महिषासुर और तारा Pratap Chatse Tuesday, May 16, 2023, 12:44 PM महिषासुर और तारा यह दोनों बौद्ध प्रतीक है| महिंसासक एक बौद्ध पंथ था, जो सम्राट अशोक के पहले हुई दुसरी संगिती के बाद उत्पन्न हुआ था| महिशासक पंथ के लोग तथागत बुद्ध की महाइश्वर (महेश्वर) के रुप में पुजा करते थे| महायानी बोधिसत्व अवलोकितेश्वर को ही महिशासकों ने महाईश्वर या महेश्वर कहना शुरू कर दिया था| इस पंथ के लोग महिलाओं को दुय्यम समझते थे| महिला बुद्ध और चक्रवर्ती सम्राट नहीं बन सकती, ऐसा उनका कहना था| इसलिए, नागसुत्त में महिला भिक्खुणी नागदत्ता महिसासकों की तुलना मारा से करतीं हैं| आगे चलकर, बुद्ध के मारविजय के साथ भिक्खुणीयों ने अपने शाक्त बनाम महिसासक संघर्ष को जोड दिया, और मारविजय अर्थात विजयादशमी के दिन महिसासकों पर विजय मनाने लगे, जिसे महिसविजय और बाद में महिसासुर विजय कहा जाने लगा और शाक्तों की देवता दुर्गा महिषासुरमर्दिनी बनीं| महायान पंथ के प्रज्ञापारमिता परंपरा में प्रज्ञा पारमिता को धम्म माता और फिर तारा देवी के रूप में पुजा जाने लगा और महिलाओं को पुरुषों के साथ प्राथमिकता दी जा रही थी| आगे चलकर बौद्ध तत्वज्ञ नागार्जुन के नेतृत्व में महिंसासक पंथ का नेतृत्व दक्षिण भारत में बढने लगा| नागार्जुन आवंति के रहनेवाले थे और दक्षिण भारत के नागार्जुनकोंडा को उन्होंने अपनी शिक्षा का मुख्य केंद्र बनाया था| तबसे नर्मदा से लेकर संपुर्ण दक्षिण भारत में महिंसासक पंथ का प्रभाव बढने लगा और उस प्रदेश को "महिषमंडल' कहा जाने लगा| नर्मदा नदी पर स्थित महिष्मति इस पंथ का मध्य भारत में दुसरा महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका था| महिसासक बौद्ध पंथ के प्रभाव के कारण मध्य और दक्षिण भारत को "महिसमंडल" कहा जाने लगा था| महिसमंडल मतलब महाईश बुद्ध (महेश्वर तथा अवलोकितेश्वर बुद्ध) को माननेवाले बौद्धों का प्रदेश| म्हैसूर नाम महेश्वर बोधिसत्व के नाम से पड़ा है| धम्म एक नौका की तरह व्यक्ति को एक तरफ से दुसरी तरफ ले जाता है ऐसा बुद्ध ने कहा था| तारा मतलब तारण करनेवाली, संसार के एक छोर से दुसरी छोर ले जानेवाली देवता| इस तरह, महायान पंथ में धम्म को "आर्य तारा या आदिमाता" कहा जाने लगा था| नागार्जुन के शुन्य को ही आदिमाता कहा जाने लगा था| स्वयंभू संहिता में यह कहा गया है, "शून्यता शून्यतां बुद्धमाता प्रकौर्तिता"| इस तरह,बौद्ध तारा देवता को बाद में आदिमाता, दुर्गा भी कहा जाने लगा था| नागार्जुन के बाद प्रज्ञापारमिता को तारा देवता के रूप में वज्रयान में पुजा जाने लगा था| इस तरह महायान के वज्रयान पंथ में महिलाओं को भी देवी के रूप में महत्व मिल गया, जिसका परिणाम यह है कि, चायना की एक महारानी वू जेतियन ने खुद को साम्राज्ञी घोषित किया था| इस तरह महिशासकों ने नकारा हुआ सन्मान वज्रयान ने महिलाओं को दिला दिया था| इससे महिशासकों और वज्रयानीयों के बीच खुला संघर्ष शुरू हुआ| इस खुनी संघर्ष का परिणाम यह हुआ की महिंसासक पंथ दक्षिण भारत में मैसूर और मध्य भारत के आसपास सिमट गया, तो वज्रयान शाक्त पंथ भारत के तटीय क्षेत्रों में जैसे की महाराष्ट्र, बंगाल, आसाम जैसे प्रदेशों तक ही रह गया| बोधिसत्व अवलोकितेश्वर को महिसासक बौद्ध लोग "महाईश्वर अवलोकितेश्वर या महेश्वर" कहते थे| कुषाण सम्राट अवलोकितेश्वर बोधिसत्व के अनुयायी होने के कारण सम्राट विमा काडफिसेस ने खुद को अपनी मुद्राओं पर "महेश्वर" बताया था| वज्रयानी शाक्तों ने महिशासकों को निचे दिखाने के लिए अपनी देवता तारा (बंगाली भाषा में दुर्गा) द्वारा महेश्वर को अपने पैरों तले निचे रौंदते हुए दिखाया, जिससे उसे महिषमर्दिनी कहा जाने लगा| शाक्तों ने महेश्वर अवलोकितेश्वर को असुर कहना शुरू किया, जिससे महाईश्वर अवलोकितेश्वर बाद में "महाईश असुर अर्थात महिषासुर" बन गया| इस तरह, शाक्तों द्वारा महाईश्वर अवलोकितेश्वर को महिषासुर कहा गया| इससे स्पष्ट होता है कि, "महिषासुर" वास्तव में "बोधिसत्व अवलोकितेश्वर" ही है| इसके उलटा, महिशासकों ने यह बताया की महेश्वर ने देवी के शरीर के तुकडे तुकडे कर अलग अलग प्रदेशों में उन तुकडों को फेंक दिया, जिसके उपर शाक्त पीठ बनाये गये| इस मिथककथा का अर्थ यह है कि, महिशासकों के विरोध के चलते शाक्त लोग टुकडों में बंट गए और तटीय क्षेत्रों में उनके पुजा स्थल बन गए, जिन्हें बाद में "शाक्त पीठ" कहा जाने लगा| इस तरह, तारा (दुर्गा) और महेश्वर के पिछे बौद्ध धर्म छिपा हुआ है और दोनों बौद्ध धर्म के प्रतीक तथा देवता है| वज्रयान के अनुसार दस पारमिताओं को पार कर सिद्ध अपनी सिद्धि (निर्वाण) हासिल कर सकता हैं| दस पारमिताओं को वज्रयान में "दस महाविद्या" कहा गया है, और हर एक महाविद्या एक देवी के रूप में पारमिता को प्रदर्शित करती हैं| साधना करनेवाला सिद्ध देवी का वेष धारण कर दस दिनों में दस अलग अलग देवीयों के रूप धारण कर दसवें दिन सिद्धि हासिल करता है, ऐसा वज्रयान पंथ में बताया गया है| आजकल जो नवरात्रि उत्सव मनाया जाता है यह उसी वज्रयान परंपरा पर आधारित है| वज्रयान में हर पारमिता का अलग रंग रुप वर्णित किया गया है, जिससे प्रत्येक पारमिता की देवता अलग अलग रंग और रुप में बताई जाती है| यही कारण है कि, पारमिताओं को पालन करनेवाली महिलाएं नवरात्रि उत्सव के दरमियान नौ दिन अलग अलग रंगों की साडियां पहनती है| बोधि को बौद्ध धर्म में "बोधि बीज या तथागत गर्भ" भी कहा जाता है| हर व्यक्ति के अंदर बोधि सूक्ष्म रूप में मौजूद रहतीं है, जिसे "तथगत गर्भ" कहा जाता है| बोधिसत्व अर्थात सिद्ध सबसे पहले प्रज्ञा पारमिता के द्वारा पहले दिन "बोधि बीज या तथागत गर्भ" को अपने दिमाग के अंदर साधना के द्वारा क्रियाशील बनाता है| इसलिए, नवरात्रि के पहले दिन बोधिसत्व महिलाएं "कुंभ" में बीज डालकर अपने दस दिनों के दस पारमिता साधना की शुरुआत करतीं हैं| यहाँ पर कुंभ वास्तव में बोधि साधना का प्रतीक है और कुंभ के अंदर डालें हुए बीज यह "बोधि बीज या तथागत गर्भ" के प्रतीक है| बोधि प्राप्ति की इच्छा से अनेक महिलाएं साधक बनकर बिना चप्पल रहते हुए दस दिनों की "बोधि साधना" करतीं हैं और दसवें दिन बोधिसत्व बनने की खुशी में "मारविजय" मनाती है, जिसे वज्रयान में दुर्गा महिषासुर संघर्ष समझा जाता है| वज्रयान में महिलाओं को इतना महत्व दिया गया है की अत्यंत निचली जाती की महिला के साथ शाक्त विवाह करनेपर राजा एक उत्तम राजा बन सकता है या सिद्ध अपनी उत्तम सिद्धि प्राप्त कर सकता हैं ऐसा समझा गया है| इसलिए, वज्रयान का प्रभाव 7-8 वी सदी के बाद बढता गया, जिसके साथ देवी पुजा का भी महत्व बढ़ा और उसके लिए 7 वी सदी में देवीमहात्म्य ग्रंथ लिखा गया था| वज्रयान में देवीयों के विरोधी महाईश्वर (महेश्वर) को असुर के रुप में महाइश असुर (महिषासुर) कहा जाने लगा, जिससे महिषासुर नाम अधिक प्रसिद्ध हुआ और उसको मारनेवाली तारा/दुर्गा महिषमर्दिनी के रुप में प्रसिद्ध हुई| इस तरह, दुर्गा और महिषासुर दोनों काल्पनिक वज्रयानी पात्र है| References: 1) A guide to the deities of the Tantra- Vessantara 2) An introduction to Buddhist Esoterism- Bhattacharya 3) Indian Esoteric Buddhism: A social history of Tantric movement- Ronald Davidson --- डॉ. प्रताप चाटसे, बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क Tags : people of the Mahishasaka Emperor Ashoka Second Sangeet Mahinsasaka