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अब आ रही है हमारे समाज की अग्नि परीक्षा

Seema Meshram

Friday, April 26, 2019, 12:06 PM
Agni pariksha

अब आ रही है हमारे समाज की अग्नि परीक्षा
हमारे मसीहा बाबासाहब और विश्वगुरू भगवान गौतम बुद्ध के ज्ञान और प्रकाशमय उज्जवल, ज्ञानमार्गी विचारो से हमारे समाज में सामाजिक चेतना जैसी क्रांति को छुआ है एवं काफी हद तक सामाजिक एकता की ऊँचाईयों को हासिल किया है। यह सब कुछ हम अपनी आँखो से देख रहे है। परन्तु हमारा एक वर्ग अभी भी उन आर्थिक, सामाजिक एवं ज्ञान की ऊँचाइयो से वंचित है, जिसका संपूर्ण स्वप्न हमारे मसीहा ने देखा था हमें यह सपना पूरा करना है। आखिर क्यों 50 साल से ज्यादा हो जाने पर भी हमारा समग्र विकास नहीं हो पा रहा है। हम हमेशा आर्थिक प्रगति की बाते करते है, परंतु हमारा धर्म हमारी पहचान दूसरो के हाथो में ही है क्योंकि अगर बौद्धिक विकास की बात करे तो हम आरक्षण जैसे बैशाखाी का मुँह ताकते है। हमारा धनी समाज भी हिन्दू जाति लिखकर आरक्षण का लाभ ले रहा है, जिसमें हमारी जनगणना में कमी आती है। दूसरा हमारा गरीब  निम्न वर्ग अनपढ़ मजदूर व अज्ञानी है। थोड़ी बहुत जाग्रति हो भी रही है तो बेहद कम स्तर पर खासकर महिलाओं व बच्चो की स्थिति बदतर है। बाम्बे, नागपुर जैसे महानगरो में जो निवास कर रही दलित जनता सिर्फ झुग्गी में रहती है।
आखिर कब तक हमारे अपने यूंही नालियो के किनारे सड़ते रहेगें। अगर हमारे चंद नेता है, जो इनके भरोसे रहे तो ये अपने आप में धोखा है, ये हमारे समाज के कोई काम के नहीं। यह केवल भीड़ इकट्ठा कर समाज में दलित नेता बनकर अपनी तिजोरी भरते है। समाज के उस वर्ग से मुंह फेर लेते है। घृणा करते है, न तो हमारे पास ईसाइयो की तरह मिशनरी संस्थाये है, न शिक्षित संस्था है। न कोई समाज सेवी संगठन। हम सिर्फ सरकार के भरोसे है।
हम कहते नहीं अघाते कि हमारी पहचान विश्व तक है। हमारे गुरू बुद्ध को 200 देशो में जाना जाता है, परंतु हमारे अपने देश में बौद्ध लोगो द्वारा चलित कुछ गिनी चुनी संस्थाये है। उसमें नेताओ का दखल है, सरकार अगर बौद्ध सर्किट व पर्यटल स्थलो का विकास करती हैं तो सिर्फ देश के फायदे के लिये उसकी सांस्कृतिक गरिमा के लिये। यह आवश्यक भी है। परंतु इन स्थलो पर हमारे लोगो का कोई जोर नहीं। दूसरे ही इस पर हावी है क्योंकि वे समझते है इसके लिये बौद्धो में कोई पालिटेंयर नहीं है। योग्य नेतृत्व नहीं है, न ही, वे ऐसा होने देना चाहते है। हमें इन्ही से टक्कर लेना है, हमें आर्थिक मजबूती के लिये अपने समाज के लिये राजनीतिक शक्ति हासिल करना चाहिये। उन्हें ही    विधान सभा में भेजना चाहिये, जो भारत के वंचितो, व दलितो को विकास की सही अवस्था तक लाना चाहे व दलित स्वर्ण समाज ही संचित क्यों, क्योंकि बाबासाहब हम नागवंशी के ही मसीहा नहीं थे, बल्कि उन करोड़ो पीड़ित शोषितो के मसीहा थे। जिनके विकास का सपना उन्होंने देखा था। बुद्ध भी इसी तरह हमारे ही नहीं, बल्कि वे सभी वर्गो के प्रेरणा स्त्रोत बने थे। यह उद्देश्य लेकर चलना होगा। परंतु इसके लिये हमें हर क्षेत्र में उतरना होगा। अपनी पहचान बनाना होगा बौद्ध संस्कृति का विकास करना होगा। बिजनेस, संगीत, कला, विज्ञान से लेकर हर क्षेत्र में हमारा दखल होना चाहिये साथ ही राजनीति में भी हमारा प्रयास होना चाहिए। आगामी अक्टूबर-नवम्बर में 2013 में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे है। अब हमंे इन चुनावो के माध्यम से विधानसभा में कम से कम 2 दर्जन नागवंशि बौद्ध समाज को विजयी बनाकर उनके विधायक के रूप में विधानसभा में पहुंचाना है। इसके लिये हमें ऐसे युवा चुनना है जो राजनीति में कैरियर बनाने, शिक्षित ईमानदार, मानवीय उच्च गुणो से युक्त हो। इसके लिये हमें कुछ प्रणाली अपनाना चाहिये कि अच्छे नेता कैसे पहचाने। उन्हें टिकिट के लिये प्रोत्साहित करे, फिर टिकट दिलाने के लिये सामूहिक रूप से अपनी पूरी शक्ति के साथ सारे मतभेद भुलाकर उन्हें विजयी बनाये। यह हमारा अब एकमात्र लक्ष्य होना चाहिये। हमारे समाज के जो अच्छे व्यक्ति राजनीति में है, उन्हें ही प्रोत्साहित करे, चाहे वह किसी भी राज्य के हो। उन्हें आगे बढ़ाये और संबंधित राजनीतिक दलो पर दबाव बनाये ताकि वह मारी ताकत को पहचाने और हमारे बारे में गंभीरता से चिंतन मनन करें। इतना सब कुछ अब आपको करना है। यही वर्तमान समय की मांग है। हमें युवा पीढ़ि के कंधो पर जवाबदारियां सौंपकर उन्हें मार्गदर्शन देना है। ताकि समाज पर चोट करने वालो को युवा पीढ़ि नसीहत दे सके।
जागिये अपने मतभेद भुलाइये और एकजुट होईये। इसके लिये जागृति लाइये। युवा राजनीतिक मंच बनाइये। जो उपासक उपासिकाएं आपसे मिले यहीं चर्चा करे कि कैसे हम राजनीतिक भागीदारी प्राप्त करे। उनकी अंतरात्मा को जगाइये।
बाबासाहब ने कहा था कि जो समाज समय के साथ अपनी वैचारिक प्रक्रिया व विचारो में परिवर्तन लाकर वर्तमान के अनुसार चल नहीं सकता वह विकास भी नहीं कर सकता। अन्य समाज भी अपनी सामाजिक शक्ति को बढ़ाने के लिये राजनीतिक पार्टियो से तालमेल करने में लगे हुये रहते है।
यह समय की मांग है। हमें अपनी मूच्र्छा त्यागकर सचेत होकर अपने राजनीतिक अधिकारो के लिये आगे आना होगा, क्योंकि हम अन्य जातियों के मुकाबले अपने भारी मतो के बल पर प्रत्याशियो को जिताने और हराने की ताकत रखते है। क्योंकि ओबीसी/एस.सी./एस.टी. समाज ही बहुजन की ताकत है, इन्हें भी जगाइये।
इसके लिये आपको हम सभी को सक्रिय होने की जरूरत है, अगर अभी सक्रिय नहीं हुये तो समय आपको पीछे छोड़ देगा। यह अवसर है, जो हर किसी को मिलता है, इसलिये अपने मसीहा बाबासाहब की आंतरिक शक्ति को महसूस कीजिये, जिन्होने अकेले ही इच्छाशक्ति के बल पर अपने गुणो के कारण मंत्री पद तक पहुंचे थे। सारा विश्व उन्हें नमन करता है। राजनीति को प्रयोग में लाये बिना हमारा पुरा उद्दार असंभव है, क्योंकि तथाकथित नेता समाज के लिये कुछ नहीं करते। वे अपने समाज को क्या दूसरे वंचित समाज का भी भला नहीं करते।
हमें उन्हें हटाकर नये चेहरे लाना है ताकि वे समाज के विकास के नये ध्रुवतारा बने।
सीमा मेश्राम 

 





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