आम जनता की जेब कट रही है Dinesh Bhaleray Friday, December 4, 2020, 09:43 AM आलू के गोदाम भरे पड़े हैं, फिर भी खुदरा आलू 50 से 60 रुपये किलो तक बिक रहा है. उधर, प्याज की कीमत 100 रुपये तक पहुंच गई है. अलग-अलग खबरों का सार यही है कि ये महंगाई नहीं है. ये कालाबाजारी के जरिये जबरन थोपी गई महंगाई है. आलू और प्याज के बढ़े दामों का किसानों को कोई फायदा नहीं मिल रहा है. बिचौलिये ये माल उड़ा रहे हैं. नारे में कहा जा रहा है कि हम बिचौलियों को हटा रहे हैं, लेकिन असल में बिचौलिये चांदी काट रहे हैं. उत्तर प्रदेश से अमर उजाला ने लिखा है कि आलू और प्याज को आवश्यक वस्तु अधिनियम से बाहर करने पर मुश्किलें बढ़ गई हैं. रिकॉर्ड के मुताबिक, कोल्ड स्टोरेज में 30 लाख मीट्रिक टन आलू है. आलू की नई फसल आने तक सिर्फ 10 लाख मीट्रिक टन की खपत होगी. फिर भी दाम आसमान छू रहे हैं. नये कानून के मुताबिक, अब सरकार इसकी निगरानी नहीं करेगी कि किसने कितना स्टॉक जमा किया है. इससे कालाबाजारी आसान हो गई है. आलू और प्याज के दाम में आग लगी है. अभी-अभी तीन कृषि विधेयक पास किए गए थे. कहा गया कि किसानों के हित में हैं. धान की फसल अभी अभी तैयार हुई है. धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी घोषित किया गया है. लेकिन किसान कौड़ियों के भाव धान बेचने को मजबूर हैं. दैनिक भास्कर ने लिखा है कि धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1868 रुपए है, लेकिन मध्य प्रदेश के श्योपुर मंडी में 1200 रुपए प्रति क्विंटल का ही भाव मिल रहा है. पत्रकार ब्रजेश मिश्रा ने लिखा है कि 'यूपी में धान किसान बदहाल हैं. धान की कीमत कौड़ियों के भाव है. सरकारी क्रय केंद्रों पर दलालों का साया है. किसी को MSP मिल जाये तो किस्मत की बात होती है. धान 800-1000 प्रति कुंतल पर बेचने को बेबस है किसान. भारत समाचार ने हेल्पलाइन शुरू कर रखी है. अब तक 14 हजार शिकायतें मिल चुकी है.' उत्तर प्रदेश के कई जिलों से एमएसपी पर धान खरीद नहीं होने की खबरें हैं. इसी मुद्दे को लेकर किसानों का आंदोलन चल रहा है. कल दशहरे पर पंजाब और हरियाणा में रावण की जगह प्रधानमंत्री का पुतला जलाया गया. सरकार किसानों से कह रही है कि आपको बरगलाया जा रहा है. हम तो आपको अमीर बनाने का जुगाड़ कर रहे हैं. लेकिन जमीन पर तो वही हो रहा है जिसकी आशंका जताई गई. जागरण ने मध्य प्रदेश के बारे में खबर छापी है कि मक्का का एमसपी तय नहीं है. किसान औने पौने भाव में मक्का बेचने पर मजबूर हैं. इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, किसानों को मक्के का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से 40-50 फीसदी कम मिल रहा है. उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से खबरें हैं कि मक्का 7 से 9 रुपये प्रति किलो बिक रहा है. ये सब देखकर ऐसा महसूस होता है कि हमारी सरकारें किसी संगठित गिरोह की तरह काम कर रही हैं. अमीर लोग चांदी काट रहे हैं और आम जनता की जेब कट रही है Tags : helpline India quintal help procurement government possessed farmers Journalist