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स्टीफेन स्पेण्डर की कविता - हम

Vishal Kadve
vishalk030@gmail.com
Wednesday, January 5, 2022, 05:36 PM
स्टीफेन स्पेण्डर की कविता - हम

स्टीफेन स्पेण्डर की कविता - हम

सुनो युवको, सुनो युवा साथियो
बहुत देर हो चुकी है कि उन्हीं घरों में ठहरा जाये,
जिन्हें तुम्हारे पिताओं ने बनाया था कि जहां तुम
खूब नाम कमा सको, देर हो गयी बहुत
बनाने या गिनने के वास्ते कि क्या बनाया गया
गिनो अपने उन खूबसूरत स्वत्व को
जो शुरू होते हैं तुम्हारी देह और दहकती आत्मा से
तुम्हारी त्वचा के रोम, मांसपेशियों की श्रृंखला
झीलें तुम्हारे पांवों के आरपार गिनो अपनी आंखें जैसे
जवाहरात और सुनहरा यौवन
फिर गिनो सूर्य को और फिर अगणित प्रकाश को
चमचमाते हुए लहरों और धरती पर
बहुत देर हुई कि उन घरों में ठहरा जाये,
जहां भूतों का डेरा है,
महिलाएं हैं भिन-भिन मक्खियों की तरह कहरुबा में कैद
पूंजीपति जैसे कि भीत है मछलियों के जीवाश्म
कठोर चट्टान से कदम बढाओ साथी
पुनः सिरजने और पहाड़ी पर मीत के साथ सोने के वास्ते
बढो बगावत के लिए और याद रखो अपना स्वत्व
सभागार कभी नहीं बने भूतों का मकबरा।

अनुवाद : सुधीर सक्सेना





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