बाबासाहेब और चुनाव Dinesh Bhaleray Monday, September 23, 2019, 09:25 AM बाबासाहेब और चुनाव आजाद भारत में बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर एक दूधवाले से चुनाव हार गए थे। हालांकि यह लोकतंत्र की ताकत थी और हारना लाज़िमी था क्योंकि बोरकर नाम के इस व्यक्ति को पार्टी ने टिकट ही बाबा साहेब को हराने के उद्देश्य से दिया था। गज़ब की पटकथा लिखी गई और साम-दाम-दण्ड-भेद सब आजमाए गए और दूधवाला व्यक्ति चुनाव जीत गया। बाबा साहेब के पास योग्यता थी, काबिलियत थी, शिक्षा थी, ज्ञान था लेकिन स्वाभिमान गिरवी रखने की नीयत नहीं थी बस। नतीजा बाबा साहेब बुरी तरह चुनाव हार गए। लोग उन पर व्यंग्य करने से भी नहीं कतराते थे। समाज भी उन्हें उस वक्त समझने की क्षमता नहीं रखता था और ऐसा हर दौर में होता रहा है। बात 1952 की है प्रथम चुनाव में जब बाबासाहब अम्बेडकर चुनाव हारे थे और बोरकर चुनाव जीते तब बोरकर बाबासाहब अम्बेडकर से अपना रुतबा दिखाने के उद्देश्य से मिलने गये। उन्होंने बाबासाहब अम्बेडकर से मुस्कुराते हुए कहा कि साहब आज मैं चुनाव जीता हूँ, मुझे वास्तव में बहुत ही खुशी हो रही है! बाबासाहब अम्बेडकर ने कहा कि तुम जीत तो गये तो अब क्या करोगे और तुम्हारा कार्य क्या होगा ? तब बोरकर ने कहा कि मैं क्या करुंगा जो मेरी पार्टी कहेगी वो करुँगा। उन्होंने जीताया है तो उनकी नीति का सम्मान करूँगा। आखिरकार इतनी बड़ी जीत सम्भव ही पार्टी की वजह से हुई है अन्यथा नेता तो और भी बहुत थे। तब बाबासाहब अम्बेडकर ने पूछा कि तुम सामान्य सीट से चुनाव जीते हो? बोरकर ने कहा कि नहीं मैं सुरक्षित सीट से चुनाव जीता हूँ जो यकीनन आपकी मेहरबानी से संविधान में दिये गये आपके अधिकार के तहत ही जीता हूँ। ओपन सीट से कहाँ जीत सकता था। सीट ओपन होती तो ये लोग जीतना तो दूर की बात लड़ने तक न देते। बाबासाहब अम्बेडकर ने बोरकर को चाय पिलायी और भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी। बोरकर के जाने के बाद बाबासाहब हंस रहे थे तब नानकचन्द रत्तू जो बाबा साहेब के सहयोगी थे उन्होंने पूछा कि साहब आप क्यों हंस रहे हो? ऐसी क्या बात है कि आप इसको जवाब देने की बजाय आप हंस रहे हैं? बाबासाहब अम्बेडकर ने कहा कि बोरकर अपने समाज का नेतृत्व और प्रतिनिधित्व करने के बजाय अब पार्टी के हरिजन बन गये हैं। अब वे वही करेंगे जो पार्टी करवाएगी न कि वह करेगी जो समाज के लिए जरूरी होना चाहिए था। आरक्षण की ताकत और अपनी व अपने समाज की दशा का एहसास होते हुए भी इनकी इतनी सी समझ पर हंस रहा हूँ। आज कल हमारे समाज के सांसद, विधायक, हर नेता अपने समाज का प्रतिनिधित्व करने के बजाय पार्टियों के हरिजन नेता बन कर ही रह गये हैं। यह बात बाबासाहब अम्बेडकर ने 1952 में ही कही थी जो आज तक सार्थक सिद्ध हो रही है। जब तक नेताओं में स्वाभाविक और आत्मसम्मान की भावना जागृत नहीं होगी समाज में प्रतिनिधि नहीं बल्कि गुलाम पैदा होते रहेंगे। संग्रहक - दिनेश भालेराव Tags : defeating impossible democracy However India independent Baba Saheb Dr. Ambedkar