ष 1972 तक भारत में शिक्षा का ढर्रा ठीक-ठाक चलता रहा। शिक्षा के क्षेत्र में संवैज्ञानिक व्यवस्था के आधार पर सभी विद्याार्थीयों को वास्तविक रूप से शिक्षा दी जाती रही थी। फलस्वरूप कक्षा पाँच तक की शिक्षा को ही शिक्षा की बुनियाद मानी जाती रही और शिक्षा के परिणाम अच्छे निकलते रहे। भारत मे मनुवादी ही इतिहासकार और अर्थशास्त्री रहे। इन्होंने सिर्फ जातीय पूंजिवाद को बढ़ावा दिया। देश के विकास की बात इनके दिमाग में नही आई। पूंजीवादीयों ने आड़म्बर के क्षेत्र में पूंजी को पानी की तरह बहाया। फलस्वरूप देश की 80 प्रतिशत जनता आड़म्बर में फंसती गई और आज तक आड़म्बर से मुक्त नहीं हो पा रही है। भाग्यवादी बनकर रह गई हैं। शिक्षा का स्तर गिराने के लिए सरकारों द्वारा ऐसे कानून पारित किए गए कि कक्षा आठ तक कोई भी विद्यार्थी फैल न किया जावें। कक्षा दस में गे्रड से पास किया जावें। सरकारों ने शिक्षकों को प्रतिबंधित नहीं किया की स्कुलों में विद्यार्थीयों को इस तरह पढ़ाया जावे की एक भी छात्र अशिक्षित न रहे। अतः शिक्षक लापरवाह हो गए। अतः बहुजन समाज के जो 20 प्रतिशत शिक्षक थे अपने मूल कार्यों के प्रति सजकता से कार्य करते रहे। मनुवाद की नयी चाल के तहत गाँव-गाँव में नये स्कूल तो खोले गये परंतु स्कूल की ईमारते नहीं बनवाई गई एवं शिक्षक के भी पद स्थापित नहीं किये गए। कही-कही एक-एक या दो-दो शिक्षकों का पदस्थापना किया गया। ये शिक्षक श्रमिक वेतन पर रखे गए। गाँवो में स्कूल भवन नहीं हैं। कही-कही एक या दो कमरे हैं। पंचायत भवनों या किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति की चैपाल पर स्कूल चलाये जा रहे हैं। विद्यार्थीयों को बैठने के लिए दरी, पट्टीया नहीं हैं। स्कूल अभिलेख शिक्षक की बैग में रहता है। कही किसी पेड़ के नीचे बच्चों को भेड़-बकरियों की तरह घेरे हुए दिखाई देते हैं। किसी-किसी गाँवों में तो बच्चों की हाजिरी फर्जी दिखाई जाती हैं। इन गाँवों के शिक्षक भाजपा या कागें्रस की जी हजुरी में रहते हैं। उनको वेतन भी सरकारी नुमाइन्दों द्वारा पहूँचा दिया जाता हैं। ऐसे गाँवों के विद्यार्थी मवेशी चराते हुए, खेतों में काम करते हुए, या मजदूरी करते देखे जाते हैं। सरकारे कहती हैं कि प्रदेश की माली हालत खराब हैं, केन्द्र सरकार आर्थिक सहायता नहीं कर रही हैं। अतः शिक्षकों की भर्ती नहीं होगी। पुराने शिक्षक सेवानिवृत होते गए। शिक्षा मित्रों से ही काम चलाना पडे़गा। मनुवाद ने एक तीर से तीन शिकार किए। प्रथम जनता को विद्रोह करने से रोका, द्वितीय बेरोजगारों को श्रमिक वेतन देकर भीख का टुकड़ा ड़ाल दिया, तृतीय शिक्षको की 50 प्रतिशत पूर्ति भी हो गई। विचारणीय विषय है कि शिक्षक श्रमिक बच्चों को क्या पढ़ाएगा ? ऐसे शिक्षकों की शिकायतें भी होती हैं। जहाँ काने ही काने हों तो कौन किसको काना बताएगा ? मनुवाद ने भयंकर चाल चली। इस चाल के तहत साक्षर महिलाओं को भी खुश कर दिया यह चाल मिड़-डे़-मिल और आंगनवाड़ी व्यवस्था। इसकी पालना के लिए शख्त कदम उठाये गए। बच्चों को दलिया, चावल, दांल, रोटी बनाकर बच्चों को खिलाना। थोड़े बच्चे कटोरा लेकर आते है और कुछ खा पीकर अपने-अपने घरों को चले जाते हैं। यानि बच्चों को भीख मांगने की टेªनिंग दी जाती हैं। शिक्षित नहीं किया जाता। शिक्षक है नही, शिक्षा मित्र पढ़ाना नहीं चाहता। बच्चें कब कैसे और कहाँ पढ़े ? इस बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। गरीब तबके का हर सदस्य जिवको पार्जन के लिए कार्यरत रहता है। उसका बच्चा बिना पढ़ें पास होता रहा है। उसे यह नहीं पता की मनुवाद उसके साथ छल कर रहा हैं। प्रश्न पैदा हुआ की पूंजीपती और मनुवादीयों को शिक्षा कैसे दिलाई जावे। मनुवादीयों ने दिलचस्प खेल खेला शिक्षा का निजीकरण कर शिक्षा इतनी मंहगी कर दी कि गरीब बहुजन समाज का बेटा सदैव के लिए असमर्थ हो गया इस मनुवादी व्यवस्था से गुदड़ी में बाबा साहेब जैसे लाल छिपे हुए हैं। सदैव के लिए दफन होते जा रहे हैं। मिड-डे़-मिल एवं आंगनवाड़ी व्यवस्था के तहत जो बजट आंवटित किया जाता है उसमें सिर्फ 25 प्रतिशत बच्चों पर खर्च होता है। बजट की शेष राशी असरदार नेताओं, अधिकारियों और कर्मचारियों की रसोई की शोभा बढ़ाने में जाती हैं। पूर्व प्रधान मंत्री स्व. राजीव गाँधी ने स्वीकार किया था की केन्द्र से एक रूपया भेजते हैं, जनता तक जाते-जाते 0.15 पैसे रह जाते हैं। ये मनुवादीयों के लिए शर्म की बात हैं। इसके अलावा जितने भी देशी शराब के ठेके हैं, सरकार ने गरीबों और दलितो के मुहल्लो में खोल रखे हैं। बहुजनों के लिए हानिकारक सिद्ध हुए हैं। मिड़-ड़े-मिल योजना बंद कर उसका बजट शिक्षा के बजट में समायोजिक कर प्रशिक्षित अध्यापकों की भर्ती की जा सकती हैं। फलस्वरूप जो समय मिड़़-ड़े-मिल योजना के तहत बर्बाद होता हैं वह समय बच्चों को शिक्षा दिलाने में लगाया जा सकता है। जिससे शिक्षा का परिणाम विश्वास पूर्वक बहुत अच्छा निकलेंगा। प्रौढ शिक्षा पर इतना धन बर्बाद हुआ परिणाम शुन्य निकला, पर वोटो की राजनीति में मनुवाद को सफलता मिली। गरीब हर जाति व समाज, धर्म में मिलता हैं। वह विवश है उसको तो रोजगार भी नहीं मिल रहा हैं। अगर किसी मध्यमवर्गाीय के पास एकाध हेक्टर भूमि हैं जो सरकार ने कर्ज देकर रहन रख ली है। रोजगार के लिए विक्रय करने का अधिकार भी खो बैठा हैं। मनुवादीयों द्वारा गरीब समाज के लिए शिक्षा व उच्च शिक्षा के द्वार हर तरह से बंद कर दिये हैं। अछुत है बेकवर्ड़ या अल्प संख्यको संवैधानिक व्यवस्था के आधार पर पूंजीपती बन चुके हैं। मनुवादीयों के साथ रोटी-बेटी का संबंध बना चुके है वे अपने को असल बताने में शर्माते है। आरक्षण समाप्त होना चाहिए यह तोता जैसी रट वो भी लगा रहे है जो मनुवादीयों के चमचे बन चुके है। जिन्होंने पीछे मुड़कर अपने समाज को कभी नहीं देखा। मनुवादीयों ने आरक्षण समाप्त करने के लिए ऐसे तरीके की तलाश की है कि गरीबों को शिक्षा ही नहीं मिलेगी तो आरक्षण स्वतः ही समाप्त हो जावेगा। भग्यवादी बनकर रह जायेगा उनको मालुम होना चाहिए की भाग्य शिक्षालयों में ही लिखा जाता हैं। (तेजरतन बौद्ध ) उपाध्यक्ष राजस्थान प्रदेश Tags : paramount Constitution fundamental rights surprise education world nation development importance special Education