शीलवान को मान सम्मान TPSG Monday, August 9, 2021, 09:47 AM शीलवान को मान सम्मान सहज मिल ही जाएगा।* *भिक्षु और उपासक दोनों को ज्येष्ठ बनने के लिए शील का आचरण करना आवश्यक है।* *एक समय आयुष्मान महाकच्चान मधुरा (मथुरा) में गुन्दावन में विहार करते थे। तब कन्दरायन ब्राह्मण आयुष्मान महाकच्चान के पास आया।* *आकर आयुष्मान महाकच्चान के साथ कुशलक्षेम पूछ कर एक ओर बैठे हुए कन्दरायन ब्राह्मण ने आयुष्मान महाकच्चान को यह कहा –* *“हे कच्चान ! मैंने सुना है कि श्रमण कच्चान बड़े,बूढ़े,ज्येष्ठ, आयु प्राप्त ब्राह्मणों का न अभिवादन करता है,न सत्कार करता है,न उन्हें (आदरपूर्वक) आसन देता है। हे कच्चान ! यदि यह ऐसा ही है कि आप कच्चान बड़े,बूढ़े,ज्येष्ठ,आयु प्राप्त ब्राह्मणों का न अभिवादन करते हैं, न सत्कार करते हैं, न उन्हें (आदरपूर्वक) आसन देते हैं तो यह ठीक नहीं है।”* “हे ब्राह्मण ! उन जानने वाले, देखने वाले अर्हत सम्यक सम्बुद्ध ने वृद्ध (ज्येष्ठ) तथा युवा (कनिष्ठ) की व्याख्या की है। “हे ब्राह्मण ! यदि कोई आयु से अस्सी वर्ष का हो, नब्बे वर्ष का हो अथवा सौ वर्ष का हो, किंतु वह कामभोग में रत हो, कामभोग के बीच में रहता हो, कामभोग की जलन से जलता हो, कामभोग के वितर्कों का शिकार बनता हो, कामभोग के लिए इच्छूक रहता हो तो वह थेर न कहलाकर मूर्ख ही कहलायेगा। “हे ब्राह्मण! यदि कोई छोटा भी हो,तरुण हो,काले बालों वाला हो,श्रेष्ठ यौवन से युक्त हो,अपनी प्रथम-आयु में ही हो, किंतु वह कामभोग में रत न हो,कामभोग के बीच में न रहता हो,कामभोग की जलन से न जलता हो, कामभोग के वितर्कों का शिकार न बनता हो,कामभोग के लिए इच्छुक न रहता हो तो वह पंडित और थेर ही कहलायेगा। ऐसा कहे जाने पर कन्दरायन ने आसन से उठकर, वस्त्र को एक कंधे पर कर, छोटे भिक्षुओं के चरणों में सिर से नमस्कार किया। आप लोग पंडित हैं, सही माने में वृद्ध (स्थविर) हैं। हम लोग युवक (कनिष्ठ) हैं, सही माने में मूर्ख हैं। “सुंदर, हे कच्चान ! हे कच्चान ! जैसे कोई उल्टे को सीधा कर दे, मार्ग भूले को रास्ता बता दे अथवा अंधेरे में मशाल धारण करे, जिससे आंख वाले चीजों को देख सकें । इसी प्रकार आप कच्चान ने अनेक प्रकार से धर्म को प्रकाशित किया है। मैं उन भगवान गौतम की शरण,धर्म तथा संघ की शरण जाता हूं। आज से जीवनपर्यंत मुझे अपना शरणागत उपासक समझें ।” ---------------- यह बात आज इसलिए याद आती है कि नए- नए भिक्षु बने हुए कुछ सामनेर/भिक्षु उपासक व उपासिकाओं को नीचा मानकर पंचांग प्रणाम न करने के लिए खरी खोटी सुनाते है। दान न देने के लिए कोसते हैं। कम दान मिलने पर भिक्षु गुस्सा करते है। ऐसे भिक्षु स्वयं शील पालन में बेपरवाह होकर लोगों के बिच घुमते है। दश शील का ख़ुद पालन नहीं करते है। २२७ शील की बात फिर कहां ? फिर भी उपासक व उपासिकाओं को शील पालन करने के लिए उपदेश देते हैं। ऐसा करने वाले भिक्षु खुद की हानि करता है और धम्म को बदनाम करता है। शीलवान भिक्षु सर्वत्र पुजनीय है। शीलवान भिक्षु को पर्याप्त दान मिलता है। शीलवान भिक्षु जहां जाता है वहां सम्मान मिलता है। उसे उपासक व उपासिकाएं पंचांग प्रणाम करते है। दान देते हैं। भिक्षु हो या उपासक/ उपासिका शीलवान होंगे तो मान सम्मान अवश्य मिलेगा। मान सम्मान मांगना नहीं पड़ता। सहज मिल ही जाएगा। बुद्ध धम्म की नींव ही शील है। भिक्षु और उपासकों को समान रूप से यह लागू होता है। Tags : fool distractions jealousy middle