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दामोदर घाटी योजना

TPSG

Thursday, August 6, 2020, 10:00 AM
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दामोदर घाटी योजना और डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर

एक समय दामोदर नदी बिहार राज्य के लिए एक बड़ा संकट थी। जहाँ हर दो चार साल में भयानक बाढ़ आती थी और जनजीवन तहस नहस करके लौट जाती थी।इस बाढ़ से धन संपत्ति का भारी नुकसान होता था। सन् 1859 के दस्तावेजों में इस नदी में आयी 12 भीषण बाढ़ों का उल्लेख मिलता है। ठीक 77 वर्ष पूर्व 17 जुलाई 1943 में इस नदी में भयावह बाढ़ आयीं और जिसने अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये। इससे अपरिमित जनहानि हुई। 11 हज़ार मकान बह गये। बंगाल में रसद पहुँचाना कठिन हो गया। उसी समय दूसरे विश्वयुद्ध की सुगबुगाहट होने से कलकत्ता तक बम के धमाके सुनायी पड़ने लगे। फिर बंगाल में अकाल ने कहर ढाया। जिसमें पच्चीस हज़ार लोग मर गये।स्थिती के मद्देनज़र अंग्रेज़ सरकार ने दमोदर नदी को नियंत्रित करने की योजना पर विचार करना शुरू किया।

दामोदर प्रोजेक्ट का कार्य किसे सौंपा जाये, ब्रिटिशों के सामने ये बड़ा सवाल था। लेकिन अंततः व्हाॅइसराय कौंसिल के सभासद डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर की विद्वता, प्रतिभा और कार्य करने की दक्षता देखकर इस परियोजना को उन्हीं को सौंपा जाना तय हुआ ।

डाॅ बाबासाहेब आंबेडकर उस समय कोयला खदान, मुद्रण व लेखन सामग्री, सैन्य तथा प्रांतीय अधिकारियों को प्रशिक्षण देने, सैन्य भर्ती, गृहनिर्माण तथा सार्वजनिक निर्माण कार्य के अनेक विभाग संभाल रहे थे। डाॅ आंबेडकर भी चाहते थे कि दामोदर घाटी योजना जैसी

कल्याणकारी योजना को वे अपने सही निष्कर्ष तक पहुँचा सके। उन्होंने अमेरिका की टेनेसी नदी का अध्ययन किया। टेनेसी घाटी योजना के अनेक गजेटियर मँगवा लिये और नौकरशाहों पर अवलंबित हुए बिना स्वयं उसका अध्ययन करने लगे।उसी तरह मैसूर की तुंगभद्रा नदी और पंजाब के छोटे बड़े बांधों का भी उन्होंने शिद्दत से गहन अध्ययन किया।

उसी समय श्रम विभाग के अंतर्गत सेंट्रल पाॅवर बोर्ड नामक एक मंडल की स्थापना की गई। डाॅ आंबेडकर उसके अध्यक्ष थे। नदी, बांध और विद्युत योजनाओं के सभी कार्य उस विभाग को सौंपे गये। लगभग तीन माह तक दामोदर नदी के बांध योजना पर राजकीय तौर पर विचार मंथन चलता रहा। अंततः डाॅ आंबेडकर के ठोस और अडिग विचारों के तहत राजकीय निर्णय लिये गये। इस तरह डाॅ आंबेडकर ने दामोदर योजना को कार्यान्वित करने का लक्ष्य रखा । संपूर्ण योजना को कार्य रूप देने के लिए अब दक्ष और अनुभवी इंजिनियरों की आवश्यकता थी। ये काम इजिप्ट के आस्वान बांध पर कार्य करने वाले

ब्रिटिश इंजीनियरों को दिया जाये, ऐसा अंग्रेज़ सरकार चाहती थी। लेकिन डाॅ आंबेडकर का मत था कि इंग्लैंड में भारत की तरह बड़ी और विस्तृत नदियाँ नहीं हैं इसलिए वहाँ के इंजीनियरों को इस तरह की बड़ी नदियों पर बांध बनाने का अनुभव नहीं है। उनकी अपेक्षा अमेरिकी तंत्रज्ञ कहीं ज्यादा उपयुक्त हैं। ऐसा अपना मत उन्होंने ब्रिटिश सरकार को मान्य करने के लिए बाध्य किया। उनकी इस भूमिका से डाॅ आंबेडकर तंत्रज्ञान की दृष्टि से भी अधिक सक्षम हैं ऐसा ब्रिटिशों को इसका अनुभव हुआ।

अमेरिकन तंत्रज्ञों का काम समाप्त होने पर सेंट्रल वाॅटर इरिगेशन नेव्हिगेशन कमिशन का काम देखने के लिए योग्य भारतीय तंत्रज्ञों को नियुक्त करना आवश्यक था। और इसके लिए डाॅ आंबेडकर को केवल भारतीय विशेषज्ञ ही चाहिए थे। उस समय पंजाब में मुख्य अभियंता पद् पर ए. एन. खोसला थे। उनके नाम की सिफारिश की गई। खोसला का मत आंबेडकर के प्रति कलुषित था। प्रथमतः उन्होंने डाॅ आंबेडकर के अधीनस्थ काम करने से इंकार किया। डाॅ आंबेडकर ने उनसे मुलाक़ात की और इस बात को स्पष्ट किया कि कोई भी अंग्रेज़ या अमेरिकन इंजीनियर नियुक्त करना मेरे लिए

कोई कठिन बात नहीं है, लेकिन इस काम के लिए मुझे भारतीय अभियंता ही चाहिए हैं। डाॅ आंबेडकर की दो टूक बातें सुनकर मुख्य अभियंता खोसला की आँखें खुली और उन्होंने इस दायित्व को तत्काल स्वीकार कर लिया।

दामोदर व्हेली योजना को डाॅ बाबासाहेब आंबेडकर

ने अहर्निश मेहनत से कार्यान्वित किया। इसके साथ ही भाखड़ा नंगल बांध,सोन रिव्हर व्हैली प्रोजेक्ट तथा हीराकुंड बांध की शुरूआत की गयी। आगे चलकर स्वतंत्रता के बाद देश के विभाजन के अनंतर

काकासाहेब गाड़गिल के कार्यकाल में दामोदर प्रोजेक्ट पूर्ण हुआ। अमेरिका में अनेक प्रादेशिक योजनाओं की नींव जाॅर्ज डब्ल्यू नोरिस ने सन् 1922 में रखी थी,वहाँ की जनता ने उनके स्मरणार्थ एक बांध का नाम उनके नाम पर रखा है। मात्र दामोदर योजना के क्रियान्वयन के लिए डाॅ बाबासाहेब आंबेडकर ने जो श्रम किया। अहर्निश

कठोर परिश्रम से बिहार, उड़िसा और बंगाल प्रांत को जो नवजीवन दिया, उसकी स्मृति स्वरूप उनका नाम तक सरकार ने इस परियोजना को नहीं दिया। उसी तरह DVC की वेबसाइट पर साधारण कृतज्ञता तक व्यक्त की गई नहीं दिखाई पड़ती है। ये सब देखकर तीव्र पीड़ा और दुःख होता है।

(संदर्भ -डाॅ बाबासाहेब आंबेडकर, लेखक वसंत मून)

.................................... संजय सावंत

हिंदी रूपान्तरण : राजेंद्र गायकवाड़





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