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गोंड आदिवासी समुदाय

Pratap Chatse

Friday, May 19, 2023, 09:18 AM
Gondwana

गोंड आदिवासी समुदाय को प्राचीन बौद्ध होने का एहसास न हो इसके लिए जानबूझकर बौद्ध इतिहास को बायपास कर ब्राह्मणवादियों ने उन्हें काल्पनिक गोंडवाना संकल्पना से जोड़ दिया और बताया की संपुर्ण भारत प्राचीन काल में गोंडवाना प्रदेश था| (Worldmark encyclopedia of cultures and daily life, Volume III)

गोंडवाना मुगलकालीन शब्द है| प्राचीन बौद्ध साहित्य तथा वेद उपनिषद जैसे प्राचीन ब्राह्मण साहित्य में कहीं पर भी गोंड या गोंडवाना शब्द नहीं मिलतें| बौद्ध धर्म के पतन के बाद जो बौद्ध पहाड़ी और जंगली प्रदेशों में रहने लगे उन्हें कोंड, गोंड या खोंड कहा जाने लगा क्योंकि कोंड खोंड गोंड का अर्थ पहाड़ी लोग होता है| (उपरोक्त)

कोंड खोंड गोंड यह शब्द कुनिंद शब्द से बने हैं| कुनिंद लोग सम्राट अशोक के समय से बौद्ध लोग थे और सम्राट अशोक के अभिलेखों में भी कुनिंद बौद्ध लोगों का जिक्र मिलता है| प्रतीक्रांती के बाद कुनिंद बौद्ध लोग बचने के लिए पहाड़ी और जंगली प्रदेशों में रहने लगे और उन्हें कोंड खोंड गोंड कहा जाने लगा| ओडिशा के खोंड और कंध लोगों से कालाहांडी जिले का नाम बना है और कालाहांडी के पास ही बोध जिला है और यहाँ अनेक प्राचीन बौद्ध अवशेष आज भी मौजूद है, जिससे स्पष्ट होता है कि यह लोग प्राचीन बौद्ध लोग थे| (History and culture of Indian people, R. C. Majumdar, vol. 2, 1951, p. 161)

गोंड, कोंड, खोंड, कंध, खंद, खंदारे, कंडारे, खन्ददेश, कोंध, कोई, कोईतूर, यह सभी बौद्ध परंपरा के शब्द है और प्राचीन कुनिंद बौद्ध लोगों से संबंधित है| गोंड लोग बुद्ध की बुढा बाबा (बुद्धा बाबा) के नाम से पुजा करते हैं| (Ethnology of Bengal, Colonel Dalton, p. 281)

अर्थात गोंड, खोंड, कोंड, कंध, खंद, कोंध, कोई, कोईतूर यह सभी प्राचीन कुनिंद बौद्ध लोग है| कुनिंद बौद्ध लोग बुद्ध की स्तुपों के रूप में पुजा करते थे और तीन पहाड़ी (तीन टिले) बुद्ध स्तूप के प्रतीक समझते थे| इसलिए कुनिंद बौद्धों को "पहाड़ों की पुजा करनेवाले पहाड़ी लोग" समझा जाने लगा| आज भी कोंड, खोंड, गोंड शब्दों का अर्थ "पहाड़ी लोग" होता है क्योंकि वो कुनिंद बौद्ध लोग है और बुद्ध स्तुपों की पहाड़ी के रूप में पुजा करते हैं| (A peagent of Indian culture: art and archeology by A. K. Bhattacharya, p. 156ff)

Dr. Pratap Chatse ( BIN)

 

गोंड लोग प्राचीन कुनिंद बौद्ध लोग है|

गोंड‌ शब्द 13 वी सदी के बाद मिलता है और उसके पहले गोंड शब्द अस्तित्व में नहीं था| गोंड लोगों का पहला राज्य सन 1200 में "चांदा राज्य" स्थापित हुआ था| चांदा वर्तमान महाराष्ट्र का चंद्रपुर है जो नागपुर के नजदीक है|

गोंड, खोंड, गोंदली, समान शब्द है जिनका अर्थ पहाड़ी प्रदेश के लोग होता है| 16 वी सदी में मुगलों ने पहली बार गोंड शब्द इस्तेमाल किया था| उसके पहले गोंड लोग खुद को कोईतूर या कोई लोग कहते थे| कोई या कोईतूर शब्द प्राचीन "कुनिंद" शब्द से बना है| कुनिंद लोग प्राचीन बौद्ध थे और उनकी मुद्राओं पर बौद्ध स्तुप तथा अन्य बौद्ध प्रतीक मिलते हैं| गोंड लोग कुनिंद बौद्ध लोग है|

ग्रीक इतिहासकार प्टोलेमी ने कुनिंदों को "कुलिंडरी" कहा था| वराहमिहिर ने उसके ग्रंथ बृहतसंहिता (XIV, 22,29) में कुनिंद लोगों को कुलुटा कहा है जिससे कुलू मनाली नाम पडा़ है|

इन्हीं कुनिंद लोगों को बाद में कुनितूर, कोईतूर या कोई लोग कहा जाने लगा| कोईतूर शब्द से ही बाद में कोंडातूर, कोंड, खोंड, गोंड शब्द बने| (On the original inhabitants of Bharatvarsh, p. 146)

कुनिंद लोग बुद्ध की पुजा करते थे| इसी तरह गोंड लोग बुद्ध की बडा पेन या बुढा पेन (मतलब बुद्ध देव) के रूप में पुजा करते हैं| उनके पुरखे कुपार लिंगो ने बडा पेन की पुजा शुरू कर दी थी ऐसा गोंड लोगों का मानना है| सम्राट अशोक कलिंग के मौर्य कुमार से प्रसिद्ध थे, कुपार लिंगो में कुपार मतलब कुमार और लिंगो मतलब कलिंग का राजकुमार होता है ऐसा हम समझ सकते हैं| सम्राट अशोक ने स्तुपों के रूप में बुद्ध की बडे़ पैमाने पर पुजा प्रचलित कर दी थी| गोंड लोगों ने सम्राट अशोक को कुपार लिंगो के नाम से और बुद्ध को बडा पेन के नाम से याद रखा|

मैकफरसन के अनुसार बड़ा पेन का गोंडी भाषा में "प्रकाश की देवता" ऐसा अर्थ होता है और तथागत बुद्ध प्रकाश की देवता है| अर्थात, बडा पेन वास्तव में बुद्ध ही है|

सारांश यही है कि, कोंड, खोंड, गोंड लोग प्राचीन कुनिंद बौद्ध लोग है|

-डॉ. प्रताप चाटसे, बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क





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