तथागत भगवान बुद्ध का वैज्ञानिक धम्म Dr. Pandurag parate Saturday, June 22, 2019, 07:24 AM तथागत भगवान बुद्ध का वैज्ञानिक धम्म तथागत भगवान बुद्ध ने कहा था मेरा धम्म ऐसा है - स्वाख्यातो भगवता धम्मो, संन्धिटिको, अकालीको, एहिपस्सिको, ओपनायको, पच्चतं वेदितब्बो विश्रूहिती धम्म याव जीवित शरणं गच्छामि। तथागत भगवान बुद्ध ने संसार के सभी मानवो को सम्बोधित किया है कि मेरा धम्म सुआरण्य है। तुरन्त फल देने वाला है, समय नहीं लगाता, संसार के सभी बन्धनों से मुक्त करने वाला है। यह निर्वाण की ओर ले जाने वाला मार्ग है। तथागत भगवान बुद्ध का धम्म वैज्ञानिक धम्म है। उसमें आत्मा, किस्मत का कोई स्थान नहीं है। इसका ज्ञान होना बहुत कठिन है, सरल नहीं है। बिना कारण कोई भी बाते नहीं बनती, जैसे - सुर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, यह कैसे निसर्ग के आधार पर और वैज्ञानिकता के आधार पर निर्भर है, यह तो अन्ध श्रद्धा है। यह लोगों के ध्यान में आ गया है। मनुष्य का जन्म होने के लिए भगवान के आर्शिवाद की कोई जरूरत नहीं है। स्त्री-पुरूषों का मिलन होना और स्त्री उस योग्य होने की आवश्यकता है। दोनों के मिलन से बच्चा माँ के उदर में समा जाता है और समय आने पर उसका जन्म होता है, इसको विज्ञानवादी धम्म माना गया है। ईश्वर पर विश्वास करने वाला धर्म गुलाम होता है, उसका विकास नहीं होता, वह पशु के समान बन जाता है। तथागत भगवान बुद्ध ने अनुभव के आधार पर बताया बुराईयों का त्याग करो, मनुष्य को संगठित करो, एक स्थान पर ले आओं वे अपने षिष्य आनन्द को सभा में बैठकर बता रहे है कि मनुष्य एक स्थान पर आकर जो कार्य करते है, उसकी पराजय कभी नहीं होती, शत्रु भी देखकर दूर से भाग जाता है। इस नियम का पालन करना बहुत जरूरी है। तथागत भगवान बुद्ध का धम्म ‘‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’’ की भावनाओं को आगे बढ़ाता है। भगवान बुद्ध का धम्म तर्क के कसौटी पर आधारित है। मनुष्य के जीवन में 90 प्रतिषत दुःख है और 10 प्रतिशत सुख है, मनुष्य को निर्वाण की प्राप्ती होती है। मनुष्य के जीवन में दुःख अधिक है, और उससे मुक्ति पाने का मार्ग भी बताया है। स्पर्श, तृष्णा, भय, शौक, रोना, चिल्लाना, आदि से दुःख का निर्माण होता है ऐसा तथागत भगवान बुद्ध ने कहा है। ‘‘सब्ब पापस्य अकरणं कुसलस्य उपसंपदा, सचित्त परियोदपनम येतेन सच्च वदने बुद्धानं शासन।’’ तथागत भगवान बुद्ध ने बताए विशुद्धी मार्ग पर चलो। तथागत भगवान बुद्ध ने दिव्य ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात पंचवर्गीय भिक्खुओं को सारनाथ में प्रथम धम्मचक्र प्रवर्तन के समय ज्ञान देते समय, दीक्षा देते समय बताया, पंचवर्गीय भिक्खुओं के नाम इस प्रकार है। (1) कौडिण्य (2) भद्दीय (3) वप्प (4) महानाम (5) अश्वजीत। भिक्खुओं मेरे धर्म को ईश्वर और आत्मा से कोई सम्बन्ध नहीं है। (अ) पंचशील (ब) अष्टांगिक मार्ग (स) दस पारमिता:- (अ) पंचशील:- (1) प्राणियो की हिंसा नहीं करना (2) चोरी नहीं करना (3) व्याभिचार नहीं करना (4) असत्य नहीं बोलना (5) मादक पदार्थो का सेवन नहीं करना। इन तत्वों में मनुष्य के हित के लिए, समाज के हित के लिए सच्चा आदर्श तत्व है। जीवन यापण करने के लिए तथागत भगवान बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग बताया है, वह इस प्रकार है। (ब) अष्टांगिक मार्ग - (1) सम्यक दृष्टि (2) सम्यक संकल्प (3) सम्यक वाचा (4) सम्यक कर्मांत (5) सम्यक आजीविका (6) सम्यक व्यायाम (7) सम्यक स्मृति (8) सम्यक समाधि। तथागत भगवान बुद्ध ने शिलो का पालन करने से मनुष्य जीवन में बहुत लाभो की प्राप्ती होती है, जीवन परिवर्तन होता है। (स) दस पारमिताएं - (1) शील याने नियमितता का पालन करना। (2) दान याने: स्वार्थ की भावना न करना, दुसरो की भलाई करना समयानुसार जीवन में परिवर्तन करना, यहीं सच्चा दान है। (3) उपेक्षा यानि: अलिप्तता, अनाशक्ति, फल की प्राप्ति से विचलित न होना, हमेशा प्रयत्न करना। (4) नैष्क्रम्य याने: ऐच्छिक सुखो का त्याग करना। (5) वीर्य याने: हाथ में लिया हुआ कार्य पूरा करना। (6) शान्ति याने: क्षमा याचना करना, द्वेष न करना, प्रेमभाव से उत्तर देना। (7) सत्य याने: सत्य वचन, सत्य बोलना, सत्य के सिवाय कुछ नहीं। (8) अधिष्ठान याने: ध्येय रखकर कार्य करना। (9) करूणा याने: मनुष्य के प्रति दया, शिलता बनाएं रखना। (10) मैत्री याने: सभी प्राणी, पशुपक्षी, मित्र, शत्रु, आदि के साथ बन्धुभाव से, भाईचारे से रहना। तथागत भगवान बुद्ध ने इस नियमों को पारमिता कहा है, मनुष्य पूर्ण अवस्था को प्राप्त करता है, ऐसा कहा है। तथागत भगवान बुद्ध ने पांच परिवाजनों को प्रज्ञा, उपदेश, दीक्षा, देने के पश्चात आगे बताया कि व्यक्तियों की ‘‘शुद्धि’’ यह संसार के पूर्णत्व का ज्ञान नहीं है क्या ? शिष्यों ने उत्तर दिया यह सत्य हैं, प्रज्ञा यह सत्य के आधार पर ही सत्य है, समता, बन्धुत्व, न्याय, यह बौद्ध धर्म में बताया है। यह संसार के हितो का ध्यान रखता है। धर्म के संस्थापको ने दुःख का नाश करना चाहिए यही धर्म का मुल उद्देश्य है। संसार के इतिहास में इसके पूर्व तथागत भगवान बुद्ध ने धम्म के मार्ग को साधा, सरल, अद्भूत और मनुष्य को मुक्ति, आत्मा और ईश्वर आदि का उल्लेख कभी नहीं किया। जो मनुष्य स्वयंम के प्रयत्नों से सदाचारो से, कर्तव्यों से, साधनों से, सेवाओं से, एक चित्त से इस वसुधंरा पर रहकर प्राप्त करता है वह निब्बान को प्राप्त करता है, ऐसा किसी ने भी नहीं बताया। तथागत भगवान बुद्ध के रूप में एक महान समाज सुधारक मिला है ऐसा पंचवर्गीय भिक्खूओं को लगने लगा। वे हाथ जोड़कर, प्रणाम कर तथागत भगवान बुद्ध के शरण गए और बड़े आदर से, प्रेमभाव से, नम्रता से, कहने लगे कि हे प्रभु हमें शिष्य के रूप में स्वीकार करो। तथागत भगवान बुद्ध ने उनके भाव को देखकर अपने धम्म में ले लिया और वे पंचवर्गीय भिक्खू के नाम से जानने लगे, पहचानने लगे। सारे संसार में उनका नाम आगे बढ़ता गया, और भिक्खूओं में उनको श्रेष्ठ माना गया। डाॅ. भीमराव रामजी अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म का गहराई से अध्ययन किया, उसे समझा, सोचा और 14 अक्टुबर 1956 को नागपुर के पवित्र दीक्षा भूमि पर महाथेरो ‘‘ऊँ’’ चंद्रमणी के द्वारा बुद्ध धम्म की दीक्षा ली, बुद्ध को, धम्म को, संघ को, शरण जाकर, उसी दिन लाखों अनुयायियों को बौद्ध धम्म में दीक्षित किया साथ ही साथ बाईस प्रतिज्ञाएँ दी। मानो ऐसा लगता था कि वंसुधरा ने सफेद वस्त्र धारण किया हुआ है, दीक्षा भूमि का सारा वातावरण शांतमय, सुखमय, आनन्दोउल्लास से भरा हुआ लगता था। उसी दिन से समाज में परिवर्तन आने लगा। डाॅ. बाबासाहब अम्बेडकर ने प्रतिज्ञा की थी कि अगर मैं कुछ वर्ष जीवित रहा तो सारे भारत को बौद्धमय करूंगा। वह दिन, समय, आज भी 14 अप्रैल, बौद्ध पौर्णिमा, और 06 दिसम्बर के समय समाज के बौद्ध अनुयायियो को याद आता है, रोमांचित करता है, बाबासाहब के सभी कार्यो को याद करते है। बौद्ध धम्म भारत में ही नहीं चीन, जापान, ब्रम्हदेश, सिलोन, थायलैण्ड, इग्लैण्ड, तायवान, पाश्चात्य देशो में बौद्ध धम्म के अनुसार, राष्ट्रधर्म के अनुसार आचरण करते है। भारत देश को बड़े आदर के साथ नतमस्तक होकर नमन करते है। सूरज दिन में, चाॅद रात में प्रकाशमान होता है, लेकिन तथागत भगवान बुद्ध स्वयंम के तेजो से दिन रात प्रकाशमान रहते है। इसीलिए धम्म को लाईट आफ एशिया कहा जाता है, सारे संसार का प्रदीप माना जाता है। भवंतु सब्ब मंगलम्। साधु। साधु।। साधु।।। - डाॅ. पांडुरंग परते Tags : world liberate time beautiful Lord Buddha Tathagata