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हे प्रभू ! तु मुझे बड़ा आदमी बना दे!

Siddharth Bagde
tpsg2011@gmail.com
Sunday, August 8, 2021, 12:12 PM
He prabhu

हे प्रभू ! तु मुझे बड़ा आदमी बना दे!
नोट:- यह एक काल्पनिक व्यग्यं है।
गरीबी में पड़े हुए आदमी के पास केवल भगवान का सहारा होता है (चाहे भगवान हो या न हो उसके विचार में घुमता रहता है)।
एक गरीब भगवान से फरियाद करता है, प्रार्थना करता है कि काश! मैं अमीर घर में पैदा होता तो मैं रोज अच्छे कपड़े पहनता, रोज अच्छी गाड़ी में घूमता। रोज अच्छे होटल में जाता, अच्छा खाना खाता और रोज बड़े मंदिरो में जाता और अच्छे से अच्छे भगवान के दर्शन करता।
मैं अभी सोच रहा हूँ कि मैं गरीब हूँ तो भी अच्छे से अच्छा भगवान कौन सा है और यदि मैं अमीर हो जाऊँगा तो अच्छे से अच्छा भगवान कौन सा है यह प्रश्न मेरे सामने है।
मुझे तो शरीफ भगवान चाहिये, जो गुस्सा नहीं करता हों और जल्द से जल्द जो माँगे वो दे दे। किसी काम में देर नहीं करता हो और सिर्फ मेरी बात सुनता हो। चाहें मैं बुरा कहँू चाहे भला। लेकिन ऐसा भगवान कौन सा है। करोड़ो भगवान की संख्या है, मैं किससे कहँू। अपनी फरियाद अपनी प्रार्थना।
मैंने तो यह भी सुन रखा है कि भगवान पानी में भी पैदा होते थे, तो मैंने तैरना सीखा और तालाब के अंदर डूबकी लगा दी वहाँ भगवान तो  नहीं मिला लेकिन मेरा पैर जाले में फँस गया बड़ी मुश्किल से जान बचाकर निकल सका।
फिर मैंने सुन रखा था कि भगवान पत्थर में भी पैदा हो जाते है तो मैंने एक पत्थर अपने सिर पर मार लिया लेकिन मेरा सिर फुट गया! भगवान ने कोई आवाज नहीं दी।
फिर किसी ने कहां कि जमीन में धँसे रहते है भगवान ! मैंने घर से रात में छुप-छुप कर कुदाली फावड़ा ले जाकर गड्डा खोदा वहाँ भी कोई फायदा नहीं हुआ। एक दिन मेरे पिताजी शराब के नशे में मुझे ढूढ़ते हुये आये और उसी गड्डे में गिर पड़े।
मैंने भगवान से कहाँ यदि तू कहीं इस गड्डे में छिपा हो तो मेरे पिताजी का अक्ल देना कि वे शराब छोड़ दें। कई दिन बीत गये मगर आज तक उन्होंने नहीं सुनी।
एक स्थान पर भगवान को ढुढ़ने के बारे में विचार कर रहा था -  सोचा अब सन्यासी बन जाऊँ। तपस्या करूँगा फिर भगवान के दर्शन हो जायेगें तब उनसे वरदान माँग लूँगा फिर उस वरदान से एक झटके में बंगला, नौकर-चाकर, गाड़ी, रूपये-पैसे, अच्छे कपड़े की माँग करूँगा। फिर अमर भी हो जाऊँगा। जैसे ही मैं जंगल में सन्यासी बनने जाने के लिये उठा - एक सन्यासी जिसकी हालत पतली थी, दाड़ी बढ़ी हुई थी, कई दिनों से नहाया नहीं था। पास में आया और बोला - एक रूपया दे दे भईया - मैंने सन्यासी महाराज से कहा - अरे! महाराज - ये क्या आपको भगवान ने वरदान नहीं दिया। महाराज ने कहां - मेरे पिताजी सन्यासी जीवन जीने चले गये थे हमें छोड़कर। मैं उन्हें ढूढ़ने निकला तो एक सन्यासी ने कहाँ कि पेड़ के नीचे बैठे-बैठे मर गये। थोड़ी सी और भगवान को पुकार लगाते तो भगवान के दर्शन हो जाते। मैने सोचा कि अब मेरी उम्र तो छोटी है मेरे पिताजी तो बुढ़ढे थे, इसलिये जल्दी मर गये। मैंने पूरी उम्र लगा दी मगर भगवान ने आज तक दर्शन नहीं दिये। मैं अब बुढ्ढा हो गया हूँ। अब तो मेरा कोई बेटा भी नहीं है। हाँ, लेकिन मैं भिखारी जरूर हो गया हूँ।
सन्यासी की हालत देख मैं तो घबरा गया। सन्यासी बनने का विचार छोड़ दिया और कहाँ हे प्रभू! अब मुझे बड़ा आदमी नहीं बनना है।

- सिद्धार्थ बागड़े





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