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सम्राट अशोक के जीवन में एक क्रांतिकारी परिवर्तन

Ramswroop Bouddh

Sunday, June 2, 2019, 08:45 AM
samrat ashok

सम्राट बिन्दुसार के पश्चात उसका पुत्र अशोक मगध की गद्दी पर बैठा। उसको प्राचिन भारत का सबसे महान नरेश कहना अत्युक्ति न होगी। उसके जीवन की घटनाओं को जानने के लिए विश्वसनिय उसके लेख है जो उसने चट्टानो, प्रस्तर, खण्डों, गुफाओं और पत्थरों के स्तम्भों पर खुदवाये है। जो उसके कार्यों को याद दिलाते है।
अशोक का प्रारभिंक जीवन ऐसा जो क्रुरता से भरा था लोक उसे चण्डाशोक कहते थे, कहते है कि उसने अपने भाईयों को मारकर मगध की गद्दी छीनी थी लेकिन अभिलेखों से पता चलता है कि वह अपने भाईयों के परिवार के प्रति प्रेम प्रकट करता है और उनकी सुख-सुविधाओं का पुरा ध्यान रखता है।
अपने पिता के समय अशोक अवन्ति राष्ट्र का राज्यपाल रह चुका था। वहाँ उसका महादेवी नाम की शाक्य कुलिन विदिशा की राजकुमारी से विवाह हुआ था। उसी की सन्तान अशोक का पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा थी। अशोक ने अपने पुत्र महेन्द्र को भिक्षु बनाकर श्रीलंका प्रचार-प्रसार के लिए भेजा उसके पश्चात भिक्षुणी बनाकर अपनी पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा जहाँ इन दोनों ने वहाँ बौद्ध धम्म को प्रचार कर पुरे श्रीलंका को बुद्धीष्ट बनाया था।
अशोक के 13 शिलालेख से ज्ञात होता है कि राज्यभिषेख के आठ वर्ष पश्चात उसने कलिंग राज्य पर अपने अधिन करने हेतु घमासान युद्ध किया था अन्त में अशोक की विजय हुई। इस युद्ध में 1,50,000 व्यक्ति बंदी हुए थे और 1,00,000 मारे गये थे और कई गुणा बिमारी आदी से मर गये थे। इस विजय के पश्चात अशोक ने एक राजकुमार को कलिंग का राज्यपाल बनाकर भेजा। अशोक ने अपने महापात्रों को आदेश दिया कि वे प्रजा के साथ न्याय करें क्योंकि अशोक अपनी प्रजा को अपनी संतान समझता था।
कलिंग युद्ध के पश्चात अशोक के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया की युद्ध में हुई हानी का अशोक पर ऐसा प्रभाव पड़ा की उसने भारत की सिमाओं के भीतर साम्राज्य विस्तार करने का विचार सदा के लिए छोड दिया उसने तलवार के बल पर दी विजय का मार्ग छोडकर प्रेम और सहानुभूति से धर्म विजय करने का निश्चिय किया। अशोक सम्राट ने बौद्ध धर्म ग्रहण करने का निश्चिय किया और इसके लिए उन्होंने अपना गुरू भिक्षु उपगुप्त को बनाया और बौद्ध धम्म दीक्षा देने का आग्रह किया। बौद्ध भिक्षु उपगुरू ने अश्विन युक्त दसमी को एक विशाल समारोह में अशोक सम्राट को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी। तभी से सम्राट अशोक ने बौद्ध धम्म का प्रचार करना शुरू किया।

धम्म प्रचार के लिए
अशोक ने तृतिय बौद्ध संगती पाटलीपुत्र में बुलाई। इसके अध्यक्ष मोगलीपुŸा तिस्स थे ने निम्नलिखित बौद्ध धम्म प्रचारको को विदेंश में भेजा -
धर्म प्रचारक                    देश
मज्जन्तिक             कश्मिर-गंधार
महाराक्षित                युनानी प्रदेश
मज्झिम                हिमाचल प्रदेश
धर्म रक्षित            उपरान्त (बम्बई का उत्तरी भाग)
महाधर्म रक्षित            महाराष्ट्रा
महादेव                महिण्मण्डल (मैसूर मान्झाता)
रक्षित                बनवासी (उत्तरी कनारा)
सोंन और उत्तर      सुवर्ण भूमि (ब्रम्हा)
महेन्द्र आदि            श्रीलंका
इनके अतिरिक्त अन्य बौद्ध भिक्षओं को भारत के बाहर अन्य देशों में धर्म प्रचार के लिए भेजा गया। अशोक जानता था की कोरा उपदेश उतना प्रभाव नहीं करेगा जितना स्वयं आचरण कर उसने स्वयं विहार यात्राये छोडकर धर्म यात्राए प्रारंभ की तथा बुद्ध के जन्म स्थान लुम्बिनी गया। इसी उद्देश्य से उसने धर्म महापात्र नियुक्त किय। इनका कार्य था कि आध्यात्मिक, आवश्यक कथाओं की पूर्ति करना था। धर्मपदेशों को उसने चट्टानों और स्तम्भ पर खुदवाया तथा बुद्ध के स्तुपों को पहले से दूना करवाया। उसके प्रयत्नों से यह हुआ की प्रजा धर्म में आस्था करने लगी। उसके प्रयत्नों से बौद्ध धम्म विश्वस्तरिय धम्म बन गया। विश्व के इतिहास में अशोक को सबसे बडा सम्राट व धार्मिक व्यक्ति कहा है।
रामस्वरूप बौद्ध - राजस्थान





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