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हल्दी कुमकुम यानी विधवा स्त्री का अपमान

Pratima Ramesh Meshram

Friday, January 21, 2022, 04:55 PM
Haldi kumkum

भारतीय संस्कृति का अपना एक अलग ही महत्व है। भारत में अनेकों तीज त्यौहार अपने अपने राज्यों में अपनी अपनी परम्परा के अनुसार अलग अलग तरीकों से मनाए जाते हैं।उन्ही में साल की शुरुवात में 14 जनवरी को पहला त्यौहार मकर संक्रांति पर्व है इस त्यौहार को लोहड़ी, बिहु ,पोंगल , एवं मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता हैं।। विशेष तौर पर यह त्यौहार महाराष्ट्र में तिल गुड के लडडू बनाने एवम् सुहागन स्त्रिया एक दूसरे को हल्दी कुमकुम लगाकर उपहार स्वरूप कोई वस्तु देती हैं बदले में उनके पति का नाम शायरी के माध्यम से लेने का चलन है और यह केवल सुहागन स्त्रियों के लिए ही होता हैं। यहां मैं आपको बता दूं कि ये एक सामाजिक कुरीति हैं।ये एक स्त्री के द्वारा दूसरी स्त्री को को सरासर अपमानित किया जाता हैं।कहते हैं कि....एक स्त्री का मन केवल दूसरी स्त्री ही जान सकती हैं..।तो क्या आपने कभी विधवा या पति न हो एसी महिलाओ का हल्दी कुमकुम इस विषय पर मन जानने का प्रयत्न किया..?हमारी देश की रक्षा करते हुए कही वीर जवान शहीद हुए हैं क्या उनकी वीर पत्नियो का यह अपमान नहीं है।जिस त्यौहार में वीर शहीद जवानों की वीर पत्नियो को सम्मान पूर्वक मान न मिल रहा हो उनकी उपेक्षा की जाती हो, इस ढकोसले ,परंपरा के नाम पर एक स्त्री को दुखी कर उसके स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने वाला त्यौहार मुझे मान्य नहीं और न ही मैं इस का समर्थन करती और आगे भी नही करूंगी।इस त्यौहार में स्त्रियां सजधज (तैयार)कर एक दूसरे के घर जाती हैं एक दूसरे को हल्दी कुमकुम लगाकर भेट देकर पति का नाम पूछती हैं याने की पति का होना आवश्यक है।जिस स्त्री का पति नहीं उसे चिढ़ाने का अपमानित करने का पूरा इंतजाम। हमारे समाज में विधवा महिलाओं को हर जगह अपमानित किया जाता हैं किसी शुभ कार्य में शामिल न करना केवल अपने हेतु उद्देश उन्हें अपमानित करना अगर गलती से भी आगे आई तो उसका अपमान कर पति न होने का अहसास कराकर और दुखी कर ते हैं।क्या उसके पति की मृत्यु हुई ये उसकी गलती है।? ऐसा अपमानित जीवन जगना।"पति हो यह केंद्र बिन्दु मानकर हम स्त्री का मूल्यमापन करेंगे क्या...?"सच तो यह है कि हमे उन्हें समझना चाहिए ,प्रेम देना चाहिए मदद करना चाहिए पुरुष उन्हें आधे संसार में छोड़कर जाय तो अपमानित कर खरी खोटी सुनाने की बजाय उसे साथ दो सम्मान पूर्वक कार्यक्रमों में सहभागी करो उनके बच्चो की मदद करो।ताकि उन्हें जीने की इच्छा हो और पति के मृत्यु के बाद उनके अधूरे कार्य वह पूरा कर सके।। ये से तीज त्यौहार, प्रथा ,कर्मकांड,धार्मिक श्रद्धा के नाम पर सी दा सीदा सामाजिक विषमताओको खाद पानी देने वाले रिवाज कब तक पालना?।। पैर छूने वाली स्त्री को केवल "सोभग्यवती भव:"ऐसा आशीर्वाद देना यानी उसके आत्मसम्मान की कुचेष्टा हैं।यह बात जब तक स्त्री के समझ में नहीं आती तब तक संस्कृति के मानसिक गुलमगिरी में ही रहेंगी।स्त्री स्वतंत्र याने क्या....?जब इच्छा हुई मायके जाना,कही घूमना फिरना जिंस पहनना मतलब स्त्री स्वातंत्र हैं क्या..?सालो न साल से चली आ रही मानसिक गुलमगीरी का क्या..?परंपरा के नाम पर संस्कृति गुलमगिरि का क्या..? मूंग गिल कर चुप बैठ कर ये सोचना की जो नसीब में हैं ओ भुगत रही हूं ..तो ये गलत है।अपनी सोच बदलो। यदि आज के परिवेश में पढ़ी लिखी स्त्री पुरुष अपने परिवार समाज अनिष्ठ रूढ़ी परंपरा से मुक्त नहीं कर सकते तो उनका पढ़ाई लिखाई का क्या उपयोग। शिक्षा मनुष्य को अच्छा बुरा का अन्तर समझती है कुरीति का पुरजोर विरोध करो।सभी को सम्मान पूर्वक जीवन जगने का हक है हां बहते उसे जगना आना चाहिए। आयुष्मति प्रतिमा मेश्राम । 9575431051





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