शशिप्रकाश की कविता - अगर तुम युवा हो Vishal Kadve vishalk030@gmail.com Thursday, January 6, 2022, 03:10 PM शशिप्रकाश की कविता - अगर तुम युवा हो जब तुम्हें होना है हमारे इस ऊर्जस्वी, सम्भावनासम्पन्न, लेकिन अँधेरे, अभागे देश में एक योद्धा शिल्पी की तरह और रोशनी की एक चटाई बुननी है और आग और पानी और फ़ूलों और पुरातन पत्थरों से बच्चों का सपनाघर बनाना है, तुम सुस्ता रहे हो एक बूढ़े बरगद के नीचे अपने सपनों के लिए एक गहरी कब्र खोदने के बाद। तुम्हारे पिताओं को उनके बचपन में नाज़िम हिकमत ने भरोसा दिलाया था धूप के उजले दिन देखने का, अपनी तेज़-रफ़्तार नावें चमकीले-नीले-खुले समन्दर में दौड़ाने का। और सचमुच हमने देखे कुछ उजले दिन और तेज़-रफ़्तार नावें लेकर समन्दर की सैर पर भी निकले। लेकिन वे थोड़े से उजले दिन बस एक बानगी थे, एक झलक-मात्र थे, भविष्य के उन दिनों की जो अभी दूर थे और जिन्हें तुम्हें लाना है और सौंपना है अपने बच्चों को। हमारे देखे हुए उजले दिन प्रतिक्रिया की काली आँधी में गुम हो गये दशकों पहले और अब रात के दलदल में पसरा है निचाट सन्नाटा, बस जीवन के महावृत्तान्त के समापन की कामना या घोषणा करती बौद्धिक तांत्रिकों की आवाजें सुनाई दे रही हैं यहाँ-वहाँ हम नहीं कहेंगे तुमसे सूर्योदय और दूरस्थ सुखों और सुनिश्चित विजय और बसन्त के उत्तेजक चुम्बनों के बारे में कुछ बेहद उम्मीद भरी बातें हम तुम्हें भविष्य के प्रति आश्वस्त नहीं बेचैन करना चाहते हैं। हम तुम्हें किसी सोये हुए गाँव की तंद्रिलता की याद नहीं, बस नायकों की स्मृतियाँ विचारों की विरासत और दिल तोड़ देने वाली पराजय का बोझ सौंपना चाहते हैं ताकि तुम नये प्रयोगों का धीरज सँजो सको, आने वाली लड़ाइयों के लिए नये-नये व्यूह रच सको, ताकि तुम जल्दबाज़ योद्धा की ग़लतियाँ न करो। बेशक थकान और उदासी भरे दिन आयेंगे अपनी पूरी ताक़त के साथ तुम पर हल्ला बोलने और थोड़ा जी लेने की चाहत भी थोड़ा और, थोड़ा और जी लेने के लिए लुभायेगी, लेकिन तब ज़रूर याद करना कि किस तरह प्यार और संगीत को जलाते रहे हथियारबन्द हत्यारों के गिरोह और किस तरह भुखमरी और युद्धों और पागलपन और आत्महत्याओं के बीच नये-नये सिद्धान्त जनमते रहे विवेक को दफ़नाते हुए नयी-नयी सनक भरी विलासिताओं के साथ। याद रखना फ़िलिस्तीन और इराक़ को और लातिन अमेरिकी लोगों के जीवन और जंगलों के महाविनाश को, याद रखना सब कुछ राख कर देने वाली आग और सबकुछ रातो रात बहा ले जाने वाली बारिश को, धरती में दबे खनिजों की शक्ति को, गुमसुम उदास अपने देश के पहाड़ों के निःश्वासों को, ज़हर घोल दी गयी नदियों के रुदन को, समन्दर किनारे की नमकीन उमस को और प्रतीक्षारत प्यार को। एक गीत अभी ख़त्म हुआ है, रो-रोकर थक चुका बच्चा अभी सोया है, विचारों को लगातार चलते रहना है और अन्ततः लोगों के अन्तस्तल तक पहुँचकर एक अनन्त कोलाहल रचना है और तब तक, तुम्हें स्वयं अनेकों विरूपताओं और अधूरेपन के साथ अपने हिस्से का जीवन जीना है मानवीय चीज़ों की अर्थवत्ता की बहाली के लिए लड़ते हुए और एक नया सौन्दर्यशास्त्र रचना है। तुम हो प्यार और सौन्दर्य और नैसर्गिकता की निष्कपट कामना, तुम हो स्मृतियों और स्वप्नों का द्वंद्व, तुम हो वीर शहीदों के जीवन के वे दिन जिन्हें वे जी न सके। इस अँधेरे, उमस भरे कारागृह में तुम हो उजाले की खिड़कियाँ, अगर तुम युवा हो! Tags : अगर तुम युवा हो कविता शशिप्रकाश