जातीय आतंकवाद कितना भयंकर व भयावह Pratima Ramesh Meshram Friday, December 4, 2020, 08:53 AM जातीय आतंकवाद कितना भयंकर व भयावह आज देश में आतंकवाद के नाम से हर वक़्त दहशत फैली रहती हैं,खास तौर पर कोई धर्मिक,या राष्ट्रीय कार्यक्रम हो या तिज त्योहारों की भीड़ इन सब मौके पर बड़े बड़े महानगरों में शहरों में शासन प्रशासन द्वारा अपना पूरा अमला सावधानी व सतर्कता बरतने में लगाया जाता है,ताकि कोई आतंकवादी आतंक न फैलाए और कोई अनहोनी न घटे।इसलिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करके हम उनके नापाक गंदे इरादों पर पानी फेर देते हैं। किन्तु आज देश में जो जातीय आतंकवाद का बोलबाला है उसे हम आजादी के 72साल बाद भी नहीं रोक पाए।जातीय आतंकवाद के तांडव से हमेशा से दलित ही शिकार होते आ रहा हैं इस देश में आज जो अवस्था हैं आर्थिक,सामाजिक,शिक्षा,रोजगार, स्वास्थ,भवन की गंभीर रूपी जो समस्या है उस पर यहां शासन प्रशासन कार्यपालिका न्यायपालिका,राजतंत्र का जो सौतेला व्यवहार है,उससे दलित के मन में यह प्रश्न उठ रहे की...इस देश के नागरिक के तौर पर उनको कोनसा दर्जा हासिल हैं..?क्या इस देश में इस Àmanush व्यवस्था के चलते वे इस देश के नागरिक है भी या नहीं?इस देश का संविधान इस देश का तथाकथित लोकतंत्र किसके लिए काम करता हैं..?यदि इस देश में राजनीतिक लोकतंत्र हैं ए कहा भी जाए तो भी आर्थिक सामाजिक लोकतंत्र कोसो दूर है,ये सच्चाई हैं। क्या वजह है कि जातीय विषमताओं की खाई दिनों दिन बढ़ती जा रही है उस के सबसे ज्यादा शिकार दलित ही है रोज भारत में दलित पीड़ित प्रकरण के अकड़े पुलिस द्वारा दर्ज किए गए तक ही सीमित है वास्तव में रोज कई से न कई से दलित महिलाओं पर अत्याचार,दलित की हत्या, बारात रोकना सवर्णों के सामने झुककर सलाम करना,पैरो की चप्पल उतारकर जाना इतना ही नहीं मानवी मलमूत्र पिलाना,उनके गुप्तांग पर वार किए जाते ,यदि दलित स्त्री हो तो उसे नंगा कर घुमाना,सामूहिक दुष्कर्म करना गुप्तांग पर मिर्ची पाउडर डालना,कभी लकड़ी या लोहे का रॉड डाला जाता है और उसकी हत्या की जाती हैं।किसी दलित की बेटी जवान हुई तो उसके अस्मत की चिंता उसके मा बाप को २४ घंटे सताए रहती हैं अगर दलित का बेटा स्वाभिमानी हो तो,, दलित के पास जमीन हो....आदि मुझे लगता हैं कि यह है इस देश के आतंकवाद का असली चेहरा।आतंकवाद आतंकवाद कहकर इस देश के राज्यकर्ता,बुधजिवी, पत्रकार लेखक,साहित्यकार, मीडियावाले जिस तरिके से चिल्लाते हैं। आगबबुला हो जाते है,परंतु वे जातीय आतंकवाद के खिलाफ एक शब्द तक नहीं निकलते ऎसा कर वे अपनी मनुवादी प्रवृत्ति का ही परिचय देते है।यह जातीय आतंकवाद सर्व सामान्य आतंकवाद से भी ज्यादा भयानक और भयावह है | - श्रीमती प्रतिमा मेश्राम Tags : administration occasions festivals national religious especially time country terrorism Today