पेंशन सहित सामाजिक सुरक्षा की सभी नीतियों पर बहस हो और अध्ययन हो TPSG Tuesday, December 14, 2021, 04:59 PM पेंशन सहित सामाजिक सुरक्षा की सभी नीतियों पर बहस हो और अध्ययन हो पुरानी पेंशन व्यवस्था ख़त्म की जा चुकी है। बैंकों में बचत दर अब न्यूनतम स्तर पर है। नई पेंशन स्कीम है। इसका क्या रिकार्ड रहा है, क्या यह पर्याप्त है, इस पर भी आँकड़ों के साथ बहस होनी चाहिए। जो इन चीजों को समझते हैं उन्हें ही तथ्य और विश्लेषण सामने रखने होंगे। हम जैसे लोग भी सामान्य बातें कर सकते हैं लेकिन उनमें जानकारियों की कमी होगी। केवल सरकारी नौकरी वाले ही नहीं, सभी को पेंशन चाहिए। वकीलों को भी चाहिए। सारे वकील करोड़पति नहीं होते हैं। बुढ़ापे में उनकी भी हालत हम पत्रकारों की तरह हो जाती है। इसी तरह दूसरे पेशे के भी लोग होंगे। व्यापारी हैं। मज़दूर हैं। शिक्षक हैं। प्राइवेट कर्मचारी हैं। पेंशन का मतलब सामाजिक सुरक्षा के दूसरे कार्यक्रमों से भी है। उन सबको जोड़ कर सबके लिए बीमा, स्वास्थ्य, भोजन और रहने के मकान जैसी बुनियादी ज़रूरतों को ध्यान में रखकर कोई योजना और नीति बने। सरकार कई प्रकार की सामाजिक सुरक्षा देती है। केंद्र और राज्य स्तर की कोई योजनाएँ चल रही हैं। किसानों के लिए कोई छह हज़ार दे रहा है तो कोई दस हज़ार दे रहा है। कोई बेरोज़गारी भत्ता दे रहा है तो कोई कुछ। कहीं एक हज़ार का वृद्धावस्था पेंशन है तो कहीं दो हज़ार का। कोई तीर्थ यात्रा करा रहा है तो कोई आरती करा रहा है। बुजुर्गों के लिए रेल किराए में छूट है। इस वक्त शायद बंद है लेकिन है तो सही।ऐसी अनेक योजनाएँ चल रही हैं। इनमें से शिक्षा की योजनाओं को अलग कर बाक़ी सभी को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाना चाहिए। सभी एकरूप और सार्वभौमिक हो। हर नागरिक को मिले। सरकार आज भी पेंशन को अपनी जवाबदेही मानती है। वह पेंशन से मुक्त नहीं हुई है। वह कई प्रकार की पेंशन दे रही है। विधायक और सांसद पेंशन लेते हैं ।आप एक बार विधायक बन जाएँ, फिर सांसद और फिर राज्य सभा में जाएँ तो तीन तीन पेंशन ले सकते हैं। किसी को एक भी पेंशन नहीं और किसी को तीन-तीन पेंशन। यह क्या का न्याय है? कुछ राज्यों में पुरस्कार प्राप्त करने वालों को भी पेंशन मिलती है। व्यापारी भाइयों के लिए भी पेंशन की कोई योजना है।व्यापारी, छोटे दुकानदार कुछ हिस्सा देकर 60 साल के बाद 3000 मासिक पेंशन का इंतज़ाम कर सकते हैं। अब इस राशि में किसी का क्या होगा। फिर अपने ही कर्मचारियों को नेशनल पेंशन स्कीम थमा कर उनके ऊपर छोड़ने का कोई मतलब नहीं बनता है। जब प्रधानमंत्री पेंशन ले रहे हैं तो उनके विभाग में काम करने वाले सचिव और सहायक को भी पेंशन मिलनी चाहिए। इसी तरह बीमा को लेकर भी केंद्र और राज्य में तरह तरह की नीति है और बजट है। दूसरी तरफ़ स्वास्थ्य से लेकर तमाम सरकारी सुविधाएँ नाम की हैं। उनकी व्यवस्थाओं और गुणवत्ता में निरंतरता नहीं है। जवाबदेही और स्थायित्व नहीं है। सरकार को चाहिए कि कहीं मुफ़्त दवा कहीं मुफ़्त डायलिसिस जैसी लुभावनी योजनाओं की जगह एक समग्र नीति लाए। सबको सुविधा दे और जवाबदेही के साथ दे। सरकारी अस्पतालों में निवेश करें। हर नागरिक को एक समान बीमा दे।महँगे इलाज के कारण बुढ़ापा डरावना होता जा रहा है। सभी जीवन की तमाम असुरक्षाओं से घिरे रहते हैं। हम सब जब काम न करने की उम्र में प्रवेश करेंगे और नियमित आय नहीं होगी तब क्या होगा। बैंकों में बचत के पैसे इतने नहीं होंगे कि नियमित आय के न रहने से आप जी सकें। मेडिकल बिल बहुत परेशान करता है। आप जिस हाउसिंग सोसायटी में रहते हैं वहाँ रखरखाव का हज़ारों रुपया देते हैं। वही महीने का पाँच हज़ार होता है। इसके अलावा आप निगम को भी पैसा देते हैं। टोल टैक्स देते हैं। यानी आपका पैसा पानी की तरह तरह-तरह के प्राइवेट और सरकारी टैक्स पर बहता जा रहा है। अगर नियमित आय इतनी न हुई तो एकदम फ़्लैट बेचकर बेघर होना पड़ जाएगा। लखनऊ में शिक्षकों ने पुरानी पेंशन व्यवस्था की बहाली के लिए आंदोलन किया। उन्हें समझ आ रहा है कि बिना पेंशन के क्या होगा। लेकिन जिन्हें समझ आना चाहिए उन्हें नहीं आ रहा है क्योंकि विधायक और सांसद को पेंशन मिलती है। मैं साफ़ कहता हूँ । मुझे पेंशन चाहिए। इसका डर सताता ही है कि नौकरी नहीं रहेगी तो ख़र्च कैसे चलेगा। यह जुगाड़ करना भी ठीक नहीं होगा कि कोई विधान परिषद का ही सदस्य बना दे ताकि पेंशन मिल जाए। इससे तो एक का जुगाड़ होगा, बाक़ी पत्रकारों और वकीलों का क्या होगा ।सरकार ने एक कोने में पेंशन की सुविधा क्यों बचा कर रखी है ताकि किसी को इस तरह से सोचना पड़े। पेंशन सबका अधिकार होना चाहिए। इसे हासिल करने का एक भी अनैतिक रास्ता बचा नहीं होना चाहिए। सबको मिलनी चाहिए। कितने लोग विधायक या सांसद बन सकेंगे। मेरे ही पेशे के कई वरिष्ठ पत्रकार लिखते हैं कि नियमित आय नहीं है। रिटायर होने के बाद किसी तरह ख़र्चा चलता है। वरिष्ठ पत्रकार शंभुनाथ शुक्ल हमेशा इस बात को उठाते हैं।अगर क़िस्मत से बच्चों ने मदद नहीं की तब फिर आप राम भरोसे। हर बच्चे की कमाई इतनी भी नहीं होती कि वह सबका भार उठाकर चल सके। नतीजा परिवार में तरह-तरह की अशांति। जिन्हें नहीं चाहिए वो सरकार के यहाँ नाम लिखा दें। जिन्हें चाहिए वो भी लिखा दें। और यह राशि एक या दो हज़ार की दिखावटी राशि नहीं होनी चाहिए। इसलिए पेंशन और सामाजिक सुरक्षा को लेकर सरकार एक राष्ट्रीय टीम बनाए। जो केंद्र और राज्यों की योजनाओं का अध्ययन करे और टुकड़े-टुकड़े में कुछ को कुछ देने के बजाए सभी नागरिकों को सम्मानजनक पेंशन दे। हर किसी की आर्थिक समझदारी एक समान नहीं होती कि शेयर बाज़ार से पेंशन का इंतज़ाम कर ले। सरकार को इतना ही इस पर यक़ीन है तो वह ख़ुद कुछ पैसा शेयर बाज़ार में लगाए और उससे कमा कर नागरिकों को दे दे। - रविश कुमार Tags : information simple People analysis sufficient record lowest level pension system